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Showing posts from February, 2009

कौल

ये नज़रें उस दुनिया का नज़ारा देखती हैं जिसमें अब देखने लायक नजारे ही नहीं... उनकी पहचान क्या होगी क्यूँ होगी भला जो कब से हमारे होकर भी हमारे ही नहीं **** तेरे कौल तेरे करार काफी हैं भरम पैदा करने को अब कसम देकर अपनी, फिर ईमान न बेईमान कर... मेरा नाम ले लेकर यूँ जो पुकारा करे हर दम ए हबीब मेरे आ सामने आ, यूँ दूर से परेशान न कर.. *** मेरे हबीब मेरी हस्ती क्या, कुछ नहीं ये नज़रे करम आपकी निगाहों का है ...

दोस्त

मेरी शाम की उदासी तेरी सुबह मिटाती है जब हर शब् मेरी याद तुझे याद कर सो जाती है ***** मौज हूँ, लेकिन मौज नहीं करती साहिल से के वो मेरा रहनुमा बनकर मुझे रोज़ ठुकराता है हर लहर को बुला कर वो बेदर्द सागर करीं बड़ी बेशर्मी से सभी की सीपियाँ चुराता है ***** इतनी उम्मीद रखी उस नामुराद ने मुझ बेगानी से खुद पे शरमनिसार हुई जब नाउम्मीद, मेरे दर से वो गया ****** उसका रकीब बनने से पहले खुदाया समझ लेना वो एक चारागर है, और तुम हो एक बीमार दोस्ती रखोगे तो मिजाज़ पुरसी को आयेंगे वरना कौन यहाँ किसका होता है तीमारदार ???

महफिल

आपकी दुआओं की नवाजिश यूँ ही चलती रहे ये आँखें क्या सारी कायनात दुरुस्त हो जायेगी जब जब इस नाचीज़ से दर्द मुकाबिल होगा कभी सिर्फ आपकी ही दुआ तब मेरे काम आएगी ************* तेरे नशे में चूर चूर हुए बैठे हैं महफिल में तेरी खुद को क्या, यहाँ खुदा तक को होश नहीं इतना सुरूर है तेरी बातों मे ए जान नशीं के पैमाने भरे रखे हैं उठाने का जोश नहीं ************** ये हसरत ही रह गयी के उनकी महफिल मे एक जाम उठाते मुझ तक आते आते मय बची नहीं और साकी रुक्सत हो गया...

मुजस्मा

उनका मुजस्मा मेरे ज़हन में इस कदर छाया हुआ है के हर रंग मोहब्बत के बेहतरीन रंगों से नहाया हुआ है वो कहते हैं के दूर हो जाएँ हम उनसे, बहुत दूर मगर यहाँ एक चेहरा मासूम सा इन नज़रों में समाया हुआ है **** आपकी खामोशी की आवाज़ तहेदिल तक पहुँच गयी अब तक एक गूँज अरमान जगह रही है बेलौस.... *** ये हारने ये जीतने की बातें नागवार हैं मुझे जिंदगी की जंग में किसको क्या हासिल हुआ जो जीत गया दिलों को खुद का दिल हार कर तुम्हीं बताओ वो किस ईनाम के काबिल हुआ हर रहगुज़र पे बिछे हैं बेशुमार खार यहाँ, और हर शख्स खुद के अरमानो का कातिल हुआ मुझको आइना दिखाकर अपनी सुरत छुपा ली मेरे लिए अब तू गुनाहगारों की कतार में शामिल हुआ

उनका गिला

कुछ बूँदें बारिश की उधार मांग लो आज ही मेरे छज्जे पे इबके बहुत सावन बरसा है कई मोर ढूंढते हैं नाचने को घटा काली और लैला का दिल बारिश में मजनू को तरसा है ************* उनका गिला के हम दूरियां बढाने लगे हैं उनको शिकवा के हम मुहं छुपाने लगे हैं हम पर्दानशीं हैं शरमसार नहीं, क्या हक उन्हें, जो हम पर यूँ इल्जाम लगाने लगे हैं ***** आपकी हर बात पे मर जाने को जी करता है आपकी हर बात जीने का सबब भी है लेकिन ... ****** कई रास्तों से गुज़र कर तेरी अंजुमन में तशरीफ़ लाये हैं एक जाम मेरे महबूब के नाम साकी महफ़िल को पिला देख किस कदर खामोश बैठे हैं सब बादाकशीं सर झुकाए उठाकर अपना पैमाना भी उसके नाम से आ ज़रा नजदीक आ ********** तुझको मेरी रुसवाई का वास्ता है, आ एक बार फिर मुझे बदनाम कर आ एक बार फिर मेरे करीब आ आ एक बार फिर मेरे कत्लेआम कर ... ******** खुदी को कर बुलंद इतना के हर नज़र तेरी जानिब उठे बा-हौसला और झुका कर सर अपना कबूल तू हर ख़ास-ओ-आम का सजदा