अब तक मुझसे तेरा इंतज़ार ख़त्म नहीं हुआ
मेरी जिंदगी पर तेरा इख्त्यार ख़त्म नहीं हुआ ..
यूँ तो एक दिन मुकम्मल हो जाता है वक़्त भी
लेकिन इस दिल से तेरा प्यार ख़त्म नहीं हुआ ...
बहारें आकर चलीं गयीं अब पतझड़ का मौसम है
के पतझड़ में भी उम्मीद-ए-गुलज़ार ख़त्म नहीं हुआ..
क्या क्या भुलाएँ दिल से और क्या कुछ दफनायें
मेरी सपनो का मैय्यद-ओ-मज़ार कह्तं नहीं हुआ ...
नश्तर इतने लगे हैं के रूह तक घायल हो गयी
परेशां हैं के अब तक उसका वार ख़त्म नहीं हुआ ...
हमने ज़माने ने में बहुत लोगों को आजमाया है
फिर भी उस एक शख्स पर ऐतबार ख़त्म नहीं हुआ ..
कुछ पल तस्कीनियों के खरीदने निकले थे एक दिन
मगर उसका गम बेचने का बाज़ार ख़त्म नहीं हुआ ..
आज शिकायत कर रहे हैं लेकिन खुद से शर्मिंदा हैं
के किसी से किये वादों का उधार ख़त्म नहीं हुआ ...