मयकदा

ए साकी मत पिला मेरे नाखुदा को इतनी
के उठ न सके वो अंजुमन से तेरी
जाम पे जाम पिए जा रहा है नादाँ वो
के कैफ उसको चढ़ जाए और किस्मत न पलट जाए मेरी....
तकदीर से मिला है, ये आशिक दीवाना
रहने दे, इसको महफ़िल में तू मेरी
न पी इसने, तो कोई और पिएगा
बज्म तेरी आबाद थी, आबाद रहेगी.....
बस एक बन्दा छोड़ दे, इस कैद-ए-जाम से
दुआ करूं,भरती रहें यूँ तेरी असिरी
ला दे मुझे लौटा के, मेरा चाहनेवाला
वरना मुझे शराब तेरी बरबाद करेगी....
हासिल मेरी जिंदगी का, न मय पे तू लुटा
ये मय न थी किसकी, और न ही बनेगी
सुरूर जब चढ़ के उतर जायेगा कल तक
शर्मिंदगी आँखों में तब उसकी दिखेगी....
न तू गिरा उसको फिर किसी की नज़र से
वो पीता नहीं तेरे बगैर और कहीं भी
तू रोक ले बरबादी से मेरे बन्दे को
हर रोज़ तेरे मैकदे पे ज़बीं मेरी झुकेगी....

Popular posts from this blog

अहसास-ए-गम

तमन्ना-ऐ-वस्ल-ऐ-यार