जलती शामों को बुझाने आ जाओ
एक रात मेरे संग बिताने आ जाओ ...
सुबह का सूरज बेरंग लगे सुबह से
मेरे दिनों को रंग लगाने आ जाओ ....
रात की रानी शब् में खुशबू घोलती हैं
गजरे की कलियाँ बालों से बोलती हैं
जुल्फें तकियें पर बिखरी हैं बेकल हो
अपनी उँगलियों से सुलझाने आ जाओ ...
चंद अरमान अब दिल में मचलते हैं
तेरे सायों के नीचे मेरे साए पलते हैं
छावं में, धूप में, बारिशों के रूप में
बदलते मौसम के बहाने आ जाओ ...
जुबां पर लम्बी उदासी का पहरा है
दिल में लगा ज़ख्म अभी भी गहरा है
बस तुझसे मिलने को बेकरार हुए हैं
मेरी तन्हाई को मिटाने आ जाओ ...
गुंचों को फिकर नहीं बहारों को असर नहीं
किसी को भी मेरी दीवानगी की खबर नहीं
सारा आलम बेपरवाह हुआ बैठा है
तुम ज़माने भर को बताने आ जाओ ...