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Showing posts from April, 2012

bus yun hii

ये दिल खाली खाली सा लग रहा है कोई चुप चाप यहाँ से गुज़र रहा है मुड़ मुड़ के देखा कहाँ कहाँ तक वो आशना कुछ पराया लग रहा है हमने जिसके दामन से लिपटना चाहा वो अजनबी बन दामन झटक रहा है मुद्दत बाद मिलकर भी क्या मिला अब तक क्यूँ ये दिल भटक रहा है हमने दोस्तों के  चेहरों में ढूँढा खुद को हर दोस्ताना चेहरा अपनापन तज रहा है शिकायत  भी करें  तो  किससे  करें हर शख्स अपनी सलीब पे सज  रहा है खून का कतरा कतरा रिसता रहता है और मलहम को ज़ख्म तरस रहा है हाल ए दिल ने शायरी सिखा दी यारों अब हर लफ्ज़ दर्द बन कर बरस रहा है
हमसाया नहीं, हमदर्द नहीं हमकदम भी नहीं बन सका बस एक ही रिश्ता है अब उससे  हमज़मानी का रहबरी की उम्मीद थी तो राहें तकते थे हर रोज़ जिसकी बुत परस्ती सिखाने वाला वो कायल था बुत शिकानी का दिल-ए-मासूम को यहाँ के रस्मों -रिवाजों से आशनाई न थी, और उस आशना को शौक था ज़माने भर से बदगुमानी का हमने जिन मरासिमओं पर जिंदगी गुज़ार दी अपनी अब उनसे क्या शिकवा करें तोहफा ए नातवानी का हमसाया - neighbour, हमदर्द - sympathizer, हमकदम - one who walks with u हमज़मानी - staying in the same era, रहबरी - guidance, बुत परस्ती - worshipper of statue, कायल - follower, बुत शिकानी - one who breaks stutues आशनाई - friendship, आशना - friend, बदगुमानी - suspicious मरासिमओं - agreements, तोहफा ए नातवानी - gift of sarrows
बहरहाल हमें भी आज करार आ ही गया इश्क का दर्द आखरिश उनको रुला ही गया रकीब को हमारे पहलु में देखने का मंज़र खुदाया अहसास-ए-रश्क दिला ही गया ...
कौन चैन देता है, कौन देता है बेखुदी इस बात का चर्चा अक्सर महफिलों में होता है लबों पे रकीब का नाम रखकर हर शख्स दिल में अपने हबीब के नाम पे रोता है ..
koi soorat nazar nahi aati teri soorat ke siwa ke aaina bhi mera ab, mera raqeeb ho gaya...
dost do tarah ke hote hein.... ek jo zindgi bhar saath nibhaate hein doosre jo sirf chauthe aur terveen per aate hein... ek jo bure waqt mein haath thaamte hein doosre wo jo sirf achche samay mein apni yaad dilaate hein... ek dost wo bhi hota hai, jo aapko dard hua to rota hai kcuh wo bhi hote hein jo aapke zakhmon pe namak lagaate hein... bachpan ke kuch dost kai baar ta umr saath chalte hai bachpan ke hi kcuh dost umr ke saath badal jaate hein, kho jaate hein... kuch dost sabr sikhaate hein aur umeeden jagaate hein aur kuch dost rooth rooth kar apni baaten mawnaate hein... shikaayat fir bhi nahi kisi se, shikaayat ka koi faayada bhi nahi kyunki gulaab ke phool bhi kaante viraasat mein paate hein....