न हाथों से छूकर न होंठों से लगाकर 
बस आँखों से देख उसे प्यार करते हैं
वो कहीं भी मौजूद नहीं है लेकिन हम 
सपनो में उसका दीदार किया करते हैं....
मेरी सरहदों के पार उसका बसेरा है
मेरी तवज्जो के परे उसकी हस्ती है
बारहां उसके दर से खाली लौटकर भी
सजदे उसी के दर के बार बार करते हैं 
फिर भी उससे किनारा नहीं कर पाते 
के मेरी रूह उसके जिस्म में बसती है
कुछ तो उसमे ऐसा है के उसपर हम  
खुद से ज्यादा ऐतबार किया करते हैं...

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