परिंदों परों पे तिनकों का बोझ तब उठाते हैं
जब किसी दरख़्त पर आशियाना बनाते हैं
आसमान छूने का हौसला जब आ जाता है
अपने परों की परवाज़ तब ही आज़माते हैं

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