हाल-ऐ-दिल

कुछ सुनो, कुछ सुनाओ
दास्ताँ अपने गुज़रे कल की
आज की तो सब हकीक़तें
अफसाना बन चुके हैं

था वक़्त जब,
तब न हवास लौटे मेरे
आज की न पूछो हमारी
अब तो दीवाने बन चुके हैं

वो तुम ही तो हो सिर्फ
जो अपने से लगते हो
बाकी दुनियावाले
अब बेगाने बन चुके हैं

वो गैर थे कभी
तुम गैर हो अभी
आशना नए हो तुम
बाकी पुराने बन चुके हैं....

Popular posts from this blog

अहसास-ए-गम

तमन्ना-ऐ-वस्ल-ऐ-यार