वक्त का तकाजा

आपकी तवज्जो ज़रा कम थी
हमारी चाहतें ज़रा सी ज्यादा
वरना मोहब्बत हमारी भी शायद
परवान चढ़ गयी होती...

मय आपकी आँखों से कम छलकी
हमारी तिशनगी ज़रा सी ज्यादा
वरना प्यास हमारी भी शायद
बिलकुल बुझ गयी होती..

वीरान था चेहरा आपकी चाहत-ए-रंग से
और हमारी रंगत ज़रा सी ज्यादा
वरना किताब-ए-दिल हमारी शायद
कुछ पड़ी गयी होती ...

खामोश लब आपके चुप्पी लगाए
यहाँ बातें हमारी ज़रा सी ज्यादा
वरना हाल-ए-दिल ज़ाहिर होता शायद
और गुफ्तगू हो गयी होती....

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