दिल को उम्मीद है शब्-ए-वस्ल कभी तो आएगी
लिल्लाह हिज्र का दिल अब तो मुक्कम्मल कर दे
सिलवटें बहुत जोर से चुभती हैं मेरे बिस्तर की
अब तो मेरे तकिये को उसकी बाजुओं से भर दे
आँखें बेताब हैं उसकी तीर-ए-नज़र के लिए
मर्तबा एक उस अश्किया को मेरी नज़र कर दे
फिर शौक से जान दे देंगे हम क़दमों में
मेरी जानिब सिर्फ एक बार इतनी मेहर कर दे
जो बात दिल में दबी है और जुबां तक आती नहीं
उस खामोशी में मोहब्बत का हर लफ्ज़ भर दे
मेरे हर अहसास उस के दिल तक पहुँच सके
खुदाया मेरे दर्द में कुछ ऐसा असर कर दे .......