एक चेहरा दिखता है मेरे आईने में अक्सर रूबरू नहीं होता लेकिन मुलाक़ात रोज़ होती है लबों को ख़ामोशी पहना दी है उसने बरसों से सन्नाटों में सन्नाटो से लेकिन बात रोज़ होती
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रिम झिम... ये वृष्टि की टिपटिपाहट है .... या दिल में मचलते अरमानों की...???? ये मेरे आँखों में बरसते ख़्वाबों की आवाज़ गूंजती है.. या मेरे ख्यालों में उतारते तेरे जज़्बात की... पता नहीं... बस... एक अहसास है.. जो जब जब लहू के साथ नसों में दौड़ता है, कुछ लफ्ज़ खुद-ब-खुद पन्नो पे बिखर जाते हैं... और रिमझिम पर बरसने लगते हैं बस... ये ही है मेरी रिमझिम की शुरुआत की कहानी.... उम्मीद है आपको पसंद आएगी...