जली हुई और जलती रात में फर्क बस इतना है...
एक राख हो जाती है, एक राख कर जाती है

एक हिज्र की बेचैनियों में जला देती है
एक वस्ल-ए-आतिश में ख़ाक कर जाती है

एक उफक के अख्तर तक भी निगल लेती है
एक अमावसी आसमां को महताब कर जाती है

एक रौशनी के उजाले बर्दाश्त नहीं हो पाती
और एक ज़र्रे ज़र्रे को आफताब कर जाती है ...

hijr - separation, wasl-e-aatish - fire of meeting with lover, ufak - horizon, akhtar - stars, mahtaab - moon, zarra - small particle, aaftaab - sun

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