आतिश-ए-हिजरां
वस्ल-ए-यार की उम्मीद ने थामी हैं साँसे
वरना दर्द-ए-इश्क से हम रोज़ मरा करतें हैं
तुझे खौफ है शमा की रौ से जल जाने का
यहाँ आतिश-ए-हिजरां में हम रोज़ जला करते हैं
इक ख्वाब के टूटने पे रोता क्यूँ है
के हजारों ख्वाब मेरे यूँ ही टूटा करतें हैं
न देख तबस्सुम को ये दिल्लगी है
के दिल की लगी लो हम दिल में रखा करतें हैं
किन सरहदों में बंधी है सोच तेरी
मोहब्बत में तो अरमान आजाद उड़ा करतें हैं
देख ज़रा बुलंदी मेरे हौसलों की
के नाउम्मिदियों में भी हम उम्मीद रखा करतें हैं
वो दम भरतें हैं भूल जाने का बेशक
मगर अफ़साने इश्क के उनके होंठों पे सजा करते हैं
गुनगुनातें हैं अक्सर वो महफिलों में जिन्हें
हमे ही वो ग़ज़ल बना के पन्नों पे लिखा करते हैं
हटा के अक्स मेरा सोच्तें हैं हम नहीं
मगर तस्वीर बन के हम उनकी किताबों में रहा करते हैं...
वरना दर्द-ए-इश्क से हम रोज़ मरा करतें हैं
तुझे खौफ है शमा की रौ से जल जाने का
यहाँ आतिश-ए-हिजरां में हम रोज़ जला करते हैं
इक ख्वाब के टूटने पे रोता क्यूँ है
के हजारों ख्वाब मेरे यूँ ही टूटा करतें हैं
न देख तबस्सुम को ये दिल्लगी है
के दिल की लगी लो हम दिल में रखा करतें हैं
किन सरहदों में बंधी है सोच तेरी
मोहब्बत में तो अरमान आजाद उड़ा करतें हैं
देख ज़रा बुलंदी मेरे हौसलों की
के नाउम्मिदियों में भी हम उम्मीद रखा करतें हैं
वो दम भरतें हैं भूल जाने का बेशक
मगर अफ़साने इश्क के उनके होंठों पे सजा करते हैं
गुनगुनातें हैं अक्सर वो महफिलों में जिन्हें
हमे ही वो ग़ज़ल बना के पन्नों पे लिखा करते हैं
हटा के अक्स मेरा सोच्तें हैं हम नहीं
मगर तस्वीर बन के हम उनकी किताबों में रहा करते हैं...