आरज़ू है इक शाम उसके पहलु में बिता आऊं
वैसे भी उसके दर के सिवा जाऊं तो कहाँ जाऊँ
पनाह दैर ओ-हरम में मिली नहीं गुनाहगारों को
अब तेरे दयार पे सर न झुकाऊं तो कहाँ झुकाऊं

दैर ओ-हरम - मंदिर और मस्जिद 

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