अनजान ....
अनजाना, अनदेखा एक शख्स ,
गुज़रा मेरी गलियों से जाने कैसे
बहारें बाँटता, खुशियाँ बिखेरता
गुफ्तगू करता कलियों से जाने कैसे
न आवाज़ सुनी उसकी कभी न अंदाज़ देखा
उसकी आँखों में लेकिन पलता एक खवाब देखा
आरसी में अक्स कभी दिखेगा तो ज़रुर मगर
तब तक बात करता है उँगलियों से जाने कैसे
गुज़रा मेरी गलियों से जाने कैसे
बहारें बाँटता, खुशियाँ बिखेरता
गुफ्तगू करता कलियों से जाने कैसे
न आवाज़ सुनी उसकी कभी न अंदाज़ देखा
उसकी आँखों में लेकिन पलता एक खवाब देखा
आरसी में अक्स कभी दिखेगा तो ज़रुर मगर
तब तक बात करता है उँगलियों से जाने कैसे