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Showing posts from March, 2014
खुद को इतना झुकाओ के जिसके आगे झुको उसका हाथ तुम्हारे सर पर आकर ठहर जाए, मगर खुद को उसके क़दमों में यूँ मत गिराओ के वो तुम्हें ठोकर मार के बेरुखी से गुज़र जाए ...
फरिश्तों के साथ वक़्त क्या गुज़ारा दुरुस्त सारा बदरंग नज़ारा हो गया दिल ज़ाकिर जो हुआ, सो हुआ खैर वो मोहसिन खुदा का हमारा हो गया ... farishta - angel durust - positive badrang - negative zaakir - grateful khair - but mohsin - angel i spent some time with an angel and my negativity turned into positive energy. my heart is grateful to god for sending that angel to me...
तुम नज़र अंदाज़ करोगे तो हम दरकिनार कर देंगे नाज़ उठा सकते हैं तुम्हारे, नखरे मगर तौबा तौबा ... हर बात पर चुटकी लेते हो, हर बात पर छेड़ देते हो बाज़ आते नहीं, और उसपे ये मिजाज़ तौबा तौबा ...
परिंदों परों पे तिनकों का बोझ तब उठाते हैं जब किसी दरख़्त पर आशियाना बनाते हैं आसमान छूने का हौसला जब आ जाता है अपने परों की परवाज़ तब ही आज़माते हैं
गर ज़रुरत होगी मेरी तो वो ढूंढ ही लेगा मुझे मैंने भी तो कई बार खुद को ढूँढा है उसके लिए
बेदखल भी तो नहीं करते मुझे अपनी ज़िंदगी से बस एक बार इतना कह दो के तुम मेरी कोई नहीं..
जिन्होंने उजालों की तलाश में सारे दिये बुझा दिए वो अब रौशनी को तरसते हैं हाथों दियासिलाई लेके...
अब रूठा भी नहीं जाता है मनाया भी नहीं जाता है फासला इतना है के पास बुलाया भी नहीं जाता है दिखायी देते हैं दूर से दोस्त, जो दुश्मनी निभाते हैं दिल फरेब इतने के उन्हें साथ बिठाया नहीं जाता
क्या मेरी तरह सब थक जाते हैं? जब जीवन में एक अर्ध विराम आता है जब ऐसा लगता है सब कुछ कर लिया और अब कुछ और नहीं है करने को ... जब बच्चे बड़े हो कर अपनी मंज़िल को पाने के लिए दूर देश निकल जाते हैं जब रिश्तों में एक ठहराव सा आ जाता है जब पुराने दोस्त बिछड़ने लगते हैं और नए दोस्तों कि ज़रुरत महसूस नहीं होती ... सुबह उठकर ये सोचते हैं आज क्या करें शाम तक दिन बिताना है मगर कैसे और रात को सोते वक़्त सोचा जाता है सुबह उठकर क्या बनाना है और क्यूँ ? उम्र ज़यादा नहीं है मगर कम भी नहीं है वक़्त गुज़र भी गया और बचा भी है जो वक़्त बीत गया वो शायद ठीक ही था मगर तब यूँ लगता था ये वक़्त बुरा है ... तब भी उससे शिकायतें थीं अब भी हैं शायद शिकायत करना आदत बन गयी है सबसे ही शिकायत करते हैं आदतन वक़्त से, दोस्तों से, दुश्मनों से, अपनों से और खुद से भी ... अभी जीना है क्यूंकि अभी उम्र बाकी है शायद इसलिए थक गयी हूँ शायद इसलिए थक गयी हूँ ....
कोई वादा, कोई करार न ले, के  मेरा मुझ पर कोई इख्तेयार नहीं  मेरा खुद से मरासिम है जीने का  और किसी से कोई दरकार नहीं karaar - promise ikhteyaar - right maraasim - agreement darkaar - desire
देने वाला दुआ तो दे सकता है लेकिन  बेताब दिल को आसरा नहीं दे सकता  मंज़िल का पता देने से परहेज़ किसे है  हममंज़िल-ओ-हमराह नहीं दे सकता  अफसाना-ए -शिकस्त सुना के बशर नसीहत देता है तजुर्बा नहीं दे सकता मकानों में तो मकीं ज़माना करता है घूमने को दश्त-ओ-सहरा नहीं दे सकता दश्त-ओ-सहरा - forest and desert
tere haath mein mera haath hai, mujhe zamaane se ab kya gharaz baaki kyu karoon logon ki nigaahon se parda tere aasre se ab hai hamara faraz baaki... bahot bebaak bahot waasiq hai sach mein ab bachi nahi is rishte mein koi laraz baaki kiske nishaane par hamari mohabbat hai lekin dooriyon mein bhi na koi daraz baki... gharaz - matlab aasre - dependence faraz - elevation waasiq - secure laraz - waver daraz - opening
तुम्हारी आँखों का प्यार देख मुझे तमसे और भी प्यार हो जाता है कभी मरने का दिल करता है कभी जीना बहुत दुशवार हो जाता है 
aadatan wo humse rooth jate hein aadatan hum unhe manaate hein phir bhi shikaayat rahti hai unhen k hum hi hein jo unhen satate hein ... kabhi baaten karne ko nahin hoti to bhi baaten khatam nahin hoti kabhi bahut kuch hota hai dil mei to din bhar unhen sunaate hein... kabhi judaai ka mausam aata hai toh waqt katna mushkil ho jata hai aalam-e-judaai me tab har ghadi dher se aansu hum bahaate hein ...
kis hud ki baat karen, jab har cheez humne hud se zyada ki woh tujhse mohabbat ho, teri ibaadat ho ya fir teri justjoo...
unko kuch palon ki guzarish ke badle hum is zindgi ko unke naam kiya hai unki is bahot hi thodi si zaroorat ko hum ne ta-umr ka anjaam diya hai baaten karne ki chaahat kisko nahin tanhaai ki aalam kaun nahin chahta ab shikaayaton k silsilon ko rokne ko humne unka daaman thaam liya hai....
dekho, kahin meri soorat bhi nazar aa jaaye tumhen hume to tumse mil k apni shakl kuch bhool si gayi hai
humare ghar mein ek bhi aaina nahin yu bhi harsu tumhara hi aks dikhta hai ..
rasmon aur riwaazon se kuch parhez rakhte hue humne apne jeene ke qaayde khud banaye hein.. mohabbat koi khilona nahin ke yun hi baant den apne habeebon ko ulfat ke ye usool sikhaye hein..
woh meri deewaangi se waakif nahin meri mohabbat ka kuch aisa junun hai sare jahaan ki taskiiniyon ke baad bhi sirf uski baahon mein milta sukun hai nahi maante koi bandish zamaane ki meri ulfat mein sirf mera kanoon hai behisaab chaahte hein apne aashiq ko kyun daren ke ab bhi garm khoon hain haraarat bataati hai raaz bechaini ka k yeh jism uski taaseer se mahroom hai...
sukun bech diya humne gum khareedne ko kis mol mei na-maaloom tijaarat-e-mohabbat me munafa o nuksaan ka hisaab ab kaun rakhe
bhool jaane ke baad bhi tumhari yaad aa jaati hai agar sach mein tum yaad aaoge toh phir kya hoga..
बहुत बीमार लगते हो क्या किसी से प्यार हुआ है हमने दर्द-ए-मुहब्बत में बड़े बड़े फन्ना होते देखें हैं ..
कुछ बूँदें बादल की चुरा ली थी पिछली बारिश में उन्हें अब जोड़ के हम अपना इक बादल बनाएंगे जब सूख जायेगी गर्मी से हवाओं की मीठी ठंडक ओढ़ा कर उस बादल को अपनी छत पे बरसाएंगे कुछ तिनके भी चुराए थे परिंदों के आशियानों से उन्हें जोड़ के हम अपना इक आबोदाना बनायेगे जब उड़ा ले जायेगी आंधियां कच्चे घरोंदे हमारे ओढ़ा कर तिनके अपनी छत पे नशेमन सजायेंगे कुछ लम्हें भी चुरा लिए थे गुज़रते हुए वक़्त से उन्हें जोड़ कर अपने होने कि मियाद हम बढ़ाएंगे जब आलम होगा वक़्त-ए-रुख्सती का उस दिन ओढ़ा के वक़्त को हस्ती पे, थोड़ा और जी जायेंगे...
करते हैं कमाल वो मेरे पहलु में बैठ कर हाथों में लेते है रुखसार, मगर चूमते नहीं...
न सुबह से कोई शिकायत है न शाम से भी कोई रंजिश है क्यूँ तेरा पहलु नसीब में नहीं ये सिर्फ वक़्त की साज़िश है जला देती है तेरी नामौजूदगी तेरे होने से दिल बहल जाता है कुछ तो बात है तेरे वजूद में कोई तो तुझमें ऐसी आतिश है मुझे अपने आगोश में रखना के ज़माने में दर्द बहोत दिए हैं कोई फासला न आये दरम्यान बस इतनी से एक गुज़ारिश है
हमारे दरम्यां की लम्बी ख़ामोशी ने उनके सब सवालों का जवाब दे दिया लबों ने कोई भी ज़हमत नहीं उठायी एक चुप्पी ने दिल-ए-इंतेखाब दे दिया दिल-ए-इंतेखाब - selection of heart
बहुत दूर तक जाना पड़ता है उसे मनाने के लिए जो हर बार मेरे पास आकर मुझ से रूठ जाता है
आरज़ू है इक शाम उसके पहलु में बिता आऊं वैसे भी उसके दर के सिवा जाऊं तो कहाँ जाऊँ पनाह दैर ओ-हरम में मिली नहीं गुनाहगारों को अब तेरे दयार पे सर न झुकाऊं तो कहाँ झुकाऊं दैर ओ-हरम - मंदिर और मस्जिद 
मेरी परवाज़ का अंदाज़ तुम यूँ भी लगा सकते हो के फलक से सिर्फ एक उसका घर दिखाई देता है
इतने करीब हों के धड़कन एक हो जाये सांस लें तो साँसे तेरी साँसों से टकराए आगोश में कसमसा जाएँ शाम होते ही बिखर जाएँ टूट के तो सहारा दे तेरी बाहें दूर जाना मुमकिन नहीं तुम जानते हो पास आना ही अब वक़्त की ज़रुरत है छुपा कर रख सको तो अहसान होगा बड़ी ज़ालिम हैं ज़माने की काली निगाहें हसरतों की बारात है चलो कुछ सवंर लें थोडा सा सज लें थोडा सा इत्र छिड़क लें उसके पहलु में आज की रात बितानी है यही सोच कर खुद पर ही हम इतराएँ
उठा के नज़र इक बार तो देख ले बहुत उदास है ये दिल तेरे बिना 
जब भी मेरा ज़िक्र किया किसी रक़ीब ने मेरे मोहसिन ने वो महफ़िल ही छोड़ दी सरूर के नशे में उँगलियाँ उठायी लोगों ने तो उसने मय से भरी वो बोतल ही तोड़ दी मेरी जानिब उठते हुए कुछ तीर-ए -नज़र खंजर से भी तेज़ शमशीर से भी तीखे थे उसने सह कर हर वार अपने जिस्म पर वो दर्द की आंधियां अपनी तरफ मोड़ दी बिन मांगे बिना शर्त अपना साथ देता रहा मेरी हदों में अपनी हदें खुद ही समेटता रहा मेरा वजूद बिन मिटाये मुझे वजूद दिया मेरी रूह से बेसाख्ता अपनी रूह जोड़ दी
तेरे आगोश में कोई दिन दिन नहीं लगता हर तरफ रौशनी से भरी रात हो जाती है तेज़ साँस में दहकती गर्म हवा से बहकती मेरी थकी हुई देह तेरे पहलु में सो जाती है पसीने को बहाकर मेरे सुलगते जिस्म पे तुम भी यूँ टूट कर मुझ पे बिखर जाते हो और पसीने की महक तुझ में यूँ बसती है जैसे उफनती लहर में इक बूँद खो जाती है
दुआओं में याद रख कर वो इबादत करता है गुनाह की हद तक मुझसे मोहब्बत करता है खुदा के सामने तो हरेक अपना सर झुकता है मेरे आगे झुक वो ज़माने से बगावत करता है ...
हम ज़िदा हैं और मर भी गए सब उसकी नज़र का करम है वो प्यार से देखे तो सितम है और न देखे, तो भी सितम है
रहने भी दो अपनी बेबसी के किस्से कहानियां फ़क़त बहाने हैं ये अपनी बेपरवाही छुपाने के   जो एक बार ओढ़ लेंगे चुप तो जान जाओगे, के हमे भी आते हैं हुनर  दोस्तों को आज़माने के 
कब्र में भी चैन नहीं आता आशिक़ को सांस तो थम गयी मुई आस नहीं गयी वो आयी थी बहाने आंसू मैयद पे लेकिन दूर से लौट गयी मुर्दे के पास नहीं गयी 
वक़्त तो हर शख्स दे सकता है मिलने का लेकिन कोई अपने हिस्से का एक भी लम्हा नहीं दे सकता
चिराग में अब भी तेल बाकी है लौ घटा दें तो भी रोशन रहेगा 
बचपन में एक सोच थी के शायद ज़िंदगी का सबसे बड़ा पड़ाव पचास साल है ... पचास साल तक ज़िंदगी खुशनुमा हो जाती है गम दूर हो जाते हैं और ठहराव आने लगता है सबके सपने चाहे आधे अधूरे पूरे हो जाते हैं, नौकरी या कारोबार रोज़ी रोटी का सामान जुट जाता है, एक जीवन साथी मिल जाता है सुख दुःख के वक़्त का, रिश्ते जो बनने होते हैं बन जाते हैं रिश्ते जो टूटने होते हैं वो टूट कर फिर जुड़ जाते हैं , बच्चे बड़े हो कर अपनी राह पे चले जाते हैं, एक घर बन जाता है उम्र गुज़रने के बाद की उम्र गुज़ारने को, एक गाडी भी आ जाती है सफ़र की थकन उतारने को, दोस्ती के रिश्ते और गहरा जाते है, और दुश्मनों के चेहरों में भी दुश्मनी नज़र नहीं आती बस एक नाराज़ दोस्त ही दिखना शुरू हो जाता है, और पुरसुकून हो जाती है ज़िंदगी पचास के पार .... मगर ..... जब उम्र के उस पड़ाव के पास पहुंचे तो ये जाना के सारे सपने कभी पूरे नहीं हो पाते ... कहीं नौकरी है तो तनख्वाह नहीं कहीं कारोबार है तो ग्राहक नहीं, कहीं रोज़ी रोटी का जरिया ही नहीं ... कहीं जीवन साथी मिला नहीं कहीं जीवन साथी छूट गया और कहीं जीवन साथी बिछड़ गया
वो शायद मसरूफ था और ये दिल भी मग़रूर था,  तभी दर्द बांटना छोड़ दिया जो हमारा दस्तूर था ..