हर रोज़. ......
हर रोज़ ज़िन्दगी एक शख्स के नाम से शुरू होती है
हर रोज़ रात को मायूस सी फिर सो जाती है ,
गरचे उस शख्स की बातें और उसकी यादें ,
ख्याल बन के ख्वाबों को सजाती है
अश्क कहें या के चश्मे -आबशार कहें ,
कुछ तो रोज़ ये आँखें बहाती हैं,
एक पत्थर सा दिल पे रहता है शब भर
एक आतिश है जो हिज्र में जलाती है ....
हर रोज़ रात को मायूस सी फिर सो जाती है ,
गरचे उस शख्स की बातें और उसकी यादें ,
ख्याल बन के ख्वाबों को सजाती है
अश्क कहें या के चश्मे -आबशार कहें ,
कुछ तो रोज़ ये आँखें बहाती हैं,
एक पत्थर सा दिल पे रहता है शब भर
एक आतिश है जो हिज्र में जलाती है ....