ऐसा भी हुआ कुछ....

ये आपकी नज़रे इनायत है जनाब हमारा जलवा नही
जो जादू सर चढ़ के बोले उसका खाना खराब है
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इतनी तारीफ़ न कर के में इतरा का आइना तोड़ दूं
कुछ झूठ बोला है , तो कुछ सच भी फरमाइये
ये मेरा जमाल नही आपकी आँखों का धोका है
हुजुर अब इस तरह मेरा गुरुर न बदाइए

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आपको आपकी खासियत का पता नही
इस नियामत को हमने महसूस किया है
जब कभी अपनों ने हाथ छोडा है मेरा
आपने झुक कर मेरा हाथ थाम लिया है

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हिज्र का आलम कुछ ऐसे बिताया गया
के तुझको ही सोचा किये
तुझको ही ज़हन में बिठाया गया.....

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मेरे मौला मेरे अजीज़, मेरी दीवानगी का कोई हासिल नही
जब जब जोगन बनी, तब तब उसका पता बिसर गया
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मेरी बातों पे यकीन हैं उन्हें इस बात का यकीन मुझे नहीं
कई बार मुझसे वादा खिलाफी हुई, कई बार वादा तोड़ा गया.....

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जिसके दर से दामन भरने की तमन्ना थी मेरी
उसका हाथ खैरात देने को उठा ही नही....

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