सब्र

सब्र की मियाद ख़तम होने को है शायद
कहीं से रुक्सती का एक पैगाम आया है
राहों में दरख्त फिर से हरे हो गए अब, के
एक हवा का झोंका उनके आने का संदेस लाया है

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यादें शब् भर शम्मा बन जाने की ख्वाइश रखती हैं
एक परवाना ही नहीं मिलता जो खुद जला सके


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इस कदर उसने इतरा के मेरी तारीफ़ की एक दिन
हर हर्फ़ मेरे सफ्हे का मुक्कम्मल हो गया

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इस रंगत की शोखियों पर उनकी नज़रों की शरारत
एक घड़ी में एक जिंदगी बिता दी यूँ ही तकते तकते ...

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