मेहमान मौसम
ये ज़रूरी तो नहीं के मौसम को मेहमान बनाया जाए इस बरसती बारिश का अहसान जताया जाए गुपचुप बादल खुद भी बरसें हैं भीगे भीगे से फिर क्यूँ काली घटाओं से आँचल को सजाया जाए उसका आना तरबतर होकर एक छतरी से ढककर भी उसपर दुपट्टे से टपकता टिप टिप पानी गिरता हुआ गीले गीले बालों से आता खुशबू का झोंका ऐसे में इन हवाओं का, सच में, अहसान मनाया जाए हर बूँद में मस्ती सी भरी हुई हो शराब की हर छुअन में उसकी ताब हो आतिश भरा ऐसे में छज्जे के नीचे खडा हुआ में सोच रहा आज फिर सर पे छत को क्यूँ ओड़ाया जाए