लाश की मंडी लगती है....

चौराहे पे

ये दुनिया कितनी खूबसूरत दिखती है
मगर यहाँ इंसानियत हर मोड़ पे बिकती है
ए दोस्त, न आंसू बहा किसी भी जनाज़े पे
के हर चौराहे पे लाश की मण्डी लगती है

कहीं खून खून को नही पहचानता
कहीं बचपन की कहानी जवानी में ढलती है
ए दोस्त इस ज़मीन पे ऐसा भी होता है
औरत की आबरू सरे-आम लुटती है...

सिर्फ मतलब की इस दुनिया में
हर चीज़ की कीमत होती है
हर शय का सौदा होता है
हर रूह पे बोली लगती है

Popular posts from this blog