बारिश के 3 रूप...
जब कभी बारिश होती है
कच्ची मिट्टी की खुशबू संग लाती है
हम इमारतों में बैठ कर लुत्फ़ उठाते हैं
गरीबी टूटी झोपडी में बाल्टी लगाती है
कही सूखा सूखा कच्चा फर्श
भीग न जाए टपकते पानी में
कहीं बह न जाए सारी जमा पूँजी इसलिए
खुदा से बरसात बंद करने की दुहाई लगाती है
गीला गीला घास का गलीचा, खिलते हुए फूल
कुछ खुशनुमा जोड़े लड़के लड़कियों के बाग़ में
पेड़ों के पीछे खडे हुए बरसात में
बारिश किसी किसी के लिए प्यार की सौगात लाती है
वहीं कभी फिसल गए कोई बाबू जी डगमगा के
सौ सौ गालियाँ देते हैं मुनिसिपलिटी को
कभी गड्दो में घुटने तक पानी में बचपन
मासूमियत से कागज़ की कश्तियाँ तैराती है
****
एक कप काफ़ी का मेरे सामने पड़ा है
खट्टी मीठी इमली की चटनी पकोडे के साथ
बस नही है तो तेरी मौजूदगी
ओर मेरे हाथों में तेरा हाथ
बारिश के इस मौसम में जाने क्यों
आती है, बहुत आती है किसी अपने की याद
दिल खाली है आँखें भरी हुई, आखिर
कोई कैसे रोके ये मचलते हुए जज्बात
****
गरम गरम चाय की चुस्की
टिप टिप पड़ता पानी ओर ठंडी ठंडी हवाएं
दिल चाहता है ओढ़ के इस बारिश को
दूर कहीं इसमें खो जाएं ...
बेलौस बरसता, टूटता आसमा
काले बादल बिजलियाँ चमकाएं
हरी हरी डूब पे हीरे सी बूंदे
आँखों में छुपे आंसुओं को भी लजाएं
जिनके मनमीत गए दूर देश को
जाने इस मौसम में क्यों इतने याद आयें
कितना बेचैन करती है ये बारिश
कोई कैसे उनको ये सन्देश पहुँचाये
फिर भी एक इंतज़ार रहता है उसका
जो इन भीगे पलों में आँखें भिगाये
एक बारिश ओर सौ मजबूरियां
किस की नौकरी ओर किसी का सावन बीता जाए
कच्ची मिट्टी की खुशबू संग लाती है
हम इमारतों में बैठ कर लुत्फ़ उठाते हैं
गरीबी टूटी झोपडी में बाल्टी लगाती है
कही सूखा सूखा कच्चा फर्श
भीग न जाए टपकते पानी में
कहीं बह न जाए सारी जमा पूँजी इसलिए
खुदा से बरसात बंद करने की दुहाई लगाती है
गीला गीला घास का गलीचा, खिलते हुए फूल
कुछ खुशनुमा जोड़े लड़के लड़कियों के बाग़ में
पेड़ों के पीछे खडे हुए बरसात में
बारिश किसी किसी के लिए प्यार की सौगात लाती है
वहीं कभी फिसल गए कोई बाबू जी डगमगा के
सौ सौ गालियाँ देते हैं मुनिसिपलिटी को
कभी गड्दो में घुटने तक पानी में बचपन
मासूमियत से कागज़ की कश्तियाँ तैराती है
****
एक कप काफ़ी का मेरे सामने पड़ा है
खट्टी मीठी इमली की चटनी पकोडे के साथ
बस नही है तो तेरी मौजूदगी
ओर मेरे हाथों में तेरा हाथ
बारिश के इस मौसम में जाने क्यों
आती है, बहुत आती है किसी अपने की याद
दिल खाली है आँखें भरी हुई, आखिर
कोई कैसे रोके ये मचलते हुए जज्बात
****
गरम गरम चाय की चुस्की
टिप टिप पड़ता पानी ओर ठंडी ठंडी हवाएं
दिल चाहता है ओढ़ के इस बारिश को
दूर कहीं इसमें खो जाएं ...
बेलौस बरसता, टूटता आसमा
काले बादल बिजलियाँ चमकाएं
हरी हरी डूब पे हीरे सी बूंदे
आँखों में छुपे आंसुओं को भी लजाएं
जिनके मनमीत गए दूर देश को
जाने इस मौसम में क्यों इतने याद आयें
कितना बेचैन करती है ये बारिश
कोई कैसे उनको ये सन्देश पहुँचाये
फिर भी एक इंतज़ार रहता है उसका
जो इन भीगे पलों में आँखें भिगाये
एक बारिश ओर सौ मजबूरियां
किस की नौकरी ओर किसी का सावन बीता जाए