रात की बातें

बस थक गए अब तेरे ख़त के इंतज़ार में
कुसूर तेरा या नामाबर का अल्लाह जाने...
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आपकी दोस्ती सर आँखों पे ए दोस्त मेरे
यहाँ लोग कम हैं जो यूँ फ़र्ज़ निभातें हैं
इन्तेहा-ए-जुर्म खुद करते हैं ज़माने भर में
हम बेकसूरों पे सरेआम इल्जाम लगाते हैं
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तेरी रुसवाइयों के सदके मेरी बदनामियाँ हुई
अब खौफज़दा तू क्यूँकर होता है दीवाने मेरे ...
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हर लफ्ज़ में एक ही बात कहे जाते हैं वो
बस शिकायत, और शिकायत, एक और शिकायत
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अब रात की बातें रातों पे छोड़ कर
लो हम चल पड़े एक सुबह की तलाश में...

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