एक चेहरा दिखता है मेरे आईने में अक्सर
रूबरू नहीं होता लेकिन मुलाक़ात रोज़ होती है
लबों को ख़ामोशी पहना दी है उसने बरसों से
सन्नाटों में सन्नाटो से लेकिन बात रोज़ होती

Popular posts from this blog

अहसास-ए-गम

तमन्ना-ऐ-वस्ल-ऐ-यार