इरतिका-ए-जिंदगी

तुम कहते हो सुनो, दर्द उनकी सिसकियों का
मैं कहती हूँ, मैंने देखा ज़ख्म जहाँ थे
उस देश के लोगों को गवांरा था यूँ घुट के मरना
उस देश की लोगों में लड़ने के हालात कहाँ थे
हर सरकार लूटती थी हर शहर हर गली को
उनके आगे चंद लोगों के नाल-ए-फरीयाद रवां थे
फिर भी पत्थर कूटते उन हाथों में हर वक़्त
मुल्क की इरतिका-ए-जिंदगी के अरमान जवां थे



इरतिका-ए-जिंदगी - progress of life

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