दर्द-ए-जुदाई
कोशिश करेंगे जीने की ज़रुर
गर जी न पाए, तो क्या हुआ
किसी की बिछड़ने का अहसास-ए-दर्द
गर हमको रुलाये तो क्या हुआ...
महकती फिजा मैं घुलती घावों की सड़न
बंद दरवाजों के पीछे से मेरी घुटी चीखें
और उस पे आंसुओं का सैलाब
मुझको बहा के ले जाए तो क्या हुआ
शमा का हर एक पिघलता गर्म कतरा
परवाने के लहू की तासीर लिए हेई
तू परवाना न बन सका, खैर
हमने हिज्र के गम उठाये तो क्या हुआ
पहल के झूठी तबस्सुम मेरे लबों ने
महफिलों की जीनत बढाई है अक्सर
हैरान है क्यों जिन्दादिली पे मेरी
के तेरे दाग मुस्कुरा के छुपाये तो क्या हुआ...
गर जी न पाए, तो क्या हुआ
किसी की बिछड़ने का अहसास-ए-दर्द
गर हमको रुलाये तो क्या हुआ...
महकती फिजा मैं घुलती घावों की सड़न
बंद दरवाजों के पीछे से मेरी घुटी चीखें
और उस पे आंसुओं का सैलाब
मुझको बहा के ले जाए तो क्या हुआ
शमा का हर एक पिघलता गर्म कतरा
परवाने के लहू की तासीर लिए हेई
तू परवाना न बन सका, खैर
हमने हिज्र के गम उठाये तो क्या हुआ
पहल के झूठी तबस्सुम मेरे लबों ने
महफिलों की जीनत बढाई है अक्सर
हैरान है क्यों जिन्दादिली पे मेरी
के तेरे दाग मुस्कुरा के छुपाये तो क्या हुआ...