सब तकदीरें की कहानी इसी नहीं होतीं

न हिज्र का गिला न वस्ल की इल्तजा,
सब रिश्तों की बुनियाद ऐसी नहीं होती..
आगोश में जन्नत हो या दूरियों में दोज़ख
हर मोहब्बत की इन्तहा ऐसी नहीं होती...
नज़र-नज़र में गुफ्तगू सरे आम या तन्हाई में
सब की चाहत- ए- बयान ऐसी नहीं होती...
रुसवाइयां नीवं हो जिसकी बदनाम करें महबूब
कोचाहत-ए पाकीज़ की निशानियाँ ऐसी नहीं होती...
परवान चढ़ जाए जो मोहब्बत और खुशगवार भी हो
सब तकदीरों की कहानियां ऐसी नहीं होती...

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