बर्दास्त करना सिखाती हैं

हमारी हदें दरिया की लहरें हैं
जो बाँध बनने पे ही काबू आती हैं
उनकी हदें सागर सी गहरी हैं
जो साहिल तक आकर भी लौट जाती हैं
हमारी हसरतें एक जिद बन कर
अक्सर उन्हें सताती हैं
उनकी ख्वाइशें उनके लबों पे आकर
खामोश हो जाती हैं
हमारी मोहब्बतें एक तपिश बन कर
हमे दिन रात जलाती हैं
उनकी चाहतें चांदनी बनकर
नूर हमपर बरसाती हैं
हमे हमारी दूरियां हर वक़्त
हर लम्हा तड़पाती हैं
मगर उनकी मजबूरियां उनको ये दूरियां
बर्दाश्त करना सिखाती हैं...

Popular posts from this blog