दिल आशना है तो फिर ये नकाब क्यूँ
अपने अरमानों पर ऐसा हिजाब क्यूँ ...
जज्बा-ए-मोहब्बत दिल में लिए फिरते हो
फिर करते हो अपने दर्द का हिसाब क्यूँ...
पीते नहीं हो यारों की महफ़िल में भी
ढूंढते हो ज़माने भर में फिर शराब क्यूँ
सायों में घर बनाते हो धूप से बचने को
मुजरिम बना फिर मासूम आफताब क्यूँ ...