आपकी नज़र
मेरे दिल का हर गोश कभी मोहब्बत से आबाद था
यहाँ गुंजाइश नही थी किसी गम की होने की
बस सोया सा, बेसुध सा, गुमसुम सा पड़ा था
ये आपने चुप चाप से कैसी दस्तक दी.....
बस कहीं एक खालीपन सा छा रहा था
न रंजिश थी इसमें न नफरत इसमें थी
जगाया कितने अरमानों को हौले से पुकार के
कितनी मासूमियत से आपने ये प्यारी हरक़त की....
यहाँ गुंजाइश नही थी किसी गम की होने की
बस सोया सा, बेसुध सा, गुमसुम सा पड़ा था
ये आपने चुप चाप से कैसी दस्तक दी.....
बस कहीं एक खालीपन सा छा रहा था
न रंजिश थी इसमें न नफरत इसमें थी
जगाया कितने अरमानों को हौले से पुकार के
कितनी मासूमियत से आपने ये प्यारी हरक़त की....