Dard to sirf ek ahsaas hai, maano to bahut gehra aur na maano to kuch bhi nahi
अहसास-ए-गम
किसी के दिए ज़ख्मो का, अहसास-ए-दर्द देर से हुआ, चोट खाई थे बहुत देर पहले; चोट का अहसास मगर देर से हुआ उसकी बेबाक मोहब्बत थी कब से कायम, मुझको ही इल्म ज़रा देर से हुआ पी थी आँखों से उसकी कल रात गए , नशे का खुमार मगर देर से हुआ मेरे घर में कब से कायम उसका आना, ख्वाबों में आगमन मगर देर से हुआ. ऐसे तो मिले थे कई बार महफ़िल में, तन्हाई में उसके आना देर से हुआ हम ही नादाँ थे जो न समझे उसको अय्यारी का इल्म ज़रा देर से हुआ, अब बहुत वक़्त हुआ उसको गए हुए, अहसास-ए-गम मगर देर से हुआ.