मेरे परों पर मेरे आशियाने का भार रहता है
ये नाज़ुक बदन सैकड़ों तिनकों का बोझ सहता है ...
पनाह ढूँढ़ते ढूँढ़ते जिंदगी की शाम हो गयी है
अब एक सहमी हुई रात का इंतज़ार रहता है ...
बिन बोले मेरी बात हो जाती है उस खुदा से
बिन मांगे अक्सर ठिकाना भी मिल जाता है
बस नहीं मिलती तो वो चीज़ जो सुकून है
जिसके लिए दिल-ए-मासूम बेज़ार रहता है ...
कभी गुजारिश नहीं की, कभी ख्वाइश नहीं की
बस गुज़ारे किये हर पल को आखरी पल समझ
एक जुस्तजू रह गयी कहीं कोने में दिल के
वहीँ दिल के जिस कोने में मेरा दिलदार रहता है ..