तेरे लिए जानम .....
इतने इल्जाम दिए उसने के जीना कुफ्र लगने लगा,
क्युकर बा-वफाई के बाद भी बे-वफ़ा समझा हमे ....
हम गुनाहगार बन गए, बे-गुनाह होकर भी
उसकी नज़र का फेर था या वक़्त ही बदल गया ........
इतनी तवज्जो उस दोस्त की थी मुझ पे, अरसा पहले,
के हर लम्हा उसकी खातिर जीते थे हम उन दिनों
अब गम-ए-फुर्क़त से वो हाल-ए-दिल हो गया
के हर रोज़ यु लगे के सुबह होते ही सूरज ढल गया….
क्युकर बा-वफाई के बाद भी बे-वफ़ा समझा हमे ....
हम गुनाहगार बन गए, बे-गुनाह होकर भी
उसकी नज़र का फेर था या वक़्त ही बदल गया ........
इतनी तवज्जो उस दोस्त की थी मुझ पे, अरसा पहले,
के हर लम्हा उसकी खातिर जीते थे हम उन दिनों
अब गम-ए-फुर्क़त से वो हाल-ए-दिल हो गया
के हर रोज़ यु लगे के सुबह होते ही सूरज ढल गया….