दोस्त

मेरी शाम की उदासी तेरी सुबह मिटाती है जब
हर शब् मेरी याद तुझे याद कर सो जाती है
*****

मौज हूँ, लेकिन मौज नहीं करती साहिल से के
वो मेरा रहनुमा बनकर मुझे रोज़ ठुकराता है
हर लहर को बुला कर वो बेदर्द सागर करीं
बड़ी बेशर्मी से सभी की सीपियाँ चुराता है
*****

इतनी उम्मीद रखी उस नामुराद ने मुझ बेगानी से
खुद पे शरमनिसार हुई जब नाउम्मीद, मेरे दर से वो गया
******

उसका रकीब बनने से पहले खुदाया समझ लेना
वो एक चारागर है, और तुम हो एक बीमार
दोस्ती रखोगे तो मिजाज़ पुरसी को आयेंगे
वरना कौन यहाँ किसका होता है तीमारदार ???

Popular posts from this blog

अहसास-ए-गम

तमन्ना-ऐ-वस्ल-ऐ-यार