एक और रूप उसका
तुम साहिल उस दरिया के,
जिसमे मेरी लहरें मचलती हैं;
तुझसे टकरा के टूट जाती हैं
बहुत मुश्किल से जो बनती हैं...
तुम जाम हो उस मय के,
जिसमे मेरा कैफ बसता है,
वक़्त बे वक़्त उतरता है,
बहुत मुश्किल जो चढ़ता है...
तुम आँखे हो उस चेहरे की,
जिसमे मेरे आंसू बसते हैं,
तेरी बेरुखी के सदके वो बेताब
बरसने को तरसते हैं...
जिसमे मेरी लहरें मचलती हैं;
तुझसे टकरा के टूट जाती हैं
बहुत मुश्किल से जो बनती हैं...
तुम जाम हो उस मय के,
जिसमे मेरा कैफ बसता है,
वक़्त बे वक़्त उतरता है,
बहुत मुश्किल जो चढ़ता है...
तुम आँखे हो उस चेहरे की,
जिसमे मेरे आंसू बसते हैं,
तेरी बेरुखी के सदके वो बेताब
बरसने को तरसते हैं...