तेरे ख़याल

दुश्मन हैं मेरी जान के तेरे ख्वाब - ओ - ख्याल
कम्बख्त न मरने देते हैं न जीने देते हैं
सताते हैं रुलाते हैं जगाते हैं नींद से
चाक ज़ख्म -ए-दिल को न सीने देते हैं
आब-ओ-हयात का प्याला उड़ेल दिया
और अब नाब-ए-ज़हर चाहकर भी न पीने देते हैं
कभी थामा नहीं डूबती कश्ती को वक़्त रहते
उसपे तूफ़ान के हवाले हमारे सफीने देते हैं..

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