एक बार कोशिश करो

आप कब तक, आप कहने की रसम निभायेंगे?
तुम तक पहुँचने में और कितना वक़्त लगायेंगे?
बदती जा रही है चाहतें हमारी पुरजोर
आप कब हमारे इतना करीब आयेंगे?

हम गुस्ताखी पर अमादा होने हों को हैं
आप कब बीच की दूरियों को मिटायेंगे?
अब तलक हमे भी हिचक है बे-तकल्लुफी से
आप कब तक ओर तकल्लुफ़ फ़रमायेंगे?

इन मासूम रिश्तों को परवान चदने दीजिये
आब कब तक इन रिवाजों को निभाएंगे?
आपके लफ्जों में इज्ज़त है आशनाई नहीं
आप कब हमसे यूँ आशना हो पायेंगे?

एक बार कोशिश करो तुम कहने की हमे
आपके आप आप में वरना हम बे-मौत मारे जायेंगे

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