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Showing posts from 2008

मेहमान मौसम

ये ज़रूरी तो नहीं के मौसम को मेहमान बनाया जाए इस बरसती बारिश का अहसान जताया जाए गुपचुप बादल खुद भी बरसें हैं भीगे भीगे से फिर क्यूँ काली घटाओं से आँचल को सजाया जाए उसका आना तरबतर होकर एक छतरी से ढककर भी उसपर दुपट्टे से टपकता टिप टिप पानी गिरता हुआ गीले गीले बालों से आता खुशबू का झोंका ऐसे में इन हवाओं का, सच में, अहसान मनाया जाए हर बूँद में मस्ती सी भरी हुई हो शराब की हर छुअन में उसकी ताब हो आतिश भरा ऐसे में छज्जे के नीचे खडा हुआ में सोच रहा आज फिर सर पे छत को क्यूँ ओड़ाया जाए

JAGRAN

कब तक और कब तक फसले-गुल के मौसम में गोलियां उगायेंगे? पड़ोसी मुल्क के बाशिंदे हमारा कितना लहू बहायेंगे? और हमारे देश के लोग कब होश में आयेंगे? शहीदों की मौत पर कब नकली नेता सच्चे आंसू बहायेंगे? सचमुच जिंदगी इतनी सस्ती है कब हम इसके सही मोल लगायेंगे? जगाया उसको जाता है जो सोया होता है जागे हुओं को कितने बम्ब जगायेंगे? बस, अब हद से बाहर हो गया बर्दाश्त भी और नहीं होता और कितने दंगों के बाद हम हिन्दुस्तानी गनीम-ए-शहर में आतिश्बारी करवाएंगे? शर्म औरत का गहना होती है लगता है अब आदमी उसको अपनाएंगे और चूड़ियाँ पहनने वाले हाथ आखिरकार बंदूकें उठाएंगे... गर बुरा लगा तो बुरा मान लो और हिम्मत-ए-मर्दा-मदद-ए-खुदा जान लो उठा लो तलवार बाँध के कफ़न चलो यूँ ही सही उकसा कर हम अपने लोगों को बहादुर बनायेंगे... बहुत झुक लिया, बहुत सह लिया अब और नहीं सह पायेंगे आज प्रण करो...खुद से हम अपने देश को इस आतंक इन आतंकवादियों से बचायेंगे! गनीम-ए-शहर - दुश्मन देश

For the soilders/policemen who lost their lives fighting terrorism in mumbai...26/11/2008

समेट कर आग सीने में जब वो घर से निकला होगा आग बुझाने को कितने आईने देखें होंगे अपनों के अक्सों को आँखों में छुपाने को रात में नीदों का साया फिर नहीं आएगा उसके मकां पे वो अपना आशियाना छोड़ कर गया था औरों के घर बचाने को तान के बन्दूक जा खड़ा हुआ बन्दूक के आगे शेर दिल लौटा नहीं जिंदा, तो क्या फौजी बना ही था मुल्क पे मर जाने को कुछ सरकारी तमगे मिलें और मिला कुछ लाख का मुआवज़ा अब सलाम करें या शहादत का नाम दें के वो मरा देश बचाने को किसके साथ क्या हुआ कौन मरा कौन बचा और फिर वो ही मुक्कदमा इन्साफ की मत पूछो, के इन्साफ यहाँ का है सिर्फ खिल्ली उडाने को उस मुल्क पे ओड़ के गुनाहों का सारा इल्जाम अपना गिरेबां झाड़ लिया इस मुल्क का नेता जीता है मासूमों के लहू से अपनी प्यास बुझाने को

कुसूर

हद है,कुसूर भी माना उन्होंने कुछ अकड़ के कुछ बिगड़ के .... ***** कोई दर्द में हुआ हो तो हुआ करे उन्हें अपनी बेपरवाही पे गुरुर है देख कर एक नज़र उधर देखते हैं जाने उधर किस शय में क्या सुरूर है ??? ****** हर बात पे तोहमत लगाते हैं हर बात पे टोकते जाते हैं मेरे हबीब हैं वो खुदाया फिर क्योंकर दुश्मनी निभाते हैं ? ***** मेरे चाहनेवालों की फेहरिस्त में आज फिर एक नाम जुड़ गया उनकी आशिकी का दम भरते थे कभी आज वो दामन फैलाए खड़े हैं

रात की बातें

बस थक गए अब तेरे ख़त के इंतज़ार में कुसूर तेरा या नामाबर का अल्लाह जाने... ****** आपकी दोस्ती सर आँखों पे ए दोस्त मेरे यहाँ लोग कम हैं जो यूँ फ़र्ज़ निभातें हैं इन्तेहा-ए-जुर्म खुद करते हैं ज़माने भर में हम बेकसूरों पे सरेआम इल्जाम लगाते हैं **** तेरी रुसवाइयों के सदके मेरी बदनामियाँ हुई अब खौफज़दा तू क्यूँकर होता है दीवाने मेरे ... ****** हर लफ्ज़ में एक ही बात कहे जाते हैं वो बस शिकायत, और शिकायत, एक और शिकायत **** अब रात की बातें रातों पे छोड़ कर लो हम चल पड़े एक सुबह की तलाश में...

Bihar: बिहार की त्रसिदी को समर्पित ....

पानी के थपेडो में तूफान के अंधेरों में नाखुदा का इंतजार करती कितनी बेफरियाद है ये जिंदगी कुछ बेजार सी लगती है कुछ नाराज़ सी लगती है, अपनी तो है लेकिन बड़ी बरबाद है ये जिंदगी दुओं की आदत नहीं अजाब से खौफ नहीं बिन उम्मीद की बेहद नामुराद है ये जिंदगी हर रोज दिन से शुरू होकर हर रात यूँ ही सो जाती है क्या उस दुनिया में सबकी यूँ बेबुनियाद है ये जिंदगी हरसूं एक शोर है हरसूं एक सन्नाटा भी गूंगी बहरी लेकिन जिन्दा क्यूँ इतनी बेजार है ये जिंदगी सैलाब एक नाशादियों का भूख का बरबादियों का गहरे-उथले पानी में कैसे आबाद है ये जिंदगी एक उम्मीद बाकि है कहीं तो इंसानियत जागी है जोश -ए-जूनून की लेकिन क्यूँ मोहताज है ये जिंदगी कुछ रुकी रुकी सी कुछ थमी थमी सी एक नयी सुबह की करती इजाद है ये जिंदगी

सब्र

सब्र की मियाद ख़तम होने को है शायद कहीं से रुक्सती का एक पैगाम आया है राहों में दरख्त फिर से हरे हो गए अब, के एक हवा का झोंका उनके आने का संदेस लाया है ***** यादें शब् भर शम्मा बन जाने की ख्वाइश रखती हैं एक परवाना ही नहीं मिलता जो खुद जला सके ****** इस कदर उसने इतरा के मेरी तारीफ़ की एक दिन हर हर्फ़ मेरे सफ्हे का मुक्कम्मल हो गया ***** इस रंगत की शोखियों पर उनकी नज़रों की शरारत एक घड़ी में एक जिंदगी बिता दी यूँ ही तकते तकते ...

इरतिका-ए-जिंदगी

तुम कहते हो सुनो, दर्द उनकी सिसकियों का मैं कहती हूँ, मैंने देखा ज़ख्म जहाँ थे उस देश के लोगों को गवांरा था यूँ घुट के मरना उस देश की लोगों में लड़ने के हालात कहाँ थे हर सरकार लूटती थी हर शहर हर गली को उनके आगे चंद लोगों के नाल-ए-फरीयाद रवां थे फिर भी पत्थर कूटते उन हाथों में हर वक़्त मुल्क की इरतिका-ए-जिंदगी के अरमान जवां थे इरतिका-ए-जिंदगी - progress of life

मुकाम

उफ़!!! इतनी इज्ज़त मिली जिसके हम काबिल न थे ये मुकाम जो आज मिले हमे अब तक हासिल न थे ***** एक आदत सी पड़ गयी है उनको हमे छेड़ जाने की क्या कहें उनसे के अब रुत बीत गयी रूठने मनाने की हर पल इंतज़ार रहता था उनके आने का हमे, लेकिन वक़्त ने इजाज़त नहीं दी उन्हें मेरे पास आने की ****** तेरी ख्यालों में वक़्त गुज़रता है आजकल ज़हन में सिर्फ तेरा मुजस्मा समाता है हर लम्हा तेरे जानिब दिल खिंचता है हर ख्वाब तेरी आँखों में बसना चाहता है

उसका नशा

छलका के जो नज़रों से, मेरी जानिब देखा उसने हर मय का सुरूर कुछ फीका सा पड़ने लगा कैफ का काम करता था जो पैमाना मखमूर का तेरी आँखों की शराब में उसका नशा ढलने लगा **** इतनी बारिश में बिन छतरी के नंगे पावं छत पे वो आये लिल्लाह कैसे कैसे मेहनत-ए-पैहम किये मेरे एक दीदार को ***** हर रोज़ एक फूल भेजता है वो मुझे ख़त में लेकिन उसकी खुशबू ख़त ही चुरा लेता है मेरे दोस्त मगर तेरी भेजी तितलियों से ये दिल खेल कर खुद को बहला लेता है

एक अनजाना

कोई बंद दरवाजा दोबारा खटखटा रहा है एक अनजाना शख्स करीब आ रहा है अंदाज़-ए-बयानी का अंदाज़ कुछ नया सा है हाल-ए-दिल पहेलियों में सुना रहा है गुपचुप सारे जहां का हाल बताता है हर रोज़ एक नया किस्सा सुनाता है मेरे कानों में हौले से गुनगुनाकर न जाने कितने गीत बुनता जाता है हजारों ख्वाब मेरी सूनी पलकों पर अपने हाथों से सजा रहा है कोई बंद दरवाजा दोबारा खटखटा रहा है एक अनजाना शख्स करीब आ रहा है मेरी धडकनों में अपना नाम सुनता है मेरी साँसों से अपनी साँसें चुनता है उसकी कोशिशों की क्या मिसाल दूं, के उनको कामयाबी का जरिया बना रहा है कोई बंद दरवाजा दोबारा खटखटा रहा है एक अनजाना शख्स करीब आ रहा है ****** आपके खाव्बों की रहगुज़र से मेरा रस्ता भी गुज़रता है तस्कीनियाँ आपकी आरजू है, शादमानी मेरी हसरत हैं

सुबहों में मेरा बसेरा है

मेरे ख़्वाबों की ज़मीं ला-महदूद है हर शख्स का इधर बसेरा है यहाँ एक ख्वाब अनजाना सा है और एक ख्वाब सिर्फ मेरा है उनकी हस्ती को भुला दिया जो हर तोहफा ज़ख्मो भरा देते थे अब रातों से मुझे क्या काम जब सुबहों में मेरा बसेरा है ****** सद कोशिशें की उनसे दूर जाने की हर गाम पे यूँ लगा फिर आवाज़ लगाई...

सांझी ज़मीं

दर्द सांझा, लहू सांझा, सांझी ये ज़मीं है हरेक मगर इसमें एक टुकडा मांगता क्यों है? *** एक मजहब, एक ज़ात, एक ही जज़्बात है, कमबख्त आदमी ही आदमी को नहीं पहचान पाता

इंसान की सोच

सोचना फितरत है इंसान की सोचना फिर आदत बन जाती है ये इंसान की सोच ही होती है जो उसको चाँद की सैर कराती है सागर का सीना चीरना कोई बच्चों का खेल नहीं इंसान की सोच ही उसको जहाज़ बनाना सिखाती है आसमान की ऊँचाइयों पे कब्ज़ा है पंछियों का सदियों से एक सोच इंसान की उस आसमान तक जो झुका जाती है सोच अगर सही तो इर्तिका-ए-जिंदगी मिलती है सभी को अगरचे बेकार सोच इस जहाँ मैं सिर्फ तबाही मचाती है

किस्मत

दिल के अमीर अक्सर जेब से फकीर होते हैं बे-ज़मीरों की इस दुनिया चंद ही बा-ज़मीर होते हैं हक छीनने वाले चप्पे चप्पे पे मिल जायेंगे लेकिन हक का देने वाले शुमार में बसीर होते हैं हंस दे कोई मुफलिसी में तो खुदा का नेक बन्दा है गरीबी में ही इंसान नानक और कबीर होते हैं जुल्म करना आदमी की फितरत में मौजूद है ज़ुल्म सहने वाले आदमियत की तामीर होते हैं तू गम न कर, यहाँ हर तरह के लोग हैं कोई तकदीरवाले हैं कोई किस्मत से हकीर होते हैं

ढेर सारा अँधेरा

खाली कमरों में हम दिन गुजारते थे काली स्याह रातों का भी वहीँ डेरा था जिस शख्स को उन कमरों में खो दिया बस, दीवारों के इलावा वही शख्स मेरा था बड़ी भीड़ थी सामान की बंद दरवाज़े की पीछे धूल की परत भी बिस्तर पे छाई हुई थी बरसों से वीरान कमरे के आईने के पीछे तेरा गुमसुम साया और ढेर सारा अँधेरा था

Just.....

मस्त हैं हम जहां की मस्तियों में डूब कर कौन है भला जो हमसे निजात पा सके... कोशिशें लाख करते हैं ज़माने वाले रोज़ ब रोज़ ना किसी में दम नहीं जो हमारे नज़दीक आ सके ... **** हद है के वो उल्फत को अहसान समझ बैठे काली स्याह अब्र को आसमान समझ बैठे मेरी आवाज़ घायल थी दर्द के ज़ख्मों से उनकी नवाजिश थी के वो उसे आजान समझ बैठे *** यादों का काम है तड़पना और तडपाना इस नामाकूल से कौन कमबख्त ऐंठता है ....

तो कोई बात है

छोड़ के नफरत मेरी करीब आओ तो कोई बात है भूल कर ग़मों को मुस्कुराओ तो कोई बात है धूप में तो सब गुज़ारा कर ही लेते हैं मर खप कर तूफानी गलां में जी कर दिखाओ तो कोई बात है फिरदोस है जन्नत है इसमें किसको शक भला हाँ, दोज़ख में खुशियाँ बिछाओ तो कोई बात है दरिया में उतरते हैं तो पार लग ही जाते हैं डूब कर सागर करीं आ जाओ तो कोई बात है हर एक शख्स अपनी असीरी में सदियों से कैद है दुश्मनों की जंजीरें तोड़ आओ तो कोई बात है फूल हैं तो महकेंगे ही के उनकी ये ही फितरत है सहरा में गुलशन को बसाओ तो कोई बात है

सब तकदीरों की कहानियां ऐसी नहीं होती

न हिज्र का गिला न वस्ल की इल्तजा सब रिश्तों की बुनियाद ऐसी नहीं होती.... आगोश में जन्नत हो या दूरियों में दोज़ख हर मोहब्बत की इन्तहा ऐसी नहीं होती... नज़र-नज़र में गुफ्तगू सरे आम या तन्हाई में सबकी चाहत- ए- बयान ऐसी नहीं होती... रुसवाइयां नीवं हो जिसकी बदनाम करें महबूब को चाहत-ए पाकीज़ की निशानियाँ ऐसी नहीं होती... परवान चढ़ जाए जो मोहब्बत और खुशगवार भी हो सब तकदीरों की कहानियां ऐसी नहीं होती....

वो शख्स

रंग भरा उम्मीदों भरा, हर रोज़ मुझसे मिलने रात गए मेरे ख्यालों में आता है, क्या बताएं वो कैसा है, बिलकुल ख्यालों जैसा है, मुझे अक्सर इंतज़ार और उम्मीदों में, फर्क समझाता है, जिसके होठों में इक आग है, जिसकी सांसो में इक राग है, सभी साज ज़िन्दगी के बज उठते हैं, जब वो नजदीक आता है, कुछ कल के किस्से , कुछ आज के अफसाने, मेरे आज से जुड़ कर, कैसे कैसे बहानों से, गीतों में सुनाता है, जिसके होने से बहार आती है, जिसके जाने पे खिजां सताती है, बादल सावन उसमे समाये, जो खुद को मौसम, मुझे बारिश बुलाता है, जिसकी छाव में तपिश जिसके आगोश में आतिश, जो तन्हाई में अक्सर, उँगलियों से अपनी धड़कन सुनाता है, जो ख्वाबीदा होकर भी, सपनो से डराता है, अपने लिए सिर्फ हकीकत चुनता है, मुझे मगर गए रात सपने दिखाता है, जिसके लबों पर मेरा नाम तक नहीं आता, बिना नाम के वो अपने नामों से मुझे अक्सर बुलाता है, दिन भर इधर उधर भवरे सा सब फूलों पर डोलता रात में वो सिर्फ मेरा हो जाता है, पता नहीं और कुछ नहीं, दो लफ्जों की उसकी जुबान, जिसके दर्मियान मुझे वो हिकायते-जिंदगी सुनाता है, आप और तुम के हमारे फासले, शायद कभी कम न हो इन फासलो

मेरा तार्रुफ़

मैं वो हवा हूँ जो हमेशा बहती है मैं वो घटा हूँ जो बरसती रहती है मेरी साँसों की खुशबू से महकते ही सारी फिजा मेरी धरकन से वक़्त की रवायत चलती है मेरी तबस्सुम को तरसते हैं गुल -ओ -गुलज़ार , मेरे तसव्वुर से हूर -ए -जन्नत जलती है मुझसे सुबह होती है , मुझसे शाम ढलती है ...

हमारी याद आती होगी

कभी तो हमारी याद आती होगी कभी तो रात को बेताबी सताती होगी कभी तो माजी टोकता होगा कभी तो आँख रुलाती होगी ... कभी तो सावन की झरी में फिर अरमान मचलते होंगे कभी तो खिज़ा में पत्तों के साथ आंसू झड़ते होंगे कभी तो सर्द रातों में हमारी कशिश जगाती होगी कभी तो हमारी साँसों की गर्मी जिस्म आपका पिघलाती होगी... कभी तो दीदार की तमन्ना में पाँव छत तक ले जाते होंगे कभी तो मिलने की तड़प में ख्वाब हमारे आते होंगे कभी तो हमे फिर छूने की चाह हाथों को तरसाती होगी कभी तो शाम को पांच बजे घड़ी की टिक टिक सुनाती होगी कभी तो दिन ढले बीते पल बुलाते होंगे कभी गुज़रते हुए पुराने रस्ते फिर आवाज़ लगाते होंगे कभी तो बाहें हमे आगोश में भरने को फिर मचल मचल जाती होंगी कभी तो तनहाइयों में हमारी याद आती होगी....

शहर के लोग

मेरे शहर के लोग बड़े मसरूफ रहते हैं खुद ही खुद के नशे में चूर रहते हैं इश्क क्या है और उसकी शिद्दत क्या इन बातों से बहुत दूर रहते हैं ठीक है के हर बाशिन्दे के सिर पे सलीब है सच है के हर शक्स अजीब है अपनी शक्सियत का रुबाब को छोड़ के यहाँ माशूक का गुरुर सहते हैं कोई गिला नहीं है गर वस्ल-ओ-प्यार न हुआ कोई शिकायत नहीं गर दीदार-ए-यार न हुआ अजीब लोग हैं अजीब रवायेतें हैं के यहाँ सब्र से आशिक दर्द-ए-नासूर सहते हैं

एक बार कोशिश करो

आप कब तक, आप कहने की रसम निभायेंगे? तुम तक पहुँचने में और कितना वक़्त लगायेंगे? बदती जा रही है चाहतें हमारी पुरजोर आप कब हमारे इतना करीब आयेंगे? हम गुस्ताखी पर अमादा होने हों को हैं आप कब बीच की दूरियों को मिटायेंगे? अब तलक हमे भी हिचक है बे-तकल्लुफी से आप कब तक ओर तकल्लुफ़ फ़रमायेंगे? इन मासूम रिश्तों को परवान चदने दीजिये आब कब तक इन रिवाजों को निभाएंगे? आपके लफ्जों में इज्ज़त है आशनाई नहीं आप कब हमसे यूँ आशना हो पायेंगे? एक बार कोशिश करो तुम कहने की हमे आपके आप आप में वरना हम बे-मौत मारे जायेंगे

तेरा साया

किसी को कैसे बताएं तब क्या क्या होता है जब रात के अँधेरे में आसमान में चाँद तनहा होता है... जब हरसिंगार खिलते हैं जब हवा बहती है जब मेरा एक ख्वाब तेरे ख़्वाबों में आकर सोता है… जब अपने घर के बाम पर तू खड़ा मेरे झरोखे की तरफ चुपके से झाँक रहा होता है… जब सबा के साथ खुशबू तेरी आती है जब सारा आलम मद मस्त सा तेरे बदन सा महक रहा होता है… तब तेरा मासूम चेहरा तेरी आँखें, तेरी साँसे तेरा साया और तू मेरे पास कहीं खड़ा होता है

Hurricane rita

कुछ तिनके जोड़े हैं, कुछ गुंजल सुलझाए हैं कुछ सपनो को निचोड़ कर हमने रंग बनाए हैं कई फासले तय करे, कई रास्ते साथ लिए कभी धूप चुराकर, कभी साए थाम लिए थोडी सी कच्ची मिट्टी, थोड़ा सा ठंडा पानी कभी दबी हुई सी हंसी , कभी अश्कों की कहानी कुछ तूफ़ान समेट कर कुछ हवाएं लपेट कर हम रीता के नाम से इस दुनिया में आये हैं..... ***** मेरी परवाज़ का अंदाज़ आप यूँ भी लगा सकते हैं के मेरे पंखों में सबा का ठिकाना है जो असमाँ में उडू तो उसको भी झुका दूं के तारों के पार मेरा आशियाना है

एक लड़का

एक नटखट लड़का है कहीं पर जो गीत चुनता है अपने लफ्जों में ना जाने कितने ख्वाब बुनता है उसकी कलम में एक जादू है और हाथों में एक तिशनगी जाने क्या कुछ कह जाता है जाने क्या कुछ सुनता है कभी कभी एक खामोश आवाज़ देता है कभी कभी जोर से फिर चुप हो जाता है उस शख्स का क्या कहना जो खारों से गुलाब चुनता है निगाहें भी बयानी से कभी बाज़ नही आती उसकी तस्वीरों में से भी यू लगे मेरे दिल की सब बातें सुनता है मुझ पे अपने शब्दों की एक खूबसूरत से ओदनी डालता है न जाने कहाँ से वो इतनी रेशमी गज़लें बुनता है

तू इतना ख़ास नहीं

तुम्हारी आँखों की तुम जानो, यहाँ दिल रोता है बिछड़ने का गम मेरा दामन भिगोता है तुम्हारी जिद है अपना दर्द-ए-दिल सुनाने की मेरा क्या, मेरा दर्द मेरे सीने में होता है ***** चोट की टीस, घाव का अहसास देने वाले तू इतना गैर नहीं, और तू इतना ख़ास भी नहीं ओ दर्द देने वाले तेरा भी भला हो के तू दूर भी नहीं, और तू इतना पास भी नहीं

एक ख़ास दोस्त के लिए....

कभी अजनबी था अब दोस्तों से ज्यादा करीब है मेरी जान का हाफिज़ और मेरा हबीब है तुझसे मिलाने वाला महरबानी कर गया उसके रानाइयों के सदके तू मेरा नसीब है.... मेरे दर पे सिर्फ जोगी आते हैं आपके आने से हम पे रंग-ए-जमाल आ गया सर उठा के उसपे जब आँख भर देखा तो चेहरे पे मेरे, बेकरार दिल का हाल आ गया जो दर्द मिट गया उसकी शिद्दत भी मिट गयी जो ज़ख्म भर गया उसकी टीस घट गयी तू बारहा न खोल उन बंद खिड़कियों को जो वक़्त के थपेडो से खुद ही सिमट गयी तबस्सुम मेरे चहरे पे भी खिल खिल जाती है जब तेरा खिलता हुआ मुजस्मा नज़र आता है तेरी नज़र गुफ्तगू करती है मेरी निगाहों से तेरा मुस्काना उसपे तेरा जमाल-ए-रू बढाता है

आपकी नज़र

मेरे दिल का हर गोश कभी मोहब्बत से आबाद था यहाँ गुंजाइश नही थी किसी गम की होने की बस सोया सा, बेसुध सा, गुमसुम सा पड़ा था ये आपने चुप चाप से कैसी दस्तक दी..... बस कहीं एक खालीपन सा छा रहा था न रंजिश थी इसमें न नफरत इसमें थी जगाया कितने अरमानों को हौले से पुकार के कितनी मासूमियत से आपने ये प्यारी हरक़त की....

चेहरे में.....

मेरे चेहरे में कुछ गम्गीनियाँ थी, कुछ बे-बाक सी बे-तस्किनियाँ थी, कुछ कच्चे से ज़ख्मों के निशाँ थे, कुछ दफन हुए अरमानों के पैगाम थे, अश्कों के बे-हिसाब सैलाब भी थे, कहीं कुछ टूटे हुए खवाब भी थे, मगर परदे में से सिर्फ शोखियाँ दिखती हैं, हिजाब से तिजारत हो तो सिर मुस्कुराहटें बिकती हैं, इसलिए पर्दा नशीं होकर सामने आते हैं, हम अक्सर अंधेरों में दिन बिताते हैं......

ऐसा भी हुआ कुछ....

ये आपकी नज़रे इनायत है जनाब हमारा जलवा नही जो जादू सर चढ़ के बोले उसका खाना खराब है *** इतनी तारीफ़ न कर के में इतरा का आइना तोड़ दूं कुछ झूठ बोला है , तो कुछ सच भी फरमाइये ये मेरा जमाल नही आपकी आँखों का धोका है हुजुर अब इस तरह मेरा गुरुर न बदाइए *** आपको आपकी खासियत का पता नही इस नियामत को हमने महसूस किया है जब कभी अपनों ने हाथ छोडा है मेरा आपने झुक कर मेरा हाथ थाम लिया है *** हिज्र का आलम कुछ ऐसे बिताया गया के तुझको ही सोचा किये तुझको ही ज़हन में बिठाया गया..... *** मेरे मौला मेरे अजीज़, मेरी दीवानगी का कोई हासिल नही जब जब जोगन बनी, तब तब उसका पता बिसर गया *** मेरी बातों पे यकीन हैं उन्हें इस बात का यकीन मुझे नहीं कई बार मुझसे वादा खिलाफी हुई, कई बार वादा तोड़ा गया..... *** जिसके दर से दामन भरने की तमन्ना थी मेरी उसका हाथ खैरात देने को उठा ही नही....

जमाल-ए-रु

मुद्दा ये नहीं ये कौन आबाद है मसला ये भी नहीं कौन बर्बाद हुआ मोहब्बत का सिला एक ये भी है न सबब का पता न सवाल का..... जादू से छा जाते हो तुम मेरी हस्ती पे नशा भी कुछ कुछ हो जाता है तेरी दोस्ती के सदके मेरे हमसफ़र मेरा मुझपे यकीं सा हो जाता है ये मेरा कुसूर नही के कदम आपके डगमगाने लगे एक आपकी नज़र नशीली है, एक आपका ....

मुझे आजाद कर दो...

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न इजहार तू कर न इकरार तू कर मैं एक आजाद पखेरू हूँ मुझे आजाद तू कर मेरी खुशबू, तेरी नहीं मेरी आरजू, तेरी नहीं मैं एक हवा का झोंका हूँ मैं बहूँ, आगाज़ तू कर

बिखरे...बिखरे से...

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ऐसा तो नहीं है के हम में वफ़ा नहीं, ऐसा भी नहीं के तुम बेवफा हो कुछ वक़्त का साथ न मिला, कुछ मौके ने साथ न दिया आज तुम्हारे पैगाम का कोई इंतज़ार करता है, ज़रा पुकार कर देखो,शायाद जवाब आ जाए निगाहों की हसरतें बयान कर देते तो क्या बात होती, बैचानियाँ कुछ तुम में नज़र आई ...बैचानियाँ कुछ उसमे नज़र आई दिल की बैचैनी का सबब भी तुम हो करार भी तुम हो के मेरा मर्ज़ भी तुम हो और चारागर भी तुम हो निकल कर अपनी हदों से आगे, उनकी हदों को पार करना है के अब मस्सर्रत का कारवां उसके घर जाकर रुकेगा ....

ज़रा सोचो...

किन किनारों की बात करते हैं जनाब जहाँ लहरें दम तोड़ती हैं जहाँ किश्तियाँ सागर तोलती हैं जहाँ खारे पानी का एक सैलाब आता है जहाँ हर पेड़ मुरझा जाता है दर्द की शिद्दत किनारा नहीं बताता है दर्द हमेशा समंदर अपने दिल में छुपाता है बात करो जब चोट की तो, सफीने से पूछो जिसको किनारा छोड़ देता है और समंदर सँभाल नहीं पाता है

दुआ के साथ

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इस दिल न पूछ ए दोस्त इसमें सिर्फ प्यार है अपने दोस्तो के लिए दुआएं बेशुमार हैं इस प्यार की हदें कोई रिश्ते से नहीं बंधी इस प्यार में कोई उमीदें भी नहीं इस प्यार का जज्बा पाक है के इसमें एक अटूट ऐतबार है अपने दोस्तो के लिए दुआएं बेशुमार हैं

तेरी याद आई

फिर रात की तनहाई फिर तेरी जुदाई फिर रुका हुआ सा वक़्त फिर बारिश ने आग लगाईं फिर एक उदासी चांद की सारे आसमान पे छाई अब ऐसे मौसम में फिर बेदर्दी तेरी याद आई

पहलू में

क्यों मुझसे वो पता पूछते हैं मेरा जब उनके पहलू में वक़्त बिताया जाता है खुद को खुद की खबर तक नहीं होती जब उनका चेहरा सामने आता है

मेरी चौखट

मेरी चौखट पे क्या मरेंगे हुजुर मेरे दयार पे की फकीर सर झुकाते हैं यहाँ मरने वाले भी बाराहाँ जी जी जाते हैं आपकी बहारें ओदकर में ज़रुर आपके ठिकाने आउंगी देखें आप क्या पेश करते हैं देखें आप क्या करम फरमाते हैं न यारी है अपनी, न दिलदारी है उस पे क्यों आप हम तलाशा करते हैं क्यों इतने पैगाम भेजते हर रोज़ क्यों हर वक़्त हमे यूँ सताते हैं ....

कोशिश

कामयाबी भी कोशिशों के कदम चूमती है हर चीज़ जहाँ में कोशिशों को ढूँढती है रवानियाँ होती है ख़्वाबों में अक्सर ख्वाइशें असलियतें मगर सिर्फ मेहनत का पता पूछती है प्यार मौका परास्त नहीं प्यार मौका देता है जहाँ में प्यार देने वाला प्यार ही लेता है प्यार में कामयाबी तो सबको नसीब नहीं होती प्यार का जज्बा मगर कामयाबी से भी कीमती है...

मेरी तमन्ना

मेरी तमन्ना न कर ए दीवाने मेरी हस्ती ही क्या है इस ज़माने में यहाँ हर मोड़ पे हुस्न पड़ा हुआ है हर कोना इश्क से सजा हुआ है पहनके रिश्तों के तागे ओद ले रास्तों के साए के यहाँ हर रहगुज़र पे कोई अपना ही खडा हुआ है

ख्वाब

जो दिल में रहे उसे ढूंढें क्यूँकर जिसका ठिकाना ही मेरा मकान है वो बात दूसरी है के उनका यहाँ से गुज़रना, बेशक मेरी जिंदगी पे एक अहसान है कांच के ख़्वाबों को आँखों में ही रहने दो कहीं गिर गए तो टूट जायेगे भला ख्वाब टूट गए तो बताईयें क्या आप बे-ख्वाब जी पायेंगे???? क्यों मुझसे वो पता पूछते हैं मेरा जब उनके पहलू में वक़्त बिताया जाता है खुद को खुद की खबर तक नहीं होती जब उनका चेहरा सामने आता है याद का कोई कसूर नहीं, के जब तब आ जाती है, ये उसके दीदार की ख्वाइश है जो हर वक़्त सताती है, रूबरू होना तो मुमकिन नहीं मगर, एक सूरत है जो ज़हन में अक्सर छा जाती है.... अब भी तेरे इंतज़ार में कोई है, अभी शायद तुझको उसका ख्याल आया है ज़रा दरवाजा खोल के देख, ठंडी हवा झोंका उसका पैगाम लाया है हर रोज़ एक हिकायत लिखते हैं दर्द-ए-जुदाई की हर रोज़ फिर उसको मिटा देते हें, तेरे तसव्वुर की तपिश में जलते हैं और हर रोज़ एक नया गम गले लगा लेते हैं

हिजाब में

हमारी पलकें झुक कर भी बातें करती हैं हौले हौले दिल की बातें यूँ ही कहने दें पर्दा-नशीं रहना हमारी फितरत है हिजाब में हमे यूँ ही रहने दें खुल के मिलना रुसवाई करता है दुनिया की आँखों में हर लम्हा खटकता है मुस्कुराने से हमारे, लोगों का दिल धड़कता है हमे बस अपनी खामोशी में यूँ ही रहने दें हौले हौले दिल की बातें यूँ ही कहने दें

उसको हमारी याद तक नहीं आती...

शिकायत करते हैं वो अहवाल न देने की, मगर अब उनकी चिट्ठी तक नहीं आती, कभी गुफ्तगू हो जाती थी, लेकिन अब तो उनसे आवाज़ तक सुनाई नही जाती, न कोई पैगाम, न रुक्का, न कई दिनों से कोई खैरियत की खबर आजकल उनसे हमारी बात करने की फरमाइश भी पूरी करी नही जाती पहले कभी एक खुशबू उनकी हवाएँ ले के आती थी अब हमारे देश की बदली वहाँ के आस्मा पे नही छाती वक़्त वक़्त की बात है, वक़्त से कोई शिकायत की नही जाती जिसके लिए बैचैन हो उठते हैं आज भी, उसको हमारी याद तक नहीं आती

ख्वाब बुलाते रहे..

यहाँ हर शख्स कुछ ढूँढता है कुछ पाने की कोशिश में अब किसको क्या मिले ये या किस्मत जाने या खुदा… सुबह की आगाज़ हो गयी तेरे सलाम से देखें अब अंजाम क्या होता है.... रौशनी बिखर जाती है दोस्तों का सलाम जब आता है ज़र्रा ज़र्रा निह्कत भर जाती है हर गोश मुस्काने लगता है जार जार मेरा दिल भी तस्लीम करता है बार बार कल फिर तुम्हें मेरे ख्वाब बुलाते रहे तुमको मेहमान बनाने का इरादा था न तुम आये न कोई पैगाम आया मगर लुत्फ़ उस इंतज़ार में वसल से ज्यादा था... आपकी खामोशियाँ बहुत आवाज़ करती हैं कितने सुनसान उनसे आबाद होंगे जो बे-जुबां होकर आप इतना कह जाते हैं बयानी पे आपकी और कितने बर्बाद होंगे हम जले हुए खुद हैं उनको क्या जलायेंगे दिल की आग को आतिश से ही बुझाएंगे मर कर किसने देखा है जनाब हम तो जीते जी ही शमा बन जायेंगे

यादें

तुझको भूलना मेरे बस में नही लेकिन तुझे याद कर के भी जीया नहीं जाता तेरी यादों के गम में पी लेते हैं के शादमानी में अब पीया नहीं जाता अपनी जिद की बात छोड़ दे ए सनम मेरे यहाँ ज़िन्दगी को शर्तों पे जीया नहीं जाता अब ये सवाल पूछा तो टूट जायेगा दिल मेरा के हर बार चाक दामन सीया नहीं जाता

गुस्से में..

तुम करो गलती तो वो मज़ाक बन गयी हम करें मज़ाक तो वो गुनाह में शामिल हो गया हमको दी सज़ा और सज़ा हमने कबूल की आपसे की शिकायत तो दिल आपका घायल हो गया

किस तरह बुलाएं उन्हें..

किस तरह अब उनको बुलाएं, कोई तरकीब नज़र नहीं आती उनकी तस्वीर सा अब तो पलकें भी उठाई नहीं जाती सताने का गर शौक था उन्हें, तो हम भी लुत्फ़ उठाते थे बेहिसाब उन गुस्ताखियों को अब तरसते हैं क्यूंकि अब तक वो शरारतें भुलाई नहीं जाती उसको हर पल जूनून था मेरी मोहब्बत का अपना हाल भी मानिंदे आशिक था क्या करें बेबस हैं कि इश्क की फितनागिरी यूँ भी उतारी नहीं जाती

बर्दास्त करना सिखाती हैं

हमारी हदें दरिया की लहरें हैं जो बाँध बनने पे ही काबू आती हैं उनकी हदें सागर सी गहरी हैं जो साहिल तक आकर भी लौट जाती हैं हमारी हसरतें एक जिद बन कर अक्सर उन्हें सताती हैं उनकी ख्वाइशें उनके लबों पे आकर खामोश हो जाती हैं हमारी मोहब्बतें एक तपिश बन कर हमे दिन रात जलाती हैं उनकी चाहतें चांदनी बनकर नूर हमपर बरसाती हैं हमे हमारी दूरियां हर वक़्त हर लम्हा तड़पाती हैं मगर उनकी मजबूरियां उनको ये दूरियां बर्दाश्त करना सिखाती हैं...

हमने उसको हर वक्त महसूस किया हैं

ना तलाशते थे ख़ुशी, न गमों का हिसाब रखते हैं हमने जिंदगी की हर शक्ल को खुल के जीया है यहाँ आब-ओ-हयात और ज़हर में ज्यादा फर्क नहीं हमने दोनों को बड़े शौक से पीया है कभी जाम में नशा नहीं होता नशे का अहसास हमने खाली प्याले में भी किया है उसके शबाब का कोई सानी नहीं इस जहाँ में जिसकी अदाओं को हमने आँखों से पीया है एक लम्हा भी मेरे पास नहीं, एक लम्हा भी दूर नहीं न मेरा है, न पराया, न भूला, न याद आया फिर भी वो एक शख्स हमेशा मेरे साथ जीया है....

लाश की मंडी लगती है....

चौराहे पे ये दुनिया कितनी खूबसूरत दिखती है मगर यहाँ इंसानियत हर मोड़ पे बिकती है ए दोस्त, न आंसू बहा किसी भी जनाज़े पे के हर चौराहे पे लाश की मण्डी लगती है कहीं खून खून को नही पहचानता कहीं बचपन की कहानी जवानी में ढलती है ए दोस्त इस ज़मीन पे ऐसा भी होता है औरत की आबरू सरे-आम लुटती है... सिर्फ मतलब की इस दुनिया में हर चीज़ की कीमत होती है हर शय का सौदा होता है हर रूह पे बोली लगती है

शिकायतें

जब तेरे पास वक़्त ज्यादा था ओर मुझपे वक़्त की महरबानियाँ न होती थीं तब मेरे घर के दरीचे में अक्सर उसकी परछाइयों की निशानियाँ होती थीं वो हर लम्हा मुझपे निसार करता था उसका हर ख्याल मुझसे ही वाबस्ता था जब मेरे पास वक़्त कुछ कम होता था तब उसको मेरे न मिलने पे परेशानियाँ होती थीं सिर्फ मेरी बेबसी थी और उसकी बेशुमार शिकायतें उसकी नाराज़गी थी ओर बेपनाह मोहब्बतें लेकिन मेरे पास सिर्फ उसको देने को मेरी मजबूरियों की कहानियां होती थीं आज मेरे पास वक़्त है, उसके पास नहीं हर लम्हा मेरा उसके तस्सव्वुर में गुज़रता है अब मेरे यहाँ दौर-ए-खिजां है और उस तरफ बहार है जहाँ कभी वीरानियां होती थीं

फिर पहचान होगी.....

उनसे मिलने का न कोई जरिया है न तरकीब और न उम्मीद कोई, मगर इस बात पे ऐतबार है, के ज़िन्दगी कभी तो मेहरबान होगी कभी तो फिर मुलाक़ात होगी, कभी तो फिर पहचान होगी....

फ़क़त मुद्दत-ए-जुदाई को रोते हैं....

खुली आँखों में भी उसका ख्वाब बसता है उसकी हसरत में ये दिल तरसता है उसको मेहमान करने की ख्वाइश मन में है जिसका रास्ता मेरे दिल से होकर गुज़रता है कई मर्तबा एक शोर उठता है सीने में जिसकी चुप्पी ज़माने को सुनाई देती है मेरी आँखों से सबको इल्म हो गया है आजकल हमारी चर्चा ज़माना करता है ये ज़िन्दगी आखारिश मुक्कम्मल होगी फ़क़त मुद्दत-ए-जुदाई को रोते हैं फिर एक दिन लौटना है उसे के अब यहाँ वक़्त भी उसका इंतज़ार करता है

पुराने दोस्त

पुराने दोस्त पुराने यार पुराने सपने और पुराना प्यार कभी भुलाए से नही भुलाए जाते हैं जिंदगी के पेचीदा मोड़ो पे जब तनहा होते हैं तब अक्सर वो सब रह रह के याद आते हैं.... वो किस्से वो कहानियां वो शरारतें वो छेड़खानिया वो किताबों की जिल्द पे सजा के नाम लिखना वो खट्टी मीठी इमली के लड्डू और कच्चे आम उम्र के इस पड़ाव पे जब तब अतीत को वापस बुलाते हैं

एक दोस्त के लिए....रात भर के ख्याल...

मुझे सहर का न इंतज़ार है न तलाश है जिस रात तेरा ख्वाब मेरे पास है इन आँखों की गुस्ताखियों को बक्श दे के इनके लिए बस वो चेहरा ही कुछ ख़ास है ... जाने क्या दिल ढूँढता है, जाने इसको किसकी तलाश है मगर जो वो शख्स है, मेरे वजूद के आस पास है मेरी आँखों में शरारे बसते हैं के रात भर तेरे खवाब सवरतें हैं इस बरस भी बारिश आएगी , इस बरस भी बादल छायेंगे बूंदे तो उनके साथ होंगी लेकिन मौसम को दूर छोड़ आयेंगे उसके बिना सावन अधुरा रहेगा वो नहीं तो अब्र सूखा सा बहेगा उसके बिना आबशारी कम लगेगी प्यासे मन को वो भिगो ना पायेंगे आपकी नवाजिश है वरना हम क्या हैं बस, एक टूटा ख्वाब, एक टूटा पैमाना एक बिखरा ख्याल

आज कहने दो....

इस दिल में कितने अरमान मचलते हैं हर रोज़ हम कितनी बार तुमपे जीते हैं और तुम पर ही  तो रोज़ मरते हैं कितनी बार सांस लेते हैं याद नहीं जितनी बार भी मगर सांस लेते हैं हर सांस हर वक़्त तेरे नाम करते हैं न अहसास होता है सर्द हवाओं का न ही कभी गर्मी की लू सताती है तेरे नाम से बस  बारिश को याद करते हैं

गुमनाम

न तेरे आने से पहले में गुमनाम थी न गुमनाम हूँ तेरे जाने के बाद सिर्फ खुद का नाम तक भूल गया तुझे मेरी जिंदगी में पाने के बाद लोग जलते थे तुझसे, लोग जलते हैं मुझसे हम भी जल गए तेरे दूर जाने के बाद मुझे मेरे वजूद तक का अहसास नहीं, तेरे नाम से मेरा नाम जुड जाने के बाद

दूरी

बस, अब ओर सहा नहीं जाता तेरे बिन तनहा रहा नहीं जाता तुझ तक पहुँचना मुमकिन नहीं मगर तुझे लौटने को कहा नहीं जाता वो चाँद तुझसे ज्यादा करीब है तेरी दूरियों का उसको भी अहसास है उसकी चांदनी मेरा दर्द समझती है वरना उसका डोला हर रात नहीं आता

हर सुबह तेरा ख्याल आता है....

मुद्दत हो गयी है तेरा दीदार किये फिर भी हर शब तेरा चेहरा जगाता है हर लम्हा तुझसे वाबस्ता है हर सुबह तेरा ख्याल आता है ये ज़िन्दगी रुक सी गयी है तेरे बिन आईने अब भी तेरा अक्स दिखाता है मेरे वजूद के हर पहलू में आज तक तेरा साया झिलमिलाता है न लौट कर आती है कभी उम्मीद मेरी मगर दिल ना-मुक्कमल इंतज़ार कराता है हर गोश में मेरे ख्वाब्गार के सिर्फ तेरा सपना समाता है कोई वादा नहीं किया कभी तूने, लेकिन किसी यकीं पे अब भी वक़्त आस लगाता है सद् कोशिशों के बावजूद जाने क्यों भूल कर भी हर रोज़ तू याद आता है

बारिश के 3 रूप...

जब कभी बारिश होती है कच्ची मिट्टी की खुशबू संग लाती है हम इमारतों में बैठ कर लुत्फ़ उठाते हैं गरीबी टूटी झोपडी में बाल्टी लगाती है कही सूखा सूखा कच्चा फर्श भीग न जाए टपकते पानी में कहीं बह न जाए सारी जमा पूँजी इसलिए खुदा से बरसात बंद करने की दुहाई लगाती है गीला गीला घास का गलीचा, खिलते हुए फूल कुछ खुशनुमा जोड़े लड़के लड़कियों के बाग़ में पेड़ों के पीछे खडे हुए बरसात में बारिश किसी किसी के लिए प्यार की सौगात लाती है वहीं कभी फिसल गए कोई बाबू जी डगमगा के सौ सौ गालियाँ देते हैं मुनिसिपलिटी को कभी गड्दो में घुटने तक पानी में बचपन मासूमियत से कागज़ की कश्तियाँ तैराती है **** एक कप काफ़ी का मेरे सामने पड़ा है खट्टी मीठी इमली की चटनी पकोडे के साथ बस नही है तो तेरी मौजूदगी ओर मेरे हाथों में तेरा हाथ बारिश के इस मौसम में जाने क्यों आती है, बहुत आती है किसी अपने की याद दिल खाली है आँखें भरी हुई, आखिर कोई कैसे रोके ये मचलते हुए जज्बात **** गरम गरम चाय की चुस्की टिप टिप पड़ता पानी ओर ठंडी ठंडी हवाएं दिल चाहता है ओढ़ के इस बारिश को दूर कहीं इसमें खो जाएं ... बेलौस बरसता, टूटता आसमा काले बादल बिजलियाँ चम

मोहब्बत का एक इम्तेहान ऐसा भी होता है

पतंगे उड़ते हैं शमा की तरफ, शम्मा उन्हें जला देती हैं मोहब्बत का एक इम्तेहान ऐसा भी होता है जब जीने की आस में, प्यार करने वाले जिंदगी ढूँढ़ते हैं ओर जिंदगी मौत बन के उनको गले लगा लेती है हर रात शमा पिघलती है या रोती है मालूम नहीं लेकिन हर रात ढलते ढलते सुबह को अजमा लेती है आफताब की रौशनी में, पतंगे बेचारे दिखते ही नहीं माह की चाह लेकिन चकोर की नींदे चुरा लेती है

तारीफ आपकी

तारीफ करके दिल लुभाना कोई आपसे सीखे किसी को आसमा पे चडाना कोई आपसे सीखे हम तों बस अपने दिल की आवाज़ सुनते हैं ज़र्रे को आफताब से मिलाना कोई आपसे सीखे न कर मेरी तारीफ ए दोस्त मेरे न काबिल हूँ में, न कुछ हासिल किया, वो लफ्ज़ जो आपको पसंद आये बस एक जज्बा है जिन्हें शब्दों में बोल दिया, हम तों बस नज्में बुनते हैं मीठी मीठी बाते बनाना कोई आपसे सीखे चुन के कुछ तजुर्बे अपनी ज़िन्दगी से कुछ दूसरों की जीस्त में झाँककर उठाये सबको फिर तराश के अपनी कलम से इन बिखरे पन्नों में बिछाए हम तों टूटे दिल के टुकड़े चुनते हैं इनमे टुकडों में से मोती उठाना कोई आपसे सीखे

दोस्ती के लिए...

हमसे नाराज़ होकर कहाँ जायेंगे जनाब हम तो आपकी सांस सांस में बसते हैं ये न सोचना के ये प्यार का इजहार है ये लफ्ज़ हमारे तो तेरी दोस्ती पे सजदे हैं दोस्ती की है, तो निभानी पड़ेगी हुज़ूर दोस्ती में दूरी, सिर्फ पराये ही समझते हैं अपने मिले तो अच्छा लगता है, न मिले तो भी दोस्तों के दरम्यान फासले कभी टिकते हैं????

Against the paintings of Hindu gods - M.F. Hussain

ये लोग जो दिलों को बांटने का काम करते हैं के अपनी तस्वीरों में खुदा को बदनाम करते हैं क्या उनका खुदा हमारे खुदा से अलग है गर नही तो ये क्यों ऐसा अंजाम करते हैं किसी शख्स की सूरत मज़हब नहीं बनता है कौन सा धरम जो नफरत को है सिखाता ये चन्द लोग परदे को बेपर्दा सरे आम करते हैं कुछ लोग जो दिलों को बांटने का काम करते हैं क्या उसका वजूद मेरे वजूद से इतना जुदा है? क्या हिजाब में सजता सिर्फ उसका खुदा है? क्यों फिर हमारी बेटियों को वस्त्रहीन सुबह शाम करते हैं ये चन्द लोग जो दिलों को बांटने का काम करते हैं तुम हिन्दू हो तो काफिर हो हम मुस्लिम है हम काबिल हैं तुम दोज़ख के हक़दार हो हम जन्नत के हासिल हैं ऐसे शैतानी इरादों को चलो हम नाकाम करते हैं इन चन्द लोगों को बेनकाब चलो सरे आम करते हैं

तू एक जाम है....

कुछ करने की तमन्ना है अब तक बाकी वरना इस जीने में क्या रखा है किसी की तस्वीर छाई है ज़हन पे इस कदर के दर्द के सिवा सीने में क्या रखा है... क्यूँ कुफ्र का भार उठाये फिरते हैं बुतपरस्ती का इल्जाम भी अक्सर लगता है तेरे नाम पे सजदा करके जी रहे हैं यहाँ वरना इस जीने में क्या रखा है .... एक ओर पैमाना भर दिया साकी ने हर जाम तेरा नाम लेकर पिलाता है इस मयखाने में सब तेरे बीमार हैं वरना यहाँ पीने में क्या रखा है ... डूब जाना मेरी तकदीर को हासिल न था साहिल ने भी मगर मुझे ठुकरा दिया नाखुदा तू है तो लहेरें पार ले जायेंगी वरना इस सफिने में क्या रखा है...

अब भी....

क्या अब भी उसको मेरी याद आती होगी? क्या अब भी मुझसे वस्ल की प्यास उसको सताती होगी? जो मेरी चाहतों के दायरे से परे है, क्या अब भी उसपे इश्क की दीवानगी छाती होगी? एक दूरी सी दरम्यान आ गयी है कई दिनों से क्या उसकी उंगलियाँ भी उसे दूरी नपाती होंगी? नए मुल्क की नयी खुशनुमा सूरतें क्या ख्वैशों में एक नयी आग लगाती होंगी? जिसमे मेरी साँसे बस्ती हैं आज भी क्या उसकी धड़कन भी मेरा नाम बुलाती होगी? ये दिल जिसके लिए तड़पता है दिन रात यहाँ क्या उसको भी मेरी तड़प सताती होगी?

आशिक

मेरा भी एक आशिक था जो जाने कहाँ खो गया मुद्दत हुई है उसका जूनून-ए-इश्क सो गया अब तुमसे हाल-ए-दिल न बांटे तो क्या करें जो दिल में बसता था वो कब से पराया हो गया न खोज खबर लेता है अब न अपना हाल बताता है न जाने क्यों अब वो हमसे नज़र चुराता है वक़्त था हमारा कभी अब वक़्त किसी ओर का हो गया मेरा भी एक आशिक था जो जाने कहाँ खो गया

मानिंदे दीवानगी

अब बेचैनियाँ भी बेचैन हो गयी हैं तेरे रास्तों को तकते तकते...... मेरी रहगुज़र की धूल भी तेरे सजदे को बेकरार है तू सबब है मेरी बे=तस्किनियों का तू वजह मेरी उनींदी रातों का नहीं जानता कोई और यह मेरे दिल को तेरा इंतज़ार है शब् भर जो ख़्याल जगाता है एक पलक सुलाके जगाता है उस बे-परवाह को गर्चे पता नहीं जिस से मुझे मानिंदे दीवानगी प्यार है.....

बशर को दर्द नहीं

शहर बेदर्द नहीं गरचे बशर को दर्द नहीं यहाँ हर आदमी सिर्फ खुद के लिए जीता है ईंट पत्थरों से तू क्यों शिकवा करे के यहाँ इंसान ही इंसान का लहू पीता है इस दुनिया में कुछ लोग ही भले हैं वरना ये कब से खाली हो चुकी होती ज़ख्म देने को सौ हाथ खडे हो जाते हैं ज़ख्म को मगर कोई विरला ही सीता है तेरा सीना अगर किसी अपने ने चाक किया तू कोई रंजिश न रख ए दोस्त मेरे दिल तोड़ने वाले भी इसी जहाँ के हैं दिल जोड़ना वाला भी इसी दुनिया में जीता है इसी लिए मेरा ये मशवरा है दोस्त तुझे के ला कहीं से मीठे पानी की लहर दर्द के इस समंदर में फ़क़त हर स्क्हस अश्कों का खारा पानी पीता है

बहुत दिन बाद....

बहुत दिन बीत गए गुजरी बहुत सी रातें भी बस न बीता तेरा इंतज़ार ओर याद आई तेरी बातें भी हर वक़्त सताता रहा ज़हन को दूर रह कर भी ख़याल किसी का हर वक़्त तसव्वुर में तेरा चेहरा ओर अपनी वो मुलाकातें भी कुछ देर के लिए जो बिछड़े तुमसे सब सूना सूना सा हो गया न नींद आई सुलाने को न आई ख़्वाबों की सौगाते भी..

अनजान ....

अनजाना, अनदेखा एक शख्स , गुज़रा मेरी गलियों से जाने कैसे बहारें बाँटता, खुशियाँ बिखेरता गुफ्तगू करता कलियों से जाने कैसे न आवाज़ सुनी उसकी कभी न अंदाज़ देखा उसकी आँखों में लेकिन पलता एक खवाब देखा आरसी में अक्स कभी दिखेगा तो ज़रुर मगर तब तक बात करता है उँगलियों से जाने कैसे

सलाम

दोस्त को सलाम दोस्ती को सलाम, दोस्तों की हर ख़ुशी को सलाम जिंदगी के हर मोड़ पे गुज़रती जिंदगी को सलाम तेरे जैसे अपने की सादगी को सलाम, नाराज़गी को छोड़ने पे तेरी जिन्दादिली को सलाम

Global warming

इस बरस भी बारीश होगी इस साल भी बादल छायेंगे बूंदे तो उनके साथ होंगी लेकिन धरती के मौसम बदल जायेंगे ये कुदरत भी रो पड़ेगी और सारी इंसानियत आंसू बहायेगी जब सहरा तो सहरा रहेगा मगर जंगल भी सहरा बन जायेंगे इस हयात की ना पूछ ए दोस्त मेरे यहाँ ऑर हर कोहराम होगा जब दरख्तों पे परिंदे न होंगे और सारे पहाड़ पिघल जायेंगे हर तरफ दिन रात सिर्फ एक आग होगी, ओर होगी तिशनगी की एक इन्तहा हर रोज़ जब के काफिले निकलेगा ओर पानी को ढूँढने जायेंगे न दरिया कोई रहेगा बाकी न सबको रोटी मिलेगी खारे पानी के सैलाब में से एक चुल्लू भर पानी भी न पी पायेंगे बस, रोक लो बर्बादी के कारवां को कुछ तो रहम मांगती है ज़मीन भी उस वक़्त की सोचो जब हमारे बच्चे इस ज़मीन पर रह भी ना पायेंगे

तूफ़ान...

हवाएं कुछ यूँ चली उसके गाँव से के तूफानों को भी हरा दिया उसको बर्बाद करने को निकला था मगर खुद ही को उसने तबाह किया बड़े खौफनाक इरादे थे उन हवाओं के बहुत संगीन उन्हों ने गुनाह किया उस तूफ़ान को आस्मां से उतार कर गहरे समंदर अकेले में बहा दिया

धर्म के नाम पे....

बन्दा कोई थकता नहीं ज़ुल्म करते करते, ज़ुल्म मगर खुद पे कौन सहता है , फितरत से शिकारी हैं सब लोग यहाँ , इसलिए शायाद बेज़ुबान डर के रहता है ... ये कुदरत भी चुपचाप देखती है लहू बहते के यहाँ रोज़ सड़कों पे खून बहता है, जिसमे आदमी अब तक भी जिंदा है, जाने वो इंसान कहाँ रहता है .... दरिया समंदर बाँट लिए लोगों ने इस ज़मीन पे लकीरें खींच दी ज़ंग जारी है हर मुल्क में के देखें अब आस्मां पे कौन रहता है ... बस कर अपनों को कत्ल करना के दर्द सबका जिस्म बराबर सहता है छोड़ दे उस मज़हब को जो , इंसान को इंसान से अलग होने को कहता है तोड़ दे उस शक को जो आजकल अपनों के दरमियाँ रहता है फिर किसी का घर न जला क्यूंकि हर घर में एक परिवार रहता है... मत तोड़ गरचे किसी के ख्वाब नफरत से बा-मुश्किल जो आँखों में टिका रहता है अरे बन्दे खौफ कर उस खुदा का जिसके नाम पे तू ये ज़ुल्म करता-ओ-सहता है

जन्मदिन मुबारक

मेरी दुआओं का काफिला निकल पड़ा तेरी रहगुज़र को शादमानी बिखेरता हुआ, रफ्ता रफ्ता राहों में तेरी खुदा आपको ज़माने भर की इनायतें बख्शे ता-उम्र बस इतनी सी गुजारिश है उस परवरदिगार से मेरी

पराया ....

तन्हाई को ओढ़कर जीए जाते हैं नाब-ए-ज़हर हम पीये जाते हैं भीड़ में घिरे रहते तो हैं हर वक़्त लेकिन, एक अपने की तलाश किये हैं जो पराया था अपना बन के सताता है कैसे हर शब ख्वाब बन के आता है कैसे क्यों ज़िन्दगी उसको अब तक ढूँढती है क्यों उसका इंतज़ार रोजाना किये जाते हैं न हाथों की लकीरों में समाया है न तकदीर ने उसे हासिल कराया है न रिश्तो नातों का बंधन है उसपे फिर क्यों हम उसकी हसरत किये जाते हैं एक चाँद बस सांझा है हमारी दूरियों में बहुत दर्द दिल सहता है हमारी मजबूरियों में जागते हुए उस पराये का नाम नहीं ले सकते नींद में मगर उसको आवाज़ दिए जाते हैं

किस्मत .....

न बदनसीबियों से घबरातें हैं न खुशनसीबियों पे इतराते हैं हमारे हालात हैं ऐसे के हम सिर्फ किस्मत की महरबानियों पे सुकून पाते हैं.... न लकीरें बदलते कभी देखी हैं न तकदीरें सवरते कभी देखी हैं हम जहाँ थे वहीं पे खड़े हैं बस खुद को ही बार बार आजमाते हैं.....

दोस्ती........

एक अनजान से कुछ इस तरह आशनाई हुई के शख्स वो अपना सा लगने लगा मेरी कलम का दिल हर लफ्ज़ में जाने क्यों खुद ब खुद उसका नाम जपने लगा ये अचानक से हुई मुलाक़ात उससे ओर यहाँ का मौसम हँसने लगा कब से सहरा में खड़े थे ओर, वो आया तो बेलौस बादल बरसने लगा....

हम जीना भूल जाते हैं?

जिंदगी में गम सौ बार आते हैं मगर क्या हम जीना भूल जाते हैं? जीया न जाए, तो भी जीना पड़ता है जी कर ही हम गमों से निजात पाते हैं... कौन कहता है के हँसना आसान है लेकिन लोग यहाँ आंसुओं को भी हंसी में छुपाते हैं सबको यहाँ सब कुछ नहीं मिलता मगर फिर भी लोग पाने की उम्मीद पे जीए जाते हैं ये ज़रूरी तो नहीं के सबको प्यार मिले इस जहान में कुछ लोग यहाँ बिन प्यार के भी उम्र बिताते हैं ए दोस्त मेरे, न कर गम, न आंसू बहा के हम जैसे लोग गुमो में भी मुस्कुरातें हैं

वो बोसा

मेरी नाज़ुक गर्दन पे,, तेरा वो बोसा आतिश भरा, उफ़, ऐसी अजब हरारत, दम अब निकला की अब निकला, मुलायम पैकर, तराशा हुआ, मरमरी और रेशमी, तेरी आँखों की गर्मी से, अब पिघला की अब अब पिघला, होंठ मखमली कांपते हुए , सुर्खी आफताब की, तेरा दिल मचल के, न तब संभला न अब संभला, नर्म गेशुओं की छावं, झुका के तेरे चेहरे पे, मेरा आंचल अनजाने में, जो ढला के यूँ ढला...

हर सांस पे तेरा नाम लिखा है

कितनी बार तुझे याद किया ये याद नहीं के यहाँ तो हर सांस पे तेरा नाम लिखा है ईद के रोज़ रात सुनसान बीत गयी आज ईद हुई, के आज तू दिखा है... बेच के खुद को बिन दाम के खाली हाथ खडे हैं तेरे कूचे में इक सोच हैरान किये जाती है तू कितने में ओर कहाँ बिका है ? रख के ताक पे शरम-ओ-हया की जंजीरें हर लम्हा तेरे पहलू में गुज़ारा करते थे तेरे जाने पे सरेआम एलान किया है के आज भी ये दिल तुझ पे फ़िदा है

इस जहन से तेरा तस्सुवर नहीं जाता

इस जहन से तेरा तस्सुवर नहीं जाता, क्या करूं किसी तरह करार नहीं आता, हम सोचते थे ख्याल तेरा छूट गया, पर नामुराद ख्याल तेरे ख्याल से चैन नहीं पाता होश में हैं मगर आलम -बद्होशी है, तुझसे दूर होके होश भी नहीं आता, कैसे जीयें ख्वाम्क्हा इस दुनिया में, बिन तेरे अब जीया भी नहीं जाता, छुप छुप के आंसू बहाना मेरी तकदीर नहीं. थक गए हैं लड़ते अब लड़ा भी नहीं जाता, आज बुला लो फिर पुकार के मुझे, की अब दूर तुझसे रहा भी नहीं जाता...

तुमहारे हाथों की हरारत

तुमहारे हाथों की हरारत, तुम्हारी आँखों की शरारत, और उस पे मुकुराना, क्या क्या बिसराऊँ कि... नींद आ जाए.... तुमहारे देखने का तरीका, हाथ पकड़ने का सलीका ओइर उसपे एकटक देखते जाना, और क्या क्या बिसराऊँ कि... नींद आ जाए.... तुमहारे छूने का अंदाज़, उँगलियाँ चूमने का अंदाज़, और उस पे चुप लगाना, क्या क्या बिसराऊं कि... नींद आ जाए....

एक पराया .....

एक पराया ..... समझा था किसी की आँखों में अक्स था मेरा, अब जाना वो अक्स नहीं सिर्फ एक साया था, जिसे नाखुदा बना के, सफर का आगाज़ किया, उसने ही मेरी किश्ती को साहिल करीं डुबाया था.... न उसका ख्याल है, इस मौके पे ए दोस्त मेरे अपनेपन का, उसने मज़ाक उड़ाया था उसकी हर बात में अब, एक खलिश लगती है जिसकी बातों ने कभी मेरा दिल लुभाया था .....

दस्तूर-ए-हबीबी

चलो माना हम दस्तूर-ए-हबीबी नहीं जानते, यारी निभाने का सलीका नहीं पहचानते, फर्क प्यार और दोस्ती में हमें समझ नहीं आता. इन रिश्तों को निभाना कहीं सिखाया नहीं जाता, बहुत पशोपेश में पड़े हैं कैसे उन्हें समझायें, इस कशमकश से निकल का रास्ता कहाँ से लाये, मगर तुम तो समझदार हो, इन सब मामलों में बहुत होशियार हो, तुम्हें तो इन दोनों में फर्क करना आता है फिर तुम्हारा दिल क्यूँ मचल मचल जाता है, हमें तो लाख बार दिन रात समझाते हो, फिर क्यूँ पग पग पर फिसल जाते हो, कहते हो सिर्फ दोस्त हो हमारे, कभी बताते हो अपनी जागी रातों के नजारे, क्या तुम्हे पता है क्या चाहते हो, क्यूँ हमें समझाकर खुद को झुठलाते हो, तुम्हे भी शायद इस बात की हैरानी है, दोस्ती और प्यार के फर्क पहचानने में परेशानी है!!!

तुम्हारा चाँद

ये चाँद भी अब हमारा रकीब हो गया तुम्हारे दिल के इतना करीब हो गया!!!! हमको भुलाकर चाँद को पास बुला लिया हमारे दर्द का इलाज उस से करा लिया!!!! मगर इतना क्यूँ आप इतराते हैं हजूर, चाँद आपके पहलू में है तो ज़रूर लेकिन वो एक बेवफा महबूब है सारे आसमा को वो माशूक है हमारी बा वाफाई तो आपको रास न आई उस बे-मुरव्वत की शोखीयाँ आपको भाई कोई बात नहीं हमदम मेरे वक़्त वो भी आएगा जब तुम्हारा चाँद अमावस पे छुप जायेगा तब तुम्हें हमारी यादें ही पनाह देंगी और मेरी बाहें फिर तुम्हे अपना बना लेंगी उन लम्हों के इंतज़ार करना मेरा नसीब हो गया के जब से ये चाँद तुम्हारे दिल के इतना करीब हो गया……

अहसास-ए-गम

किसी के दिए ज़ख्मो का, अहसास-ए-दर्द देर से हुआ, चोट खाई थे बहुत देर पहले; चोट का अहसास मगर देर से हुआ उसकी बेबाक मोहब्बत थी कब से कायम, मुझको ही इल्म ज़रा देर से हुआ पी थी आँखों से उसकी कल रात गए , नशे का खुमार मगर देर से हुआ मेरे घर में कब से कायम उसका आना, ख्वाबों में आगमन मगर देर से हुआ. ऐसे तो मिले थे कई बार महफ़िल में, तन्हाई में उसके आना देर से हुआ हम ही नादाँ थे जो न समझे उसको अय्यारी का इल्म ज़रा देर से हुआ, अब बहुत वक़्त हुआ उसको गए हुए, अहसास-ए-गम मगर देर से हुआ.

इक खोया हुआ खवाब

कुछ ख्वाब रख छोड़ थे आँखों में, हश्र उनका देखो क्या हुआ? इक गुम हो गया भीड़ में कहीं, इक अश्कों के साथ बह गया... तेरे साथ बैठकर पिरोया था जो. सपना वो टूटा और बिखर गया, और इक नन्हा सा मासूम खवाब आँख के किसी कोने में रह गया... टीस उठती है जब कभी, दर्द दिल में होता है, उस खवाब का क्या करें, जो दर्द सारा सह गया.... छुपाया था बहुत उनसे , गुजरी थी जो अपने पे, पर इक खवाब हाल मेरा, बेहाल होके कह गया...

मुझे भी तुम मंजूर कर लो.

दे रही है रुक रुक के मेरी आँखें झुक झुक के शर्माता हुआ इक सलाम तुम कबूल कर लो तड़पती हुई हर धड़कन चाहे तुमको छूना इक बार, पास आके थामो मुझे और शिद्दत महसूस कर लो, किसी को प्यार कर करना, जुर्म तो नहीं, न गुनाह ही है, दावत हम देते हैं तुम्हे प्यारा सा इक कुसूर कर लो मैंने कबूला सौ बार तुम्हे, नहीं अब आरजू किसी की, गुजारिश बस इतनी सी कि, मुझे भी तुम मंजूर कर लो.

ज़रूरतें

जाने क्यूँ आज ये लगे, किसी को मेरी ज़रूरत नहीं, दुनिया है ये अजनबी सी, किसी को मुझसे वास्ता नहीं वो ज़माने गुजर गए जब जमाना मुझसे वाबस्ता था हिकायत पे मेरी वो रो रो जाता था, दौर इक ये भी है, मुझे किसी पे आस्था नहीं ये दुनिया है अजनबी सी, किसी को मुझसे वास्ता नहीं. अहसान फरामोश लोग है, कुछ रिवायतें भी खोखली , दिया जिसको अपना सब कुछ, उससे सिर्फ ठोकरे मिली, गुजर गया जो मुझ पे हकीक़त है, दास्तान नहीं, ये दुनिया है अजनबी सी किसी को मुझसे वास्ता नहीं. किधर जाऊं अब क्या करूं, न सूझे न जान सकूं, जिसने दाग-ए- जिगर दिए उसी को आज भी प्यार करूं, मौत को गले लगाने के सिवा अब और तो कोई रास्ता नहीं, ये दुनिया है अजनबी सी किसी को मुझसे वास्ता नहीं.

काश.....

काश तुम भी किसी की दीवानगी में घायल होते काश तुम भी किसी की चाहत में यूँ पागल होते तुमको गहराई अपने प्यार की दिखा तो तुम भी शायद हमारी तन्हाईयों के कायल होते... ये हमारे दरम्यान जो गुज़रा, खता थी मेरी तुम्हारी नाराज़गी अब कज़ा थी मेरी उनसे मिलने का वक़्त कम था और दूरियां बे-हद काश तुम हमारे इस दर्द-ए-जुदाई में शामिल होते.....

तेरे लिए जानम .....

इतने इल्जाम दिए उसने के जीना कुफ्र लगने लगा, क्युकर बा-वफाई के बाद भी बे-वफ़ा समझा हमे .... हम गुनाहगार बन गए, बे-गुनाह होकर भी उसकी नज़र का फेर था या वक़्त ही बदल गया ........ इतनी तवज्जो उस दोस्त की थी मुझ पे, अरसा पहले, के हर लम्हा उसकी खातिर जीते थे हम उन दिनों अब गम-ए-फुर्क़त से वो हाल-ए-दिल हो गया के हर रोज़ यु लगे के सुबह होते ही सूरज ढल गया….

तुम लौट आओ....

मेरी ज़िन्दगी बिन तेरे, आधी अधूरी इक किताब, इक सफे पे अपना नाम, लिखकर इसे पूरा भर दो मेरी ज़िन्दगी बिन तेरे, टूटा हुआ सा इक खवाब, आके नींदों में मेरी, ख्वाब मेरा पूरा कर दो मेरी ज़िन्दगी बिन तेरे, बिना सुरूर की शराब, पीके संग मेरे इक जाम साकी को तुम खुश कर दो मेरी ज़िन्दगी बिन तेरे मुझ पर पड़ा हिजाब, उठा के इस चिलमन को, दामन मेरा आज भर दो मेरी ज़िन्दगी बिन तेरे, इक उखड़ा हुआ जवाब, सवालों के सुलझा के, सारे गुंजल सीधे कर दो.

आपकी शिकायतें

गिला करने की आदत उनकी जाती नहीं खता करने से हम बाज़ आते नहीं वो बारहा शिकायत करते हैं हमसे हम हैं जो दर्द-ए-दिल कभी बताते नहीं जिन वादों का वास्ता देते हैं वो आज भी उन वादों को खुद कभी निभाते नहीं अपने इंतज़ार का उलाहना देते हैं हर रोज़ मगर हमारे इन्तेखाब के बारे वो सोच पाते नहीं....

एक और रूप उसका

तुम साहिल उस दरिया के, जिसमे मेरी लहरें मचलती हैं; तुझसे टकरा के टूट जाती हैं बहुत मुश्किल से जो बनती हैं... तुम जाम हो उस मय के, जिसमे मेरा कैफ बसता है, वक़्त बे वक़्त उतरता है, बहुत मुश्किल जो चढ़ता है... तुम आँखे हो उस चेहरे की, जिसमे मेरे आंसू बसते हैं, तेरी बेरुखी के सदके वो बेताब बरसने को तरसते हैं...

आंसू ....

वो आंसू क्या जो बह गए और दर्द का पैमाना छलक गया उस अश्क की कद्र कर ए दोस्त जो आँख किनारे रह गया सब्र और ज़बर की तपिश से आँख का पानी सुखा दे उस बादल का क्या वजूद जो बारिश बन के रह गया....

ख़त ......

आज कई दिन बाद किसी ने ख़त लिखा... ख़त में उसकी खुशबू समाई थी ख़त में उसकी तस्वीर उभर आई थी ख़त में ज़माने भर का प्यार छुपा था ख़त में उसकी यादों का रंग घुला था हमारा ख्याल उसको भी है, दिनों बाद दिखा आज फिर किसी ने मुझे एक ख़त लिखा.... ख़त के ज़रिये उसने भेज दिए सौ वादे ख़त के ज़रिये लौट आई उसकी सौ यादें ख़त के ज़रिये उसने पहुँचाया अपना सलाम ख़त के ज़रिये भेजा उसने प्यार का पैगाम उसके ख़त में मुझे उदास सा उसका अक्स दिखा आज फिर किसी ने मुझे एक ख़त लिखा....

वक़्त-ए-रुक्सती

तेरी तस्वीर आखों में बसा लूं फिर यहाँ से चला जाउंगा अपनी तकदीर की लकीरें मिटा लूं फिर यहाँ से चला जाउंगा भूल जाने की कोशिशे तुझको, मुझको दीवाना न बना दे, इसलिए तेरी याद यहीं दफना लूं फिर यहाँ से चला जाउंगा फिर हँसे साथ हम तुम, ये मंजूर न जालिम ज़माने को, अपने साथ तुझे भी रुला लूं, फिर यहाँ से चला जाउंगा बांटी थी तुझसे सिर्फ बहारें मैंने , और समेटे सारे पतझड़ अकेले, अपने वो दर्द तुझको दिखा लूँ फिर यहाँ से चला जाउंगा तुझको चाह के कुफ्र किया, बुत-ए-अरमान बना के पूजा अपने उस जुर्म की सजा पा लूं फिर यहाँ से चला जाउंगा फूल दिया था तुने कभी, उसके कांटो की चुभन अब भी है, वो सोगात दिल से छुपा लूं फिर यहाँ से चला जाउंगा

मुझे रात पसंद है ....

मुझे रात पसंद है रात में तुम मेरे पास लौट आते हो ... रात में तुम फिर मेरे हो जाते हो ... रात को तुम्हारे सपने भी आते हैं ... हमेशा की तरह मुझे रात भर सताते हैं ... रात के आलम में हम तनहा होते हैं .. रात के समा में हमारे अरमान जवान होते हैं ... रात के हर लम्हें से ये दिल रजामंद है ... इसलिए मुझे रात पसंद है ...

रिश्ता

इक रिश्ता, न चाहतों का, न जरुरतो का, न गमगिनियों का, न फुरकुतों का, न ना-उम्मीदियों का, न उम्मीदों का, न बंदिशों का, न सहूलतों का, सिर दोस्ती का, प्यार का, ,और मस्सर्रतों का.. इक रिश्ता, न इन्तिजारों का, न इम्तिहानो का, न इब्तिदाओं का न इन्तिहाओं का, न अशिकियों का, न दिल्गिरियों का, न दूरियों का, न मजबूरियों का, सिर्फ दोस्ती का, प्यार का, और नजदिकियों का, तुम ये इक रिश्ता कुबूल करोगे, क्या मुझसे दोस्ती करने की भूल करोगे?

इकरार

आपके सब्र के पैमाने के, छलकने का इंतिज़ार है, ये हम जानते हैं कि, दिल आपका बेकरार है, न मानो न बताओ न सही, मगर बहुत थोड़ा सा, आपको भी हमसे प्यार है.... न न हम इसका दावा नहीं करते, न ही आपके ऊपर, हमारा कोई इख्तियार है, मगर ये बेबुनियाद ख्याल नहीं, जी आपका भी दिल हमारा, तलबगार है, आपको भी हमसे प्यार है....

लम्हें

कभी आँखों पे तकिया, कभी गलों पे शूल. कभी आगोश में गुम कभी लबों पे फूल ऐसा वक़्त भी कोई भुला सकता है, क्या कोई किसी को इतना याद आ सकता है? कभी हथेलियाँ टकराई, कभी साँसे कस्मसाई, कभी आँखे शरमाई, कभी उंगलियाँ कम्पकंपाई , ये समां भला कोई दोहरा सकता है.. क्या कोई किसी को इतना याद आ सकता है? कभी जिस्म गुदगुदाये, कभी होंठ थर्राए, कभी नज़रें मिलाये, कभी फिर नज़र झुक जाये, इन लम्हों को कैसे समेटा जा सकता है, क्या कोई किसी को इतना याद आ सकता है? कभी कन्धों को छूना कभी लगे पहलू सूना, कभी नजदीकियां इतनी, के महक उठे पसीना सोचते हैं कैसे उन्हें फिर बुलाया जा सकता है क्या कोई किसी को इतना याद आ सकता है?

फितरत

हर आदमी मौसम है, बदलता है, बरस में… कई कई बार… रुकता है, देखता है, छेड़ता है, बरस में.. कई कई बार… हर फूल की हसरत हर खुशबू की जुस्तजू हर कलि की चाहत , बरस में कई कई बार…. दिल तोड़ता , दिलों से खेलता दिल की हसरतें , पूरी करता हर किसी से दिल लगता, बरस में कई कई बार….

सब्र कर ....

सब्र कर ए दिल के बस अब दीदार होगा वस्ल का सपना अपना तभी साकार होगा उनके आगोश में समाने की तमन्ना है हमारी उनको भी ज़रूर हमारा इंतज़ार होगा ........ दिल की खलिश ... दिल से उदासी नहीं जाती , उसकी याद जाकर भी नहीं जाती , रोक रखे हैं उसने अपने सपने भी , ये खलिश दिल से नहीं जाती ….

शाम भी सुंदर होती है....

हर सुबह खुशियों भरा आपका एक पैगाम लाती है हर शाम मगर मायूस होकर आपके दर से लौट जाती है लगता है के आप रौशनी के चाहने वालों में से एक हैं तभी तो आपके हर शब्द में सिर्फ सूरज की खुशबू आती है मुझे शिकायात मिली है आपकी, एक सितारे से और चांदनी भी आपसे अक्सर रूठ जाती है क्यूँ रात के हुस्न से इतने खफा खफा रहते हैं क्या अंधेरों की सरगोशी आप में कोई उम्मीद नहीं जगाती है??? इन अंधेरों की वजह से ही आपका सूरज चमकता है इसकी कालिमा से ही दिन का वजूद बनता है रौशनी तभी दिखती है जब अँधेरा छंट जाता है क्या किसी को चाँद कभी सूरज से कम नज़र आता है??? इसलिए ए दोस्त, कभी अंधेरों में भी झाँक के देख के अंधेरों में भी कविताएँ की कमी तो नहीं ... मेरा चाँद किसी तरह से तेरे सूरज का तलबगार नहीं फिर तेरे लफ्जों में चांदनी की जगह क्यूँ नहीं????

इक जनम जी आयें

इक जनम जी आयें चलो उन पलों को फिर दोहराएँ, जिसने हमें जीने के, नए ज़रिये दिखाए चलो, उन लम्हों में, फिर घूम आयें, जहाँ हमने ज़िन्दगी के. हसीं पल बिताये, चलो, उस वक़्त को, कहीं से खोज लायें, जो तुम्हारे साथ, कहीं थम न जाये, चलो, यहाँ से दूर, बहुत दूर जहाँ, ये धरती ये आसमान, हमारी तरह, इक हो जाये, चलो, इक बार फिर वहाँ जहाँ हम, थोड़े वक़्त में, इक जनम जी आयें

अजनबी से गुफ्तगू

जितने खूबसूरत अल्फाज़ उतने ही प्यारे जज्बात एक अनजान के अंदाज़-ए-बयानी ने हमे हैरान कर दिया.... न रिश्तों की कोई डोर न कोई जुम्बिश हुई न शोर फिर क्यों इस अजनबी की बातों ने हमे बे-बयान कर दिया....

नई मोहब्बत .....

सुना है, दोस्त तेरी ज़िन्दगी में बहारें फिर लौट आयीं हैं गुलिस्तान फिर खिल उठा है खुशियाँ फिर जगमगाई हैं किसी की खुशबू से तेरा दामन फिर तर बतर होने लगा है किसी के पहलू में दोबारा तूने मोहबात की रंगीनियाँ पायी हैं अच्छा है के मुक़द्दर ने फिर से तुझे इनायतें बख्शी सबको वो नसीब नहीं होता जो तेरी किस्मत रंग लायी है...

पत्थर दिल ....

तेरे पत्थर होने का हमको इल्म न था वरना हर चोट का तुझको ही इल्जाम देते ज़ख्मों की फेहरिस्त तेरे नाम की होती लहू के कतरे गिरने पे तेरा नाम लेते... चोट लगी दिल पे तो तब ये जाना के शिद्दत दर्द की क्या होती है गर ये पहले जान जाते ए जालिम तो सोच समझ के यहाँ हर गाम लेते गर बिकती कहीं पे दवा इस मर्ज़ की ले आते दर्द से निजाद पाने को फिर चाहे खुद को फना करना पड़ता मगर चारागर को मुह माँगा दाम देते...

बिन बुलाये इधर आइये ....

ऐसा तो नहीं के आप यहाँ से गुज़रते नहीं फिर क्यों हम से दुआ सलाम भी नहीं करते, ये ज़रूरी तो नहीं के हर रोज़ हम सजदा करें कभी तो आप भी इस नाचीज़ पे गौर फरमाइये .. हर सुबह का पहला आदाब आपको करते हैं फिर उस वक़्त का इंतज़ार होता है जब आप जवाब देंगे ये हसरत मगर रोजाना जागती है भोली भाली कभी किसी रोज़ आप भी बिन बुलाये इधा आइये .

जीतना ही मकसद है ....

कौन चाहता है हौसला रखना हारना किसको भाता है जीतना इंसान की हसरत होती है जीत के ही जीया जाता है झूठे हैं वो जो कहते हैं सब्र रखो सब्र इंसान की फितरत ही नहीं ख्वाइश अगर जीने की हो तो मरना कौन चाहता है … सिर्फ लफ्ज़ हैं ये कोरे के हार पे दिल छोटा नहीं करते हकीक़त में इस जहाँ में हर शख्स सिर्फ जीतना चाहता है … कौन खुश होता है तरक्की से गैर की कौन है जो पराई ख़ुशी में सुकून पाता है इस ज़माने में उससे पूछते हैं सब जो हमेशा सिर्फ अव्वल आता है …. जिंदगी की मशश्क़त में सबको जीत की तलाश होती है डूबते को तिनके भी नहीं मिलता उगते सूरज को सलाम किया जाता है …

चेहरा क्या देखते हो....

नज़र लगाने के लिए चेहरा दिखाना पड़ता है घडी भर देखने के वास्ते नजदीक आना पड़ता है अब क्यूँकर इल्जाम न दें तुझे ए दोस्त मेरे के तेरे जवाब पे हर बार मुझे सवाल उठाना पड़ता है जो छुपाई है ये सूरत तो गरज भी होगी मेरी के बहुत बार अन्जानो से खुद को छुपाना पड़ता है ये माना के आपसे अब आशनाई है अपनी मगर कई बार अपनों से भी पर्दा निभाना पड़ता है....

पर्दा नशीं...

पर्दा नशीं को बे-पर्दा देखने की तमन्ना न कर के हिजाब में ही शबाब भाता है मान ले, के हुस्न को देखने का मज़ा शर्म के इस लिबास में ही आता है.... वैसे भी कुछ रखा नहीं इस रुख में के इस चहरे को अब उम्र का खौफ सताता है रहने दे राज़ को राज़ ही ए दोस्त मेरे के राज़ में ही जीना अब मुझे आता है....

इंसान नहीं बदलता ....

कभी एक रात का साथ ज़िन्दगी भर नहीं चलता हवाओं के रुख शद बदले मौसम नहीं बदलता न ख्वाईशें होती हैं कभी, न आरजू ख़तम हवस इंसान की फितरत है, इंसान नहीं बदलता तूफ़ान थम भी जाए, साहिल पनाह नहीं देता किश्ती डूबने पे नाखुदा, खुद पे गुनाह नहीं लेता हर शख्स भूखा है, भूख का अरमान नहीं बदलता के हवस इंसान की फितरत है, इंसान नहीं बदलता

दोस्ती इल्जाम नहीं दुआ है

बदनामी में भी एक नशा है इश्क में नाकाम होने से दर क्यों पहली नाकामी ही इश्क की इब्तदा है... जज्बात तो बहुत हैं सीने में लेकिन हर जज्बात का अपना एक मज़ा है इश्क हुआ तो ज़िन्दगी खुशगवार है न हुआ तो जीना ही सज़ा है ....

अंधेरों में रौशनी जलाए रखें ...

नाशाद दिल ही अक्सर बेजार होता है गम में अंधेरों से भी प्यार होता है इसलिए ए दोस्त शादमानी बनाएं रखें आपसे बस इतनी गुजारिश है के आलम-ए-तिरगी में भी एक चिराग रौशनी का जलाए रखें.... उदासी ... इतनी उदासी के सारा आलम उदास हो गया आपके दर्द का असर इतना ख़ास हो गया दूर बैठें हैं हम मील-दर-मील फिर भी आपकी शिदद्दत का आभास हो गया

सवाल ......

मुझसे तेरा पता पूछते हैं मेरे कुछ बिखरे ख़याल .... के वो भी तेरे आगोश से दूर होकर बे-दर हुए जाते हैं..... मुझे समझाया गया सद तरीकों से हबीबों ने कसम भी दे दी कई गरचे, अब भी तसव्वुर में तेरे अक्स ही नज़र आते हैं .... गुम से रहते हैं तेरे ख़्वाबों में खोये मोहब्बत की गम्गीनियों में क्या कभी मुक्तसर होगा इंतज़ार मेरा बस ये ही सवाल अब सताते हैं ....

मेरा मौसम ...

वो मौसम, जो बदल कर भी बदला नहीं वो सावन, जो बरस के भी बरसा नहीं वो सपना जो टूट कर भी टूटा नहीं वो अपना जो दूर जाकर भी छूटा नहीं वो दिल जो अब भी मेरे लिए धड़कता है वो शक्स जिसके लिए मेरा मन बहकता है

वो !!!!!!!!!!!!!!

सोयी हुई थी मैं बेहोश सी उसने मुझे जगाया ... मेरी हस्ती पे वो एक बादल बन के छाया, मेरी पथरीली मुस्कान को खिलखिलाना सिखाया, दिल के अँधेरे कोने में चिरागों को जलाया, खुद से अनजान सी थी मुझसे मेरा परिचय कराया, बुझी बुझी आँखों में सपनो को बसाया, हाथ थाम के मेरा वो अपनी महफिल में ले आया , जिंदगी के इस सफर में उसने दोस्ती का मतलब समझाया ...

हर रोज़. ......

हर रोज़ ज़िन्दगी एक शख्स के नाम से शुरू होती है हर रोज़ रात को मायूस सी फिर सो जाती है , गरचे उस शख्स की बातें और उसकी यादें , ख्याल बन के ख्वाबों को सजाती है अश्क कहें या के चश्मे -आबशार कहें , कुछ तो रोज़ ये आँखें बहाती हैं, एक पत्थर सा दिल पे रहता है शब भर एक आतिश है जो हिज्र में जलाती है ....

सूना ....

सूने दिन और सर्द रातें, सर्द रातें और पुरानी बातें, पुरानी बातें और मेरी तन्हाई मेरी तन्हाई और तुमसे जुदाई, तेरी जुदाई और तेरी कमी, तेरी कमी और आँखों की नमी, आँखों की नमी और रोता दिल, रोता दिल करे जीना मुश्किल, सच, जीना मुश्किल हुआ तेरे बिन, तेरे बिन मेरी सर्द रातें और सूने दिन!!!!

शुभ प्रभात

कुछ खिली खिली सी धूप है आज कुछ शबनम बिखर आई फूलों पे कुछ खुशबू सी उठी है साँसों में लगता है किसी ने मुड़ के देखा मुझे वो जो एक साया बनके गुज़रता था कभी कभी मेरे ख़्वाबों में तनहा सा, दूर खडा, चुपचाप लगता है उसी ने आज पुकारा मुझे

ख़ुशी भी उदास रहती है

खारे समंदर को भी मीठे पानी की प्यास रहती है सपनो को भी मासूम आँखों की तलाश रहती है ज़रूरी तो नही जिंदगी में हर मस्सर्रत शाद हो यहाँ कभी कभी ख़ुशी भी उदास रहती है सब कुछ मिल गया जो भी खुदा से माँगा आज तक फिर भी दिल को कुछ और पाने की आस रहती है जब भी उसको याद करते हैं तो लगता है के उसकी नज़र मेरी नज़र के पास रहती है ज़माना बीत जाता है उसका ख्याल आये हुए मगर आज भी दिल में उसकी आवाज़ रहती है

हर रोज़ शाम ढले

मेरे दर- ओ - दीवार मुझे बुलाते हैं हर रोज़ शाम ढले मेरे रास्ते मुझे मेरे घर छोड़ आते हैं हर रोज़ शाम ढले मेरा माजी मुझे ढूँढता है मेरे आज में अक्सर मेरा कल और आज मेरा साथ निभाते हैं हर रोज़ शाम ढले एक नाखुदा बनाया था मैंने भी एक रोज़ सफीना अपना उसके हवाले कर दिया था कभी डूबाया कभी तैराया मेरी छोटी सी किश्ती को मेरे मोहसिन मुझे यु ही डरातें हैं हर रोज़ शाम ढले हर वक़्त एक साया फिरता है मेरे ज़हन में न घर बनाता है न घर छोड़ के जाता है कभी हमदम कभी हम कदम कभी अनजान बन कर मेरे खुदाया, वो मुझे क्यों सताते हैं हर रोज़ शाम ढले

ऐसा क्यों होता है .....

क्यों किसी से दूर जाने पर जी घबराता है, क्यों किसी से मिल कर जीया जाता है, क्यों वो अब पास नहीं आते .... ये कौन है जो हमारी दूरियां बदाता है ????? किसके ख्यालों में आजकल आप खोये रहते हैं , किसका आना आपके दिल को बहलाता है , हम में ऐसी क्या कमी रह गयी के ... कोई पास आकर भी फिर दूर चला जाता है????

रु -बरु

कहाँ खो गए हो तुम आजकल के परछाइयां तक भी नसीब नहीं रोज़ लौट के आते हैं तेरी जानिब शायद कभी यार से रु -बरू यार हो .. *** सिर्फ यादें .... फिर किसी की याद में शमा जलाई थी चाँद को बुलाया था, रात सजाई थी इंतज़ार किया शब भर, पलकें बिछाई थी लबों पे रंगत , आँखों में शरारत उतर आई थी मगर ...न वो आया , न ख्वाब आये , न ही नमबार , न ख़त , न पैगाम , न सलाम , सिर्फ तन्हाई रोज़ की तरह दामन थामने आई थी .... सलाम ... कुछ इस तरह आना हुआ आज सहर का के ज़र्रा ज़र्रा दिल शाद हो गया जिसके पैगाम का इंतज़ार करा शब भर उसके भेजा सलाम-ए-आगाज़ हो गया पहचान इतनी इनायत आपकी, इतना आपका कर , हम आपकी बातों में कुछ डूब से गए ... न आशनाई न दोस्ती न कोई इत्तिफाक आपस , गरचे यु भी पहचान होती है ....

एक चिठ्ठी

शिकायत करते हैं वो अहवाल न देने की, मगर, अब उनकी चिट्ठी तक नहीं आती, कभी गुफ्तगू हो जाती थी, लेकिन, अब तो उनसे आवाज़ तक सुनाई नहीं जाती न कोई पैगाम, न रुक्का, न कई दिनों से कोई खैरीयत की खबर आजकल उनसे हमारी बात करने की फरमाइश भी पूरी करी नहीं जाती पहले कभी एक खुशबू उनकी हवाएँ ले के आती थी अब हमारे देश की बदली वहाँ के अस्मा पे नहीं छाती वक़्त वक़्त की बात है, वक़्त से कोई शिकायत की नहीं जाती जिसके लिए बैचैन हो उठते हैं आज भी, उसको हमारी याद तक नहीं आती

लेकिन पानी में दिल वाले ही उतरते हैं

किसी को तैरना आता है, कोई डूब जाता है लेकिन पानी में दिलवाले ही उतरते हैं दरया सरमाया उसको देता है जो चीरते हैं लहरों को वो मोती नहीं पाते जो सागर से डरते हैं... दोस्त दोस्त तेरी दोस्ती पे ये दिल-ओ-जान कुर्बान है इस जबीं के वास्ते अर्श तेरा ही मकान है सजदा करें या फना हो जाएं कैसे खुद को लुटाएं ये सोच के हैरान हैं ख्वाब बुलाते हैं कल फिर तुम्हें मेरे ख्वाब बुलाते रहे तुमको मेहमान बनाने का इरादा था न तुम आये न कोई पैगाम आया मगर लुफ्त उस इंतज़ार में वसल से ज्यादा था ... *** तेरा एक ख्याल जगाता रहा सिर्फ एक रात की बात होती तो सह लेते, यहाँ कई रातों का यु ही सिलसिला रहा तेरा एक ख्वाब सुलाता रहा तेरा एक ख्याल जगाता रहा ....

ख़याल...

हम पीते नही पिलाते हैं नशे में लोगों को बहकाते हैं आप धोखा न खा लेना ए दोस्त हम तो पानी को छूकर मय बनाते हैं **** अब भी मेरी निगाहें तुझपे झुकीं हैं अब भी मेरी साँसे तुम पे रुकी हैं तुम पूछते हो किसकी राह ताकूँ अब तेरी राहों में यहाँ मेरी बिछी हैं ... *** सफर सबको तनहा करना पड़ता है, मंजिल मगर एक निकलती है, काफिलों का हुजूम जब निकलता है, धुल की आंधी चलती है *** किसी का इंतज़ार करते करते पथरा जाती है नज़र, वो आते हैं और नज़र के बचा लौट जाते हैं अब क्या शिकवा करें किसी से जब के हम जानते हैं के वो आजकल गैरों के साथ वक़्त बिताते हैं ... **** तिशनगी और बदती है उनके पास आने से और वो दूर जाएं तो मुई ये जान निकलती है *** अपनी जिंदगी से मिले एक अरसा गुज़र चुका यूँ मर मर के जीना कोई जिंदगी तो नहीं? ख़्वाबों में देखा कभी तो देखते ही रह गए क्या हसीन थी कभी, जो अब मेरी रही नहीं... *** उन्हें हमारे खवाब तक नहीं आते, और हम उनके ख्वाबों में ज़िन्दगी गुजार जायंगे, ये खुदा कभी ये न सोचा था की, हम मानिन्दे, दीवाना उन्हें चाहेंगे.... **** तेरी राह, तेरी मंजिल, तेरी रहगुज़र, नही मुझसे कोई वाबस्ता नही' न ज

मैं माज़ी का सोचूँ

मैं माज़ी का सोचूँ, या सोचूँ आज का मौज़ू हर एहद में गुलों से बस कुछ ख्वार ही नसीब हुए मेरी बुरी आदतें मेरी जिंदगी का सिला हैं कभी जिंदगी गम के, कभी गम जिंदगी के करीब हुए

अब उसकी खुदाई में ज़बीं को झुकाना है

यार से दूरियों का सीने में कहीं ज़ख्म बरकरार है दिल कमबख्त से उसका मगर अब तक याराना है हिकायतें ख़त्म हो गयी सारी हम दोनों के बीच की मेरी कहानी आज भी मुहब्बत भरा एक अफसाना है कोई गैर तो नहीं बाद उसके जो आया जिंदगी में के दुनिया में अब मेरा एक और भी दीवाना है जिसको अहसास है मेरे दर्द का, मेरी तन्हाई का तो क्या हुआ वो अब तक एक अनजाना है फिर एक कोशिश करें शायद शक्ल बदल जाए के नैनो में बसा सूरत-ए-यार बेशक पुराना है दीदार गरचे जिसका अब दिन रात होता है क्या करुँ वो शख्स अब तक बिलकुल बेगाना है बदनामियों से डरके जीना मैंने सीखा नहीं के रुसवाई का ताज पहनाने वाला ज़माना है हबीबों से दोस्ती कुछ महंगी पड़ी इसलिए पनाह में लेनेवाला एक रकीब बनाना है जिसके लिए शीशा-ए-दिल टूट गया मेरा एक बार उसको उसका चेहरा आईने में दिखाना है दिल में नश्तर सद् लगे और फुगाँ उसने ना सुनी हाल-ए-दिल सुना के अब हर अश्क का हिसाब चुकाना है एक नए रिश्ते की बुनियाद अब जो हासिल हो गयी पुर-सुकून नीयत से उसके करीब जाना है मुद्दत से सिर उठाये खड़े से खुदा के आगे अब उसकी खुदाई में ज़बीं को झुकाना है

कुछ बिखरे से ख़्याल....

वो शायर क्या जो दिल की बात लफ्जों में न पिरोये वो शायर क्या जो ज़ख्म-ए- दिल को लहू से न धोये उस शायर का होना बेमानी है जो दर्द-ए-बयानी न कर सके वो शायर क्या जिसके शेर दामन को आंसुओं से न भिगोए *** हमारे नशे का सबब कोई शख्स नही हमे तो खुद का नशा रहता है हुजुर हम खुद पे ही करम फरमातें हैं हर रोज़ हमे खुद पे ही है बेलौस गुरूर .... *** हर राह तेरी तरफ नही जाती, मगर तुझसे होकर गुज़रती क्यों है के तू मंजिल नही हमसफ़र भी नही, रास्ता भी नही रहबर भी नही *** कभी वक़्त मिले तो हमपे भी अहसान फरमाना ... ज्यादा नहीं थोड़ी देर के लिए यहाँ भी चले आना *** तेरे बारे में सोचते है शब भर, दिन तेरे ख्यालों में बिताते हैं, इक लम्हा बस पहलू में मिल जाये तेरे, इसी ख्वाइश में जिए जाते हैं.... *** हर राह तेरी तरफ नही जाती, मगर तुझसे होकर गुज़रती क्यों है के तू मंजिल नही हमसफ़र भी नही, रास्ता भी नही रहबर भी नही *** दिल से जब लिखोगे ए दोस्त मेरे खून निकलेगा कलम से स्याही नहीं वो शायरी क्या जो नशे में लिखी गयी वो नज़म क्या जो आंसुओं से नहाई नही

तन्हाई का लम्हा

अकेले रह के हमने ये जाना के तन्हाई का लम्हा कैसा होता है जैसे बिछड़ के टुकडा बादल का झुंड से अचानक बरसता है और रोता है जैसे टूट के इक फूल डाल से बिखर कर पत्ता पत्ता होता है अकेले रह के हमने ये जाना के तन्हाई का लम्हा कैसा होता है.... जब तारों की अंजुमन में कोने पे चाँद पडा सोता है कहीं पीनेवालों की महफ़िल हो और साकी बिन पिए होता है अकेले रह के हमने ये जाना के तन्हाई का लम्हा कैसा होता है.... जैसे बहुत से रोशन चिरागों के बीच एक मचलता हुआ परवाना राख होता है जैसे ख़ुशी की इन्तहा हो जाए तो अकेला एक आंसू आँख भिगोता है अकेले रह के हमने ये जाना के तन्हाई का लम्हा कैसा होता है.... और मोहब्बत का एक मंज़र ये भी है के आशिक हमेशा तनहा होता है दिलबर के पहलू से उठने पे दर्द सीने में कहीं होता है.... अकेले रह के हमने ये जाना के तन्हाई का लम्हा कैसा होता है....

किस्मत का करम

रात को रोते थे अँधेरे से डर, लो फिर खिली धूप सवेरा हो गया, जो हसरतें नाकाम हो गई थी, उन्ही का ज़िन्दगी में डेरा हो गया खिलखिलाती हंसी, मुस्कुराती आँखें, फिर लौटी मेरी रह गुजर से, आफ़ताब ने हाथ पकड़ जहाँ बिठाया, वहीं सवेरा हो गया इन हंसी ख्वाबों की ताबीर न थी, वो मिल सके ऐसी तकदीर न थी, कल तक कोई पराया सा था आज वो शक्श मेरा हो गया

ख़त के जवाब

ख़त के जवाब का इंतज़ार करिये अभी कुछ मसरूफ हूँ मैं दुनिया की इस रवानियत से कुछ मायूस हूँ मैं हद से ज्यादा मतलब परस्त लोगों की इस भीड़ में अभी खुद को ढूँढने के लिए ज़रा मजबूर हूँ मैं ए दोस्त, तू बुरा न मनाना मेरी इस बेमानी दरखास्त का के तुझसे मिलने का वक़्त तलाशने में आजकल बहोत मशगूल हूँ मैं....

यादें

वो बातें जो तुम से वाबस्ता थी आज यादें बन की सताती हैं, तुम्हारी कुछ यादें हँसाती हैं, और कुछ तड़पाती हैं, रुलाती हैं.... वो बातें गुज़रे लम्हों के साथ , पल पल इन लम्हों में घुल जाती हैं , और इन पलों , में उन पलों की खुशबू , समेट कर मेरे बदन पे छोड़ जाती हैं ... कुछ परछाईयाँ, उलझी हुई सी मेरे सायों में तुम्हारा अक्स दिखाती हैं ... और तस्सवुर में तेरी तस्वीरें तब रह रह के उभर आती हैं ... इतने से भी गर चैन न पड़े तो रूह मौसम बन जाती है तब आसमा से बारिश की तरह ये ऑंखें आसू बरसाती हैं .. ये यादें किसी दिल ओ जानम के चले जाने के बाद आती हैं

किसी का ऐतबार नही इस ज़माने में

किसी का ऐतबार नही इस ज़माने में न ही इक्दार रह गया बाकी (इकदार - मूल्य) राजदार बनाया था हमने जिसे वो ही बगावत को हो गया राज़ी मैखाने से सलामत निकलते कैसा के नाब-ए-ज़हर पिलाया था महरबान होके शिकायत उस जाम से करें क्यूँकर जब मय पिलाने वाला था साकी न पूछो क्यूँ लौटा लाये बीच रस्ते से अपने सफीने को सागर करीं तूफ़ान से खौफ नहीं था गरचे किश्ती डुबोने वाला था माझी मेरे दुश्मन बन गए रहनुमा मेरे दोस्तों ने निभाई दोस्ती कुछ ऐसी के वक़्त ने बना दिया है मुझे हबीबों की बदगुमानी का आदी बहुत कुछ भूल जाने के बाद फिर से टीस उठी पुराने ज़ख्मों में अब आज से शिकवा क्यूँ करें हम जब गम ढूंढ कर लाया है माजी महफ़िल में लबबसतान होकर (लबबसता- बंद होंठ) खुद को हमने तनहा रख छोड़ा है कितनी कोशिशें की निगाह-ए-यार के वास्ते मगर वो बे-मुरव्वत न हुआ राज़ी

आतिश-ए-हिजरां

वस्ल-ए-यार की उम्मीद ने थामी हैं साँसे वरना दर्द-ए-इश्क से हम रोज़ मरा करतें हैं तुझे खौफ है शमा की रौ से जल जाने का यहाँ आतिश-ए-हिजरां में हम रोज़ जला करते हैं इक ख्वाब के टूटने पे रोता क्यूँ है के हजारों ख्वाब मेरे यूँ ही टूटा करतें हैं न देख तबस्सुम को ये दिल्लगी है के दिल की लगी लो हम दिल में रखा करतें हैं किन सरहदों में बंधी है सोच तेरी मोहब्बत में तो अरमान आजाद उड़ा करतें हैं देख ज़रा बुलंदी मेरे हौसलों की के नाउम्मिदियों में भी हम उम्मीद रखा करतें हैं वो दम भरतें हैं भूल जाने का बेशक मगर अफ़साने इश्क के उनके होंठों पे सजा करते हैं गुनगुनातें हैं अक्सर वो महफिलों में जिन्हें हमे ही वो ग़ज़ल बना के पन्नों पे लिखा करते हैं हटा के अक्स मेरा सोच्तें हैं हम नहीं मगर तस्वीर बन के हम उनकी किताबों में रहा करते हैं...

दर्द-ए-जुदाई

कोशिश करेंगे जीने की ज़रुर गर जी न पाए, तो क्या हुआ किसी की बिछड़ने का अहसास-ए-दर्द गर हमको रुलाये तो क्या हुआ... महकती फिजा मैं घुलती घावों की सड़न बंद दरवाजों के पीछे से मेरी घुटी चीखें और उस पे आंसुओं का सैलाब मुझको बहा के ले जाए तो क्या हुआ शमा का हर एक पिघलता गर्म कतरा परवाने के लहू की तासीर लिए हेई तू परवाना न बन सका, खैर हमने हिज्र के गम उठाये तो क्या हुआ पहल के झूठी तबस्सुम मेरे लबों ने महफिलों की जीनत बढाई है अक्सर हैरान है क्यों जिन्दादिली पे मेरी के तेरे दाग मुस्कुरा के छुपाये तो क्या हुआ...

अनजाना

कोई अनजान निगाहे मेरा पीछा किये जाती है, चलते चलते मुझे वो आवाज़ दिए जाती है, वाकिफ नहीं में उस अनजानी हस्ती से, क्यूँ फिर वो इक दबा सा पैगाम दिया जाती है चुपचाप मेरी रहगुजर में से यूँ गुजरना उसका, देखकर इधर, फिर उधर देखना उसका, कुछ कदम आगे निकलकर फिर रुकना उसका, क्यूँ तकदीर गाम से उसके गाम मिलाती है, कभी जल्दी उठते पीछे से क़दमों की आहट, कभी आगे चलकर साथ चलने की हठ, वो कोन है मैं जान ना पाई आज तक, मगर उसकी खामोस सदा क्यूँ मुझे बुलाती है? हर सुबह और हर शाम की सरगोशियों में, उसका मासूम चेहरा गलियों की दहलीज़ में , दिखता है खुद, या दिखाई दे जाता है, और क्यूँ आँखें उसकी अक्स मुझे मेरा दिखाती हैं?

तेरी सदा का इंतज़ार

कल तक जो राह तकते थे हमारी, आज हमें उनका इंतज़ार दिन भर रहा मसरूफियत थी बहुत लेकिन फिर भी, ये दिल हमारा बेकरार, दिन भर रहा रात कट गई पलकों के किनारे गुजर सपनो को उनका इंतिज़ार शब भर रहा आलम-ए-मदहोशी से होश में आने का, ये बहका दिल बेकरार शब भर रहा होठों पे रुका रुका शरमाया सा, दबा हुआ तरसता हुआ, इकरार दिन भर रहा बुलाओ मुझे फिर से इक बार पलट के, के तेरी सदा का इंतज़ार दिन भर रहा…

एक मुसलिफ की दास्तान

एक मुसलिफ की दास्तान सह गए दर्द ज़माने भर के भूख का दर्द सहा नहीं जाता बिलखते बच्चों का खाली पेट देखकर अब रहा नहीं जाता लिहाफ की गर्मी से क्या तन तापे जब मुफलिसी ही बदन ढाकें उधड़ रहा है जिस्म पैबंद के बीच गरीब बेटी से जवानी का बोझ सहा नहीं जाता नींद टकराकर आँखों से अक्सर लौट जाती है फिर से थककर टूटे ख्वाब बिखरे हैं जहाँ उससे वहाँ रहा नहीं जाता मेरे खेतों से होकर हवाएं आती हैं चूल्हे में पकती हुई रोटियों की खुशबू लाती हैं यहाँ राशन में मिले चावल से कंकंर और दाना चुना नहीं जाता दौलत कमाने को शहर आये थे कितने रिश्ते पीछे छोड़ आये थे हर चिठ्ठी में पुकार सुनाई देती है के किसी से भी गम-ए-जुदाई सहा नहीं जाता वो कुएँ का पानी वो गोबर के उपले वो आमों के झुरमुट के तले शाम ढले चले, लौट के गावं सोचते हैं, वैसे भी यहाँ पेट भरा नहीं जाता सह गए दर्द ज़माने भर के भूख का दर्द सहा नहीं जाता....

बेवफा

सीना चाक हुआ रूह तार तार हुई गरचे तुम्हारे दीदार के चाह फिर बेदार हुई आइना-ए-दिल टूटा सौ टुकडों में हर टुकड़े में उसकी सूरत उजागार हुई रफ्ता रफ्ता तुमको भूलने के बाद किसी अंजुमन में फिर निगाह-ए-चार हुई महफ़िल से उठे दिल ढलने के बाद शाम-ए-तन्हाई किस कदर शाम-ए-बेजार हुई देखा तुम्हें गैर के पहलू में मुस्कुराते गए रात नींदें मेरी बेकरार हुई पलकें भरी नींद से आँखों पे गिरी कोरों में समाई मगर सूरत-ए-यार हुई क्या कहें अपने अरमानों के जनाजे का हर सांस जाती तेरी आहात की तलबगार हुई पूछते हैं क्यों दिल-ए-नाशाद का आलम आपकी बेवफाई मेरी मौत की जिम्मेदार हुई...

हाल-ऐ-दिल

कुछ सुनो, कुछ सुनाओ दास्ताँ अपने गुज़रे कल की आज की तो सब हकीक़तें अफसाना बन चुके हैं था वक़्त जब, तब न हवास लौटे मेरे आज की न पूछो हमारी अब तो दीवाने बन चुके हैं वो तुम ही तो हो सिर्फ जो अपने से लगते हो बाकी दुनियावाले अब बेगाने बन चुके हैं वो गैर थे कभी तुम गैर हो अभी आशना नए हो तुम बाकी पुराने बन चुके हैं....

वक्त का तकाजा

आपकी तवज्जो ज़रा कम थी हमारी चाहतें ज़रा सी ज्यादा वरना मोहब्बत हमारी भी शायद परवान चढ़ गयी होती... मय आपकी आँखों से कम छलकी हमारी तिशनगी ज़रा सी ज्यादा वरना प्यास हमारी भी शायद बिलकुल बुझ गयी होती.. वीरान था चेहरा आपकी चाहत-ए-रंग से और हमारी रंगत ज़रा सी ज्यादा वरना किताब-ए-दिल हमारी शायद कुछ पड़ी गयी होती ... खामोश लब आपके चुप्पी लगाए यहाँ बातें हमारी ज़रा सी ज्यादा वरना हाल-ए-दिल ज़ाहिर होता शायद और गुफ्तगू हो गयी होती....

कुछ सवाल तेरे लिए

कोई नाजनीन चेहरा आज उदास क्यूँ है,? बुझी बुझी आँखों में बेदार प्यास क्यूँ है? अक्स-ए-ख़ुशी थी जो मासूम शक्ल कल तक, वही नूरे-रू आज बदहवास क्यूँ है? जिसकी किस्मत दगा दे गई हर मोड़ पर, वक़्त जिसका ना उम्मीद कर चला उसके बेकस दिल में अभी भी, सुलगती आस क्यूँ है? सदायें दे दे कर बुलाती थी हमें, शोखी थी जिसकी हर इक सदा में पुकारा फिर इक बार मुझको आज, दर्द से भरी लेकिन वो आवाज़ क्यूँ है?

शहर के लोग

मेरे शहर के लोग बड़े मसरूफ रहते हैं खुद ही खुद के नशे में चूर रहते हैं इश्क क्या है और उसकी शिद्दत क्या इन बातों से बहुत दूर रहते हैं ठीक है के हर बाशिन्दे के सिर पे सलीब है सच है के हर शक्स अजीब है अपनी शक्सियत का रुबाब को छोड़ के यहाँ माशूक का गुरुर सहते हैं कोई गिला नहीं है गर वस्ल-ओ-प्यार न हुआ कोई शिकायत नहीं गर दीदार-ए-यार न हुआ अजीब लोग हैं अजीब रवायेतें हैं के यहाँ सब्र से आशिक दर्द-ए-नासूर सहते हैं

हमारा सुरूर

हम वो परवाने हैं जो शमा को रौशन करते हैं हम वो परवाने नहीं जो शमा पे मचलते हैं चुपचाप फना होना फितरत नहीं हमारी हम पे शमा के आंसू मोम बन पिघलते हैं महफिलों में जाना नहीं शौक है हमारा हम से बज्म आबाद होते हैं और चलते हैं जहाँ बैठे शाम को वहीं दौर चलता है जहाँ सोये रात वहीं तारे निकलते हैं न मय, न मीना, न साकी, न पैमाना, हम इन नशों से दूर होकर चलते हैं मगर सरूर का करें तो क्या करें के हमारे ही नशे में यार हमारे ढलते हैं...

हक़ दोस्ती का

ए दोस्त मेरे, तुझे दोस्ती की कसम ये रिश्ता दोस्ती का, तुझको निभाना होगा क्या गम है तुझे, कौन सा रंज है, अपना हाल-ए-दिल तुझको बताना होगा क्या दर्द है, कहाँ दर्द है, क्यों दर्द है तुझे, इस दर्द का राज मुझको बताना होगा गर हक दिया है तुने इस दोस्त को तो हक आज हमको जताना होगा ...

दर्द का दर्द

लगेगा वक़्त अपने माजी से दूर जाने में लगेगा वक़्त अपना कल भूल जाने में मगर दोस्त मेरे, खुदा की कसम कोई वक़्त नहीं लगता है मुस्कुराने में.... सब रिश्ते सब नाते सब टूट जाते हैं नयी राह पे पुराने हमसफ़र छूट जाते हैं बस फिर गुज़रे मंज़र ही याद आते हैं लगेगा वक़्त उन मंज़रों को भूल जाने में .... हर तोहफा यार का, दिल को अज़ीज़ होता है हर ख़त पुराना, दिल के करीब होता है दर्द वो ही देता है जो सबसे अज़ीज़ होता है लगेगा वक़्त उन हबीबों को भूल जाने में .... हर ज़ख्म हर नासूर, वक़्त भर जाता है हर दर्द एक दिन खुद ही मर जाता है लाइलाज मर्ज़ चारागर को दर बुलाता है लगेगा वक़्त शिद्दत-ए-दर्द को भूल जाने में ....

तुम ही तुम

क्या इंतिहा है मेरे प्यार की, ये मुझको खबर नहीं, इस ज़मीं से उस फलक तक, बस तुम ही तुम हो, झील में खिलते हैं कमल, गुलज़ार में महके कलियाँ, मेरी ज़िन्दगी के गुल का शबाब बस तुम ही तुम हो, ख़ुशी और रंज सबके नसीब में, खुदा के फज़ल से हैं, मेरी तकदीर के सबसे रुख रंगीन बस तुम ही तुम हो.

प्यासी ईद

इन निगाहों की तिशनगी बुझ गई दीदार से, प्यास जो बढ़ गई होठों की तो क्या कीजे, करीब आते नहीं तुम ज़माने के खौफ से, हसरत छूने की कर गई तो क्या कीजे दूर से तेरे ज़माले रूह की दीद हुई, हिजाब तेरा लेकिन मुझे दीवाने बना गया, चैन मिला रूह को तुझसे रूबरू हो, जिस्म जो और बेकरार हुआ तो क्या कीजे, बुझती हुई शमा-ए-जिंदगी फिर चिरागां हुई, तुने छुआ और छूकर धड़कने तेज कर दी, काबू किया जज्बा-ए- वसल बामुश्किल, दिल जो मचल गया तो क्या कीजे, हसरतें तमाम मचलने लगी बेधड़क , हर वक़्त तेरे साथ की उम्मीद में तुम्हे मुबारक तुम्हारी हातिमी सारी, मैं जो दीवाना हुआ तो क्या कीजे.

मेरे अरमान

कई हजार राहों के दरम्यां, सिर्फ इक राह तेरी मंजिल तक थी, ढूंढते रहे उसे मनिंदे-दीवाना , कारवां जहाँ रुक सके मेरे अरमानों का.... लिखा तेरे नाम, चाँद का कोना वो, चमकाता था मेरे हिस्से की चांदनी जो, तारों की छंव भरी रात सी तेरी ओढ़नी, गरचे हर ज़लवा तुझको दिया, आज मेरे सामानों का... प्याला जो छलके ना वो नाबे-मय भी क्या इस से तो बेहतर तेरी आँखों के प्याले हैं, जो भरे तो छाए सरुर, और छलक गए तो, कतरा-कतरा आंसू चर्चा करे मेरे अफ्सानों का... ये ज़रूरी तो नहीं की हर राह हमको नसीबे, हमारी ज़रूरतें सिर्फ तुझ तक दरकार, कहीं खुदाई लुटा रही थी जलवे बेसुमार, मैंने तुझे चुना बस, ये हाल है तेरे दीवानों का....

वस्ल-ऐ-यार

आइनों में झांकते थे तेरी सूरत देखने को बस खुद का चेहरा नज़र आता था आज फिर मेरी आँखों को तेरा अक्स नज़र आया आज फिर उस आसमा का चाँद लजा के शरमाया आज फिर मुद्दत की बाद तेरी आवाज़ सुनी आज फिर बहुत वक़्त के बाद तेरा आगाज़ हुआ आज दोबारा आफताब के ज़र्रे बिखरने लगे आज फिर तेरी दीद ने मुझे ईद का अहसास कराया प्यार के नगमे फिर गूजने लगे फिजा में सारी कायनात गुनगुनाती सुनाई दी आज फिर ये दिल वस्ल-ए-राग गाने लगा आज फिर कोई अपना मेरी जिंदगी में लौट आया ..

उसके आने से

आपके आने से देखो, सूरज चमक उठा हर तरफ चमकीली धूप छा गयी पतझड़ का मौसम, वो देखो, वो चला सारे जहान पे बहार सी आ गयी हर फूल खिल खिल के अंगडाई लेने लगा हर कली दोबारा मुस्काने लगी हर पता हरा सा दिखने लगा फिजा में खुशबू सी छा गयी मेरे होंठों से गम की परत उतरने लगी आँखों में चमक भी लौट आई दिल फिर से गुनगुनाने लगा मेरी जिस्म में जान सी आ गयी

सब-ऐ-तन्हाई

सोई हेई रातों में हमें बुलाते हो ; धीमे धीमे बहुत सी बातें करते जाते हो, दूर रहकर भी हाय, कितना सताते हो, जब सोई हुई रातो में हमें बुलाते हो... न खुद सोते हो , न सोने देते हो, घंटो तक अपना हाले दिल सुनाते हो जब सोई ... जब नींद आती है तो नींद से जागते हो, और बेहिचक मिलने की फरियाद करते जाते हो, जब सोई हुई... रह रह कर अपने आगोश में बुलाते हो, रुकी रुको सी मेरी धड़कने बढाते हो, जब सोई हुई... क्या जाने क्या मिलता है, क्या जाने क्या पाते हो, क्यूँ अपने दिल की ख्वाइशें बताते हो, जब सोई हुई..

तन्हाई के लम्हे

दिल की उदासियों का जिक्र करूं या, रात की तन्हाई का, वो जगह कहाँ से लाऊं जहाँ तू न बसता हो... लम्हा लम्हा बिताने का तरीका सीखूँ, या नींद में तुम्हे भुलाने का, वो वक़्त कहाँ से लाऊँ जिससे तू वाबस्ता न हो... गली कूचों से जाना छोडूं या सुनसान रहगुजर से, वो रास्ते कहाँ से ढूंदु जहाँ से तू गुजरता न हो.. जीने का सलीका सीखूँ, या देखूं सामान मरने का, वी शय काश मिल जाए कहीं, जिसके लिए तू भी कम न तरसता हो...

गुम हुआ सावन

हर वीराने को अंधेरों में तलाश-ए-चिराग नहीं होती बर्फ के लोग जहाँ मकीं हों दिलों मं आग नहीं होती शाद रहने की कोशिशों में मसरूफ हैं इस जहान वाले ग़मों के शौकीनों को मगर सुखों की फरियाद नहीं होती कब्र में दफ़न लाशों में मिलेंगे दफ़न कई अरमान यहाँ जिंदा इंसानों में ज़रूरत-ए-जज्बात नहीं होती मुफलिसी में पलती है कहीं हजारों जिंदगियाँ कहीं रईसों की भी दुनिया आबाद नहीं होती सूखे दरख्त उमीदों से तकते हैं उबलता आसमान सावन बरसे जब सहरा में तब भी यहाँ बरसात नहीं होंती

इनायतें दुश्मनों की

उनकी इनायतों की भार तले मेरी हस्ती ही दब न जाए के मिजाज़-पुरसी को मेरी उनके कई नामाबर आये.. कर्मों की फेहरिस्त उनकी मेरे ज़ख्मों से लम्बी थी की मेहरबानियाँ जब जब हुईं दिल ने खून के आंसू बहाए माजी में डूबा हुआ हर नासूर बहने लगा के जब जिंदगी बारहा उनके दर पे छोड़ आये उस रकीब के जानिब उठते कदम रोके कैसे जिसने रहनुमा बन के कई ख़तम होते रस्ते भटकाये आज पूछा अहबाब ने पांवों के छालों को देख यार, कहाँ कहाँ घूमे कहाँ कहाँ हो आये? तिस पर अब उस मगरूर की हिम्मत के क्या कहने ज़ख्मों पे नमक छिड़कने उसने चारागार हैं भिजवाये....

तमन्ना-ऐ-वस्ल-ऐ-यार

रूह से रूह बात करती है फिर हम वस्ल की तमन्ना क्यों करें तेरी नज़रों से गुफ्तगू जाती रहे लबों से लफ्जों की कामना क्यों करें हरेक गोश में बैठे हैं तेरे ख्वाब यहाँ तेरे न होने का शिकवा क्यों करें वो हर शय तो मिल नही सकती उस हर शय का तकाजा क्यों करें जब ख्यालों में जी लेते हैं बेशक उस पे तेरे न आने का गिला क्यों करें बहुत मेहरबानियाँ हैं यूँ भी हम पे और इस से अब तमन्ना क्यों करें....

तेरा साया

किसी को कैसे बताएं तब क्या क्या होता है जब रात के अँधेरे में आसमान में चाँद तनहा होता है... जब हरसिंगार खिलते हैं जब हवा बहती है जब मेरा एक ख्वाब तेरे ख़्वाबों में आकर सोता है… जब अपने घर के बाम पर तू खड़ा मेरे झरोखे की तरफ चुपके से झाँक रहा होता है… जब सबा के साथ खुशबू तेरी आती है जब सारा आलम मद मस्त सा तेरे बदन सा महक रहा होता है… तब तेरा मासूम चेहरा तेरी आँखें, तेरी साँसे तेरा साया और तू मेरे पास कहीं खड़ा होता है

अब हम क्या करें

कुछ और करने के काबिल रहे नहीं तुझसे प्यार भी न करें तो अब क्या करें? होंठों पे लगी चुप तेरे कहने पे नज़र-ए-इकरार न करें, तो अब क्या करें? दस्तूर गर बदल सकते रवायतें मोहब्बत का, तो सदियों पहले बदल चुके होते... कहते हो, के न चाहें तुम्हें इस कदर, तो तुझसे तकरार न करें, तो अब क्या करें? तेरे साथ जीने की आरजू में, कई जनम गवां बैठें हैं तनहा-तनहा इस जिंदगी में भी तू छुडाये दामन, फिर मौत का इंतज़ार न करें, तो अब क्या करें? तुझे भुलाने की कोशिशें बेकार गयीं यादें झांकती हैं झरोखों से, रात भर अकेले में आ आकर बहलाती हैं इसलिए, नींदें अपनी खराब न करें, तो अब क्या करें? न बाद -ए -नसीम, न खुशनुमा पल मेरी जिंदगी में किसी की जगह नहीं सिर्फ तुझ तक दिखे जब सारी खुदाई उस खुदाई को स्वीकार न करें, तो अब क्या करें?

मयकदा

ए साकी मत पिला मेरे नाखुदा को इतनी के उठ न सके वो अंजुमन से तेरी जाम पे जाम पिए जा रहा है नादाँ वो के कैफ उसको चढ़ जाए और किस्मत न पलट जाए मेरी.... तकदीर से मिला है, ये आशिक दीवाना रहने दे, इसको महफ़िल में तू मेरी न पी इसने, तो कोई और पिएगा बज्म तेरी आबाद थी, आबाद रहेगी..... बस एक बन्दा छोड़ दे, इस कैद-ए-जाम से दुआ करूं,भरती रहें यूँ तेरी असिरी ला दे मुझे लौटा के, मेरा चाहनेवाला वरना मुझे शराब तेरी बरबाद करेगी.... हासिल मेरी जिंदगी का, न मय पे तू लुटा ये मय न थी किसकी, और न ही बनेगी सुरूर जब चढ़ के उतर जायेगा कल तक शर्मिंदगी आँखों में तब उसकी दिखेगी.... न तू गिरा उसको फिर किसी की नज़र से वो पीता नहीं तेरे बगैर और कहीं भी तू रोक ले बरबादी से मेरे बन्दे को हर रोज़ तेरे मैकदे पे ज़बीं मेरी झुकेगी....
एक ख़त तुम लिख दो एक ख़त मेरे नाम तुम लिख दो दो लफ्जों में अपना पैगाम लिख दो पूछते पूछते नामाबार से थक गयी जुबां अब तो अपने दिल का हाल तुम लिख दो थकती जाती हैं निगाहें उसकी राह में उम्मीद नही टूटी मगर तेरे प्यार में रहते हैं हर वक़्त बस इंतज़ार में अब तो इजहार-ए-कलाम तुम लिख दो तुम्हें तुम्हारे बेशुमार सज्दों की कसम उन बोलती हुई खामोश निगाहों की कसम कबूल करेंगे हम उन्हें सर-आँखों पे अब तो छोटा सा इक सलाम तुम लिख दो तुम्हारी बे-पनाह चाहत से हम नावाकिफ थे छुपी हुई बेबाक मोहब्बत से हम नावाकिफ थे जाना है देर से, हाँ ये कसूर है लेकिन अब तो इजहार-ए-ख़याल तुम लिख दो पूछते पूछते नामाबार से थक गयी जुबां अब तो अपने दिल का हाल तुम लिख दो
एक ख़त तुम लिख दो एक ख़त मेरे नाम तुम लिख दोदो लफ्जों में अपना पैगाम लिख दोपूछते पूछते नामाबार से थक गयी जुबांअब तो अपने दिल का हाल तुम लिख दोथकती जाती हैं निगाहें उसकी राह मेंउम्मीद नही टूटी मगर तेरे प्यार मेंरहते हैं हर वक़्त बस इंतज़ार मेंअब तो इजहार-ए-कलाम तुम लिख दो तुम्हें तुम्हारे बेशुमार सज्दों की कसम उन बोलती हुई खामोश निगाहों की कसमकबूल करेंगे हम उन्हें सर-आँखों पेअब तो छोटा सा इक सलाम तुम लिख दो तुम्हारी बे-पनाह चाहत से हम नावाकिफ थेछुपी हुई बेबाक मोहब्बत से हम नावाकिफ थेजाना है देर से, हाँ ये कसूर है लेकिनअब तो इजहार-ए-ख़याल तुम लिख दो पूछते पूछते नामाबार से थक गयी जुबांअब तो अपने दिल का हाल तुम लिख दो

सब तकदीरें की कहानी इसी नहीं होतीं

न हिज्र का गिला न वस्ल की इल्तजा, सब रिश्तों की बुनियाद ऐसी नहीं होती.. आगोश में जन्नत हो या दूरियों में दोज़ख हर मोहब्बत की इन्तहा ऐसी नहीं होती... नज़र-नज़र में गुफ्तगू सरे आम या तन्हाई में सब की चाहत- ए- बयान ऐसी नहीं होती... रुसवाइयां नीवं हो जिसकी बदनाम करें महबूब कोचाहत-ए पाकीज़ की निशानियाँ ऐसी नहीं होती... परवान चढ़ जाए जो मोहब्बत और खुशगवार भी हो सब तकदीरों की कहानियां ऐसी नहीं होती...

किसी मोड़ पे

कई बार भूली सी इक कहानी जिंदगी फिर दोहरा जाती है वो जो गुज़र गयी मंजिल पीछे किसी मोड़ पे फिर टकरा जाती है वक़्त गुजार चुका जिन लोगों को किस्मत फिर कभी मिला जाती है बहुत दूर निकल चुकने के बाद उन्हें फिर लौटा के लाती है साया भी बिछड़ जाता है जब वीरानी रात ऐसी भी कभी आती है वो तो तकदीर कुछ ऐसी है के इक रौ-ए-उम्मीद जला जाती है करूं किस तरह तेरा शुक्रिया के मेरी किस्मत तुझसे बार बार मिलाती है तू चाहे जहाँ जाए मगर फिर भी जिंदगी तुझे मेरे पास, और पास ले आती है...

बीते पल

इक अनजान कमरे से उसने जब, मेरा तारुफ़ कराया था, उस अनजान कमरे में मुझे, मेरा अक्स नज़र आया था.... उसके बिस्तर से मुझे अपनी, खुशबू सी आई थी, और उसके तकिये ने मुझे मेरे नाम से बुलाया था.... उसकी सिलवटों से रिक्त चादर, मेरी उँगलियों को खुद छू गई थी, उसने मुझे उसकी जागी रातों के पल पल का हिसाब बताया था... न वो खिड़कियाँ मुझे जानती थी, न दर वो दीवारे मुझे पहचानती थी, फिर भी हर गोश ने मुझे, अपनेपन का अह्सास दिलाया था... इक तमन्ना पूरी हुई मेरी, यूँ अचानक खुदा मेहरबान हुआ, उसपे मेरी तमन्ना को उसने, हमारी तमन्ना कहके बुलाया था... वो बेशकीमती पल जिसमे, इक युग हमने बिताया था, मेरी साँसों में यूँ ढले जैसे, मेरे जीवन का उसमे सरमाया था... वो तीखी हवा और ठंडी दुपहरी, उन कम्प्कपाते हाथो की हरारत, और उसका छूना जैसे, बारिश में आफताब निकल आया था...

एक ख़त तुम लिख दो

एक ख़त मेरे नाम तुम लिख दो, दो लफ्जों में अपना पैगाम लिख दो; पूछते पूछते नामाबार से थक गयी जुबां, अब तो अपने दिल का हाल तुम लिख दो; थकती जाती हैं निगाहें उसकी राह में, उम्मीद नही टूटी मगर तेरे प्यार में; रहते हैं हर वक़्त बस इंतज़ार में, अब तो इजहार-ए-कलाम तुम लिख दो, तुम्हें तुम्हारे बेशुमार सज्दों की कसम; उन बोलती हुई खामोश निगाहों की कसम, कबूल करेंगे हम उन्हें सर-आँखों पे, अब तो छोटा सा इक सलाम तुम लिख दो; तुम्हारी बे-पनाह चाहत से हम नावाकिफ थे, छुपी हुई बेबाक मोहब्बत से हम नावाकिफ थे; जाना है देर से, हाँ ये कसूर है लेकिन, अब तो इजहार-ए-ख़याल तुम लिख दो; पूछते पूछते नामाबार से थक गयी जुबां, अब तो अपने दिल का हाल तुम लिख दो..

तेरे ख़याल

दुश्मन हैं मेरी जान के तेरे ख्वाब - ओ - ख्याल कम्बख्त न मरने देते हैं न जीने देते हैं सताते हैं रुलाते हैं जगाते हैं नींद से चाक ज़ख्म -ए-दिल को न सीने देते हैं आब-ओ-हयात का प्याला उड़ेल दिया और अब नाब-ए-ज़हर चाहकर भी न पीने देते हैं कभी थामा नहीं डूबती कश्ती को वक़्त रहते उसपे तूफ़ान के हवाले हमारे सफीने देते हैं..

किसी और का हमसाया

कई दिनों से कई दिनों तक, सिफ इक दोस्त ने यारी निभाई, जब कोई पास न था हमारे, तो हमारी तन्हाई ही काम आई, और फिर हमने गए वक़्त के मंज़र दोहराए, तो नए पुराने कितने चेहरे याद बन सामने आये, इन यादो में कुछ ऐसे चेहरे थे, जिन्होंने होठों पे तबस्सुम खिलाये, और कुछ ऐसे भी थे, जिन्होंने ने सौ सौ आंसू रुलाये, फिर इक ऐसा चेहरा आया, जो अभी याद न बन पाया , जिसने मेरे ज़िन्दगी में , खुदा का नूर बरसाया, जो हँसता है, हँसाता है और खींच कर मुझे ग़मों के दायरे से , अपने आगोश में बुलाता है, जो पूछो तो मुझसे प्यार होने से मुकरता है, और कभी मेरे प्यार का दम भरता है, जो नींदों से जगा कर मुझे, जागते हुए खवाब दिखाता है, और फिर इशारों से ही खुले आसमान में बादल बनाता है, फिर क्यूँ उस चेहरे में में अपना कल ढूँढती हूँ, जो चेहरा मुझे किसी और का हमसाया नज़र आता है....

वो शख्स

रंग भरा उम्मीदों भरा, हर रोज़ मुझसे मिलने रात गए मेरे ख्यालों में आता है, क्या बताएं वो कैसा है, बिलकुल ख्यालों जैसा है, मुझे अक्सर इंतज़ार और उम्मीदों में, फर्क समझाता है, जिसके होठों में इक आग है, जिसकी सांसो में इक राग है, सभी साज ज़िन्दगी के बज उठते हैं, जब वो नजदीक आता है, कुछ कल के किस्से , कुछ आज के अफसाने, मेरे आज से जुड़ कर, कैसे कैसे बहानों से, गीतों में सुनाता है, जिसके होने से बहार आती है, जिसके जाने पे खिजां सताती है, बादल सावन उसमे समाये, जो खुद को मौसम, मुझे बारिश बुलाता है, जिसकी छाव में तपिश जिसके आगोश में आतिश, जो तन्हाई में अक्सर, उँगलियों से अपनी धड़कन सुनाता है, जो ख्वाबीदा होकर भी, सपनो से डराता है, अपने लिए सिर्फ हकीकत चुनता है, मुझे मगर गए रात सपने दिखाता है, जिसके लबों पर मेरा नाम तक नहीं आता, बिना नाम के वो अपने नामों से मुझे अक्सर बुलाता है, दिन भर इधर उधर भवरे सा सब फूलों पर डोलता रात में वो सिर्फ मेरा हो जाता है, पता नहीं और कुछ नहीं, दो लफ्जों की उसकी जुबान, जिसके दर्मियान मुझे वो हिकायते-जिंदगी सुनाता है, आप और तुम के हमारे फासले, शायद कभी कम न हो इन फासलो