मैं माज़ी का सोचूँ
मैं माज़ी का सोचूँ, या सोचूँ आज का मौज़ू
हर एहद में गुलों से बस कुछ ख्वार ही नसीब हुए
मेरी बुरी आदतें मेरी जिंदगी का सिला हैं
कभी जिंदगी गम के, कभी गम जिंदगी के करीब हुए
हर एहद में गुलों से बस कुछ ख्वार ही नसीब हुए
मेरी बुरी आदतें मेरी जिंदगी का सिला हैं
कभी जिंदगी गम के, कभी गम जिंदगी के करीब हुए