एक ख़त तुम लिख दो
एक ख़त मेरे नाम तुम लिख दो,
दो लफ्जों में अपना पैगाम लिख दो;
पूछते पूछते नामाबार से थक गयी जुबां,
अब तो अपने दिल का हाल तुम लिख दो;
थकती जाती हैं निगाहें उसकी राह में,
उम्मीद नही टूटी मगर तेरे प्यार में;
रहते हैं हर वक़्त बस इंतज़ार में,
अब तो इजहार-ए-कलाम तुम लिख दो,
तुम्हें तुम्हारे बेशुमार सज्दों की कसम;
उन बोलती हुई खामोश निगाहों की कसम,
कबूल करेंगे हम उन्हें सर-आँखों पे,
अब तो छोटा सा इक सलाम तुम लिख दो;
तुम्हारी बे-पनाह चाहत से हम नावाकिफ थे,
छुपी हुई बेबाक मोहब्बत से हम नावाकिफ थे;
जाना है देर से, हाँ ये कसूर है लेकिन,
अब तो इजहार-ए-ख़याल तुम लिख दो;
पूछते पूछते नामाबार से थक गयी जुबां,
अब तो अपने दिल का हाल तुम लिख दो..
दो लफ्जों में अपना पैगाम लिख दो;
पूछते पूछते नामाबार से थक गयी जुबां,
अब तो अपने दिल का हाल तुम लिख दो;
थकती जाती हैं निगाहें उसकी राह में,
उम्मीद नही टूटी मगर तेरे प्यार में;
रहते हैं हर वक़्त बस इंतज़ार में,
अब तो इजहार-ए-कलाम तुम लिख दो,
तुम्हें तुम्हारे बेशुमार सज्दों की कसम;
उन बोलती हुई खामोश निगाहों की कसम,
कबूल करेंगे हम उन्हें सर-आँखों पे,
अब तो छोटा सा इक सलाम तुम लिख दो;
तुम्हारी बे-पनाह चाहत से हम नावाकिफ थे,
छुपी हुई बेबाक मोहब्बत से हम नावाकिफ थे;
जाना है देर से, हाँ ये कसूर है लेकिन,
अब तो इजहार-ए-ख़याल तुम लिख दो;
पूछते पूछते नामाबार से थक गयी जुबां,
अब तो अपने दिल का हाल तुम लिख दो..