किसी और का हमसाया

कई दिनों से कई दिनों तक,
सिफ इक दोस्त ने यारी निभाई,
जब कोई पास न था हमारे,
तो हमारी तन्हाई ही काम आई,
और फिर हमने गए वक़्त के मंज़र दोहराए,
तो नए पुराने कितने चेहरे याद बन सामने आये,
इन यादो में कुछ ऐसे चेहरे थे,
जिन्होंने होठों पे तबस्सुम खिलाये,
और कुछ ऐसे भी थे,
जिन्होंने ने सौ सौ आंसू रुलाये,
फिर इक ऐसा चेहरा आया,
जो अभी याद न बन पाया ,
जिसने मेरे ज़िन्दगी में ,
खुदा का नूर बरसाया,
जो हँसता है, हँसाता है
और खींच कर मुझे ग़मों के दायरे से ,
अपने आगोश में बुलाता है,
जो पूछो तो मुझसे प्यार होने से मुकरता है,
और कभी मेरे प्यार का दम भरता है,
जो नींदों से जगा कर मुझे,
जागते हुए खवाब दिखाता है,
और फिर इशारों से ही खुले आसमान में बादल बनाता है,
फिर क्यूँ उस चेहरे में में अपना कल ढूँढती हूँ,
जो चेहरा मुझे किसी और का हमसाया नज़र आता है....

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