एक पराया .....
एक पराया .....
समझा था किसी की
आँखों में अक्स था मेरा,
अब जाना वो अक्स नहीं
सिर्फ एक साया था,
जिसे नाखुदा बना के,
सफर का आगाज़ किया,
उसने ही मेरी किश्ती को
साहिल करीं डुबाया था....
न उसका ख्याल है,
इस मौके पे ए दोस्त
मेरे अपनेपन का,
उसने मज़ाक उड़ाया था
उसकी हर बात में अब,
एक खलिश लगती है
जिसकी बातों ने कभी
मेरा दिल लुभाया था .....
समझा था किसी की
आँखों में अक्स था मेरा,
अब जाना वो अक्स नहीं
सिर्फ एक साया था,
जिसे नाखुदा बना के,
सफर का आगाज़ किया,
उसने ही मेरी किश्ती को
साहिल करीं डुबाया था....
न उसका ख्याल है,
इस मौके पे ए दोस्त
मेरे अपनेपन का,
उसने मज़ाक उड़ाया था
उसकी हर बात में अब,
एक खलिश लगती है
जिसकी बातों ने कभी
मेरा दिल लुभाया था .....