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Showing posts from December, 2008

मेहमान मौसम

ये ज़रूरी तो नहीं के मौसम को मेहमान बनाया जाए इस बरसती बारिश का अहसान जताया जाए गुपचुप बादल खुद भी बरसें हैं भीगे भीगे से फिर क्यूँ काली घटाओं से आँचल को सजाया जाए उसका आना तरबतर होकर एक छतरी से ढककर भी उसपर दुपट्टे से टपकता टिप टिप पानी गिरता हुआ गीले गीले बालों से आता खुशबू का झोंका ऐसे में इन हवाओं का, सच में, अहसान मनाया जाए हर बूँद में मस्ती सी भरी हुई हो शराब की हर छुअन में उसकी ताब हो आतिश भरा ऐसे में छज्जे के नीचे खडा हुआ में सोच रहा आज फिर सर पे छत को क्यूँ ओड़ाया जाए

JAGRAN

कब तक और कब तक फसले-गुल के मौसम में गोलियां उगायेंगे? पड़ोसी मुल्क के बाशिंदे हमारा कितना लहू बहायेंगे? और हमारे देश के लोग कब होश में आयेंगे? शहीदों की मौत पर कब नकली नेता सच्चे आंसू बहायेंगे? सचमुच जिंदगी इतनी सस्ती है कब हम इसके सही मोल लगायेंगे? जगाया उसको जाता है जो सोया होता है जागे हुओं को कितने बम्ब जगायेंगे? बस, अब हद से बाहर हो गया बर्दाश्त भी और नहीं होता और कितने दंगों के बाद हम हिन्दुस्तानी गनीम-ए-शहर में आतिश्बारी करवाएंगे? शर्म औरत का गहना होती है लगता है अब आदमी उसको अपनाएंगे और चूड़ियाँ पहनने वाले हाथ आखिरकार बंदूकें उठाएंगे... गर बुरा लगा तो बुरा मान लो और हिम्मत-ए-मर्दा-मदद-ए-खुदा जान लो उठा लो तलवार बाँध के कफ़न चलो यूँ ही सही उकसा कर हम अपने लोगों को बहादुर बनायेंगे... बहुत झुक लिया, बहुत सह लिया अब और नहीं सह पायेंगे आज प्रण करो...खुद से हम अपने देश को इस आतंक इन आतंकवादियों से बचायेंगे! गनीम-ए-शहर - दुश्मन देश

For the soilders/policemen who lost their lives fighting terrorism in mumbai...26/11/2008

समेट कर आग सीने में जब वो घर से निकला होगा आग बुझाने को कितने आईने देखें होंगे अपनों के अक्सों को आँखों में छुपाने को रात में नीदों का साया फिर नहीं आएगा उसके मकां पे वो अपना आशियाना छोड़ कर गया था औरों के घर बचाने को तान के बन्दूक जा खड़ा हुआ बन्दूक के आगे शेर दिल लौटा नहीं जिंदा, तो क्या फौजी बना ही था मुल्क पे मर जाने को कुछ सरकारी तमगे मिलें और मिला कुछ लाख का मुआवज़ा अब सलाम करें या शहादत का नाम दें के वो मरा देश बचाने को किसके साथ क्या हुआ कौन मरा कौन बचा और फिर वो ही मुक्कदमा इन्साफ की मत पूछो, के इन्साफ यहाँ का है सिर्फ खिल्ली उडाने को उस मुल्क पे ओड़ के गुनाहों का सारा इल्जाम अपना गिरेबां झाड़ लिया इस मुल्क का नेता जीता है मासूमों के लहू से अपनी प्यास बुझाने को