कौल
ये नज़रें उस दुनिया का नज़ारा देखती हैं जिसमें अब देखने लायक नजारे ही नहीं... उनकी पहचान क्या होगी क्यूँ होगी भला जो कब से हमारे होकर भी हमारे ही नहीं **** तेरे कौल तेरे करार काफी हैं भरम पैदा करने को अब कसम देकर अपनी, फिर ईमान न बेईमान कर... मेरा नाम ले लेकर यूँ जो पुकारा करे हर दम ए हबीब मेरे आ सामने आ, यूँ दूर से परेशान न कर.. *** मेरे हबीब मेरी हस्ती क्या, कुछ नहीं ये नज़रे करम आपकी निगाहों का है ...