शाम भी सुंदर होती है....

हर सुबह खुशियों भरा आपका एक पैगाम लाती है
हर शाम मगर मायूस होकर आपके दर से लौट जाती है
लगता है के आप रौशनी के चाहने वालों में से एक हैं
तभी तो आपके हर शब्द में सिर्फ सूरज की खुशबू आती है

मुझे शिकायात मिली है आपकी, एक सितारे से
और चांदनी भी आपसे अक्सर रूठ जाती है
क्यूँ रात के हुस्न से इतने खफा खफा रहते हैं
क्या अंधेरों की सरगोशी आप में कोई उम्मीद नहीं जगाती है???

इन अंधेरों की वजह से ही आपका सूरज चमकता है
इसकी कालिमा से ही दिन का वजूद बनता है
रौशनी तभी दिखती है जब अँधेरा छंट जाता है
क्या किसी को चाँद कभी सूरज से कम नज़र आता है???

इसलिए ए दोस्त, कभी अंधेरों में भी झाँक के देख
के अंधेरों में भी कविताएँ की कमी तो नहीं ...
मेरा चाँद किसी तरह से तेरे सूरज का तलबगार नहीं
फिर तेरे लफ्जों में चांदनी की जगह क्यूँ नहीं????

Popular posts from this blog

अहसास-ए-गम

तमन्ना-ऐ-वस्ल-ऐ-यार