ज़रा सोचो...

किन किनारों की बात करते हैं जनाब
जहाँ लहरें दम तोड़ती हैं
जहाँ किश्तियाँ सागर तोलती हैं
जहाँ खारे पानी का एक सैलाब आता है
जहाँ हर पेड़ मुरझा जाता है
दर्द की शिद्दत किनारा नहीं बताता है
दर्द हमेशा समंदर अपने दिल में छुपाता है
बात करो जब चोट की तो, सफीने से पूछो
जिसको किनारा छोड़ देता है
और समंदर सँभाल नहीं पाता है

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