मैंने दोस्तों से दोस्ती कर के भी देख ली
मेरे दोस्त अक्सर मुझे भूल जाते हैं
उनसे अच्छे तो मेरे वोह दुश्मन हैं
जो मुझे कोसने मेरी दहलीज़ तक आते हैं ...

फर्क करना दोस्तों और दुश्मनों में
बहु आसान लगता है मुझे आजकल
के दोस्त रिश्ता जोड़ कर दगा देते हैं
दुश्मन बड़ी शिद्दत से दुश्मनी निभाते हैं ...

परदे में दोस्तों को रखना एक फितरत बन गयी है
बात बात पर लोग दोस्तों से नज़र बचाते हैं
वोह तो बस दुश्मन ही होते हैं अज़ीज़ आपके
जो अपना सीना ठोक कर हर राज़ बताते हैं ...

सच बहुत फक्र है मुझे मेरे दुश्मनों पर
कम से कम वो मेरे सीने पर वार करते हैं
उन दोस्तों से भी मगर मुझे कोई गिला नहीं है
जो चेहरे पे हंसी और आस्तीन में खंजर छुपाते हैं ....

Popular posts from this blog

अहसास-ए-गम

तमन्ना-ऐ-वस्ल-ऐ-यार