फ़क़त मुद्दत-ए-जुदाई को रोते हैं....

खुली आँखों में भी उसका ख्वाब बसता है
उसकी हसरत में ये दिल तरसता है
उसको मेहमान करने की ख्वाइश मन में है
जिसका रास्ता मेरे दिल से होकर गुज़रता है

कई मर्तबा एक शोर उठता है सीने में
जिसकी चुप्पी ज़माने को सुनाई देती है
मेरी आँखों से सबको इल्म हो गया है
आजकल हमारी चर्चा ज़माना करता है

ये ज़िन्दगी आखारिश मुक्कम्मल होगी
फ़क़त मुद्दत-ए-जुदाई को रोते हैं
फिर एक दिन लौटना है उसे के अब
यहाँ वक़्त भी उसका इंतज़ार करता है

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