सफ़र सख्त है, तनहा है मगर बे-मज़ा और बे-मंज़र नहीं
कुछ कट गया, कुछ कट रहा है, कुछ कट ही जाएगा
साथी सबको मिल जाता है अपने नसीब से इस जहां में
ख़ुशी हो या गम, गर बांटने वाला हो सब बँट ही जाएगा
रिम झिम... ये वृष्टि की टिपटिपाहट है .... या दिल में मचलते अरमानों की...???? ये मेरे आँखों में बरसते ख़्वाबों की आवाज़ गूंजती है.. या मेरे ख्यालों में उतारते तेरे जज़्बात की... पता नहीं... बस... एक अहसास है.. जो जब जब लहू के साथ नसों में दौड़ता है, कुछ लफ्ज़ खुद-ब-खुद पन्नो पे बिखर जाते हैं... और रिमझिम पर बरसने लगते हैं बस... ये ही है मेरी रिमझिम की शुरुआत की कहानी.... उम्मीद है आपको पसंद आएगी...