अभी तो यहीं था , लो अभी यहाँ से चला गया वक़्त का हर लम्हा वक़्त को बहला गया फिसल गया हाथों से जुज रेशमी रेत का कतरा जाते हुए लेकिन मेरी उम्मीदों को सहला गया
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Showing posts from May, 2011
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जहाँ दूरियों का अहसास न हो, जहाँ कोई गम पास न हो, चल चले उस ज़मीं पर ए हबीब मेरे जहाँ दिल बदहवास न हो हाशिये पर जीते हैं, हर रोज़ ज़ख्मों को सीते हैं कोई तो ऐसा ठिकाना होगा जहाँ लोगों में खटास न हो दामन थाम के तेरा, काश जिंदगी उधर ले जाए जहाँ हर तरफ तस्कीनियाँ हो, कहीं बेअदब प्यास न हो सहारा हो, सुकूं हो, और बेशुमार प्यार हो, सिर्फ तुम हो, सिर्फ मैं हूँ, और कुछ हवास न हो
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हर रिश्ता यहाँ एक मियाद लेकर आता है, वक़्त के साथ हर साथ बदल जाता है, शिकायत करो भी तो कौन सुनता है दिल की फ़रियाद हर कोई बस उतना निभाता है, जितना निभा पता है ... ज़माने में हरेक अपना गम खुद ही उठाता है सिर्फ अपना हाथ ही अपने आंसू पोंछ पाता है हर युग में मसीहा मर जाता है आवाम की खातिर कौन भला उसका सलीब अपने काँधे लगाता है
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वो क्या समझेंगे रिश्तों की अहमियत को जो लफ़्ज़ों में खुद को उलझा बैठें हैं अपने ही बनाए किलों में कैद हो गए हैं और दोस्तों-दुश्मनों का फर्क भुला बैठें हैं ये शिकायत नहीं, गुजारिश नहीं, जिद भी नहीं के हम चुपचाप उनसे फैसले की उम्मीद लगाए बैठें हैं उनकी महफ़िल में गए थे सर उठा कर वो बीती के अब तक खुद से भी सर झुकाए बैठें हैं
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देख हर ख्वाब के ख्वाब ही हकीक़त बनता है जागती आँखों से मगर ख्वाब देखना दुशवार है गर कर सको ऐसा कलाम तो कमाल है दोस्त के मेहनतकश से उस अर्शवाले को भी प्यार है तेरे तुझपर हो न हो मुझे तेरे हर ख्वाब पर बे-अन्दाज़ाह और बे-हिसाब ऐतबार है बस अब तमन्ना है तेरे फरोग की मुझे और मुझे तेरी कामयाबी का इंतज़ार है फरोग - प्रोग्रेस
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pahla kadam koi toh uthaaye, koi to thokar maare, koi toh jhunjhalaye, mulk ke baashinde sabhi chillate hein, humukraano ko magar koi to jagaaye, sab ki kaat hai zamaane mein lekin, koi to haathon mein shamsheer uthaaye, raasten veeran nahin, haan, siiyahiyon se bhare hein koi to mashaal jalaakar inki taariiki mitaaye, aawaam chup baithi hai, magar goongi nahi, bolegi, magar koi to pahli aawaaz uthaye hum tyaar hein, use rah-numa banaane ko, koi to is desh mein inqlaab laaye..