रु -बरु

कहाँ खो गए हो तुम आजकल
के परछाइयां तक भी नसीब नहीं
रोज़ लौट के आते हैं तेरी जानिब
शायद कभी यार से रु -बरू यार हो ..
***

सिर्फ यादें ....
फिर किसी की याद में शमा जलाई थी
चाँद को बुलाया था, रात सजाई थी
इंतज़ार किया शब भर, पलकें बिछाई थी
लबों पे रंगत , आँखों में शरारत उतर आई थी
मगर ...न वो आया , न ख्वाब आये , न ही नमबार ,
न ख़त , न पैगाम , न सलाम ,
सिर्फ तन्हाई रोज़ की तरह दामन थामने आई थी ....

सलाम ...
कुछ इस तरह आना हुआ आज सहर का
के ज़र्रा ज़र्रा दिल शाद हो गया
जिसके पैगाम का इंतज़ार करा शब भर
उसके भेजा सलाम-ए-आगाज़ हो गया

पहचान
इतनी इनायत आपकी, इतना आपका कर ,
हम आपकी बातों में कुछ डूब से गए ...
न आशनाई न दोस्ती न कोई इत्तिफाक आपस ,
गरचे यु भी पहचान होती है ....

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