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Showing posts from October, 2008

तो कोई बात है

छोड़ के नफरत मेरी करीब आओ तो कोई बात है भूल कर ग़मों को मुस्कुराओ तो कोई बात है धूप में तो सब गुज़ारा कर ही लेते हैं मर खप कर तूफानी गलां में जी कर दिखाओ तो कोई बात है फिरदोस है जन्नत है इसमें किसको शक भला हाँ, दोज़ख में खुशियाँ बिछाओ तो कोई बात है दरिया में उतरते हैं तो पार लग ही जाते हैं डूब कर सागर करीं आ जाओ तो कोई बात है हर एक शख्स अपनी असीरी में सदियों से कैद है दुश्मनों की जंजीरें तोड़ आओ तो कोई बात है फूल हैं तो महकेंगे ही के उनकी ये ही फितरत है सहरा में गुलशन को बसाओ तो कोई बात है

सब तकदीरों की कहानियां ऐसी नहीं होती

न हिज्र का गिला न वस्ल की इल्तजा सब रिश्तों की बुनियाद ऐसी नहीं होती.... आगोश में जन्नत हो या दूरियों में दोज़ख हर मोहब्बत की इन्तहा ऐसी नहीं होती... नज़र-नज़र में गुफ्तगू सरे आम या तन्हाई में सबकी चाहत- ए- बयान ऐसी नहीं होती... रुसवाइयां नीवं हो जिसकी बदनाम करें महबूब को चाहत-ए पाकीज़ की निशानियाँ ऐसी नहीं होती... परवान चढ़ जाए जो मोहब्बत और खुशगवार भी हो सब तकदीरों की कहानियां ऐसी नहीं होती....

वो शख्स

रंग भरा उम्मीदों भरा, हर रोज़ मुझसे मिलने रात गए मेरे ख्यालों में आता है, क्या बताएं वो कैसा है, बिलकुल ख्यालों जैसा है, मुझे अक्सर इंतज़ार और उम्मीदों में, फर्क समझाता है, जिसके होठों में इक आग है, जिसकी सांसो में इक राग है, सभी साज ज़िन्दगी के बज उठते हैं, जब वो नजदीक आता है, कुछ कल के किस्से , कुछ आज के अफसाने, मेरे आज से जुड़ कर, कैसे कैसे बहानों से, गीतों में सुनाता है, जिसके होने से बहार आती है, जिसके जाने पे खिजां सताती है, बादल सावन उसमे समाये, जो खुद को मौसम, मुझे बारिश बुलाता है, जिसकी छाव में तपिश जिसके आगोश में आतिश, जो तन्हाई में अक्सर, उँगलियों से अपनी धड़कन सुनाता है, जो ख्वाबीदा होकर भी, सपनो से डराता है, अपने लिए सिर्फ हकीकत चुनता है, मुझे मगर गए रात सपने दिखाता है, जिसके लबों पर मेरा नाम तक नहीं आता, बिना नाम के वो अपने नामों से मुझे अक्सर बुलाता है, दिन भर इधर उधर भवरे सा सब फूलों पर डोलता रात में वो सिर्फ मेरा हो जाता है, पता नहीं और कुछ नहीं, दो लफ्जों की उसकी जुबान, जिसके दर्मियान मुझे वो हिकायते-जिंदगी सुनाता है, आप और तुम के हमारे फासले, शायद कभी कम न हो इन फासलो

मेरा तार्रुफ़

मैं वो हवा हूँ जो हमेशा बहती है मैं वो घटा हूँ जो बरसती रहती है मेरी साँसों की खुशबू से महकते ही सारी फिजा मेरी धरकन से वक़्त की रवायत चलती है मेरी तबस्सुम को तरसते हैं गुल -ओ -गुलज़ार , मेरे तसव्वुर से हूर -ए -जन्नत जलती है मुझसे सुबह होती है , मुझसे शाम ढलती है ...

हमारी याद आती होगी

कभी तो हमारी याद आती होगी कभी तो रात को बेताबी सताती होगी कभी तो माजी टोकता होगा कभी तो आँख रुलाती होगी ... कभी तो सावन की झरी में फिर अरमान मचलते होंगे कभी तो खिज़ा में पत्तों के साथ आंसू झड़ते होंगे कभी तो सर्द रातों में हमारी कशिश जगाती होगी कभी तो हमारी साँसों की गर्मी जिस्म आपका पिघलाती होगी... कभी तो दीदार की तमन्ना में पाँव छत तक ले जाते होंगे कभी तो मिलने की तड़प में ख्वाब हमारे आते होंगे कभी तो हमे फिर छूने की चाह हाथों को तरसाती होगी कभी तो शाम को पांच बजे घड़ी की टिक टिक सुनाती होगी कभी तो दिन ढले बीते पल बुलाते होंगे कभी गुज़रते हुए पुराने रस्ते फिर आवाज़ लगाते होंगे कभी तो बाहें हमे आगोश में भरने को फिर मचल मचल जाती होंगी कभी तो तनहाइयों में हमारी याद आती होगी....

शहर के लोग

मेरे शहर के लोग बड़े मसरूफ रहते हैं खुद ही खुद के नशे में चूर रहते हैं इश्क क्या है और उसकी शिद्दत क्या इन बातों से बहुत दूर रहते हैं ठीक है के हर बाशिन्दे के सिर पे सलीब है सच है के हर शक्स अजीब है अपनी शक्सियत का रुबाब को छोड़ के यहाँ माशूक का गुरुर सहते हैं कोई गिला नहीं है गर वस्ल-ओ-प्यार न हुआ कोई शिकायत नहीं गर दीदार-ए-यार न हुआ अजीब लोग हैं अजीब रवायेतें हैं के यहाँ सब्र से आशिक दर्द-ए-नासूर सहते हैं

एक बार कोशिश करो

आप कब तक, आप कहने की रसम निभायेंगे? तुम तक पहुँचने में और कितना वक़्त लगायेंगे? बदती जा रही है चाहतें हमारी पुरजोर आप कब हमारे इतना करीब आयेंगे? हम गुस्ताखी पर अमादा होने हों को हैं आप कब बीच की दूरियों को मिटायेंगे? अब तलक हमे भी हिचक है बे-तकल्लुफी से आप कब तक ओर तकल्लुफ़ फ़रमायेंगे? इन मासूम रिश्तों को परवान चदने दीजिये आब कब तक इन रिवाजों को निभाएंगे? आपके लफ्जों में इज्ज़त है आशनाई नहीं आप कब हमसे यूँ आशना हो पायेंगे? एक बार कोशिश करो तुम कहने की हमे आपके आप आप में वरना हम बे-मौत मारे जायेंगे

तेरा साया

किसी को कैसे बताएं तब क्या क्या होता है जब रात के अँधेरे में आसमान में चाँद तनहा होता है... जब हरसिंगार खिलते हैं जब हवा बहती है जब मेरा एक ख्वाब तेरे ख़्वाबों में आकर सोता है… जब अपने घर के बाम पर तू खड़ा मेरे झरोखे की तरफ चुपके से झाँक रहा होता है… जब सबा के साथ खुशबू तेरी आती है जब सारा आलम मद मस्त सा तेरे बदन सा महक रहा होता है… तब तेरा मासूम चेहरा तेरी आँखें, तेरी साँसे तेरा साया और तू मेरे पास कहीं खड़ा होता है

Hurricane rita

कुछ तिनके जोड़े हैं, कुछ गुंजल सुलझाए हैं कुछ सपनो को निचोड़ कर हमने रंग बनाए हैं कई फासले तय करे, कई रास्ते साथ लिए कभी धूप चुराकर, कभी साए थाम लिए थोडी सी कच्ची मिट्टी, थोड़ा सा ठंडा पानी कभी दबी हुई सी हंसी , कभी अश्कों की कहानी कुछ तूफ़ान समेट कर कुछ हवाएं लपेट कर हम रीता के नाम से इस दुनिया में आये हैं..... ***** मेरी परवाज़ का अंदाज़ आप यूँ भी लगा सकते हैं के मेरे पंखों में सबा का ठिकाना है जो असमाँ में उडू तो उसको भी झुका दूं के तारों के पार मेरा आशियाना है

एक लड़का

एक नटखट लड़का है कहीं पर जो गीत चुनता है अपने लफ्जों में ना जाने कितने ख्वाब बुनता है उसकी कलम में एक जादू है और हाथों में एक तिशनगी जाने क्या कुछ कह जाता है जाने क्या कुछ सुनता है कभी कभी एक खामोश आवाज़ देता है कभी कभी जोर से फिर चुप हो जाता है उस शख्स का क्या कहना जो खारों से गुलाब चुनता है निगाहें भी बयानी से कभी बाज़ नही आती उसकी तस्वीरों में से भी यू लगे मेरे दिल की सब बातें सुनता है मुझ पे अपने शब्दों की एक खूबसूरत से ओदनी डालता है न जाने कहाँ से वो इतनी रेशमी गज़लें बुनता है

तू इतना ख़ास नहीं

तुम्हारी आँखों की तुम जानो, यहाँ दिल रोता है बिछड़ने का गम मेरा दामन भिगोता है तुम्हारी जिद है अपना दर्द-ए-दिल सुनाने की मेरा क्या, मेरा दर्द मेरे सीने में होता है ***** चोट की टीस, घाव का अहसास देने वाले तू इतना गैर नहीं, और तू इतना ख़ास भी नहीं ओ दर्द देने वाले तेरा भी भला हो के तू दूर भी नहीं, और तू इतना पास भी नहीं

एक ख़ास दोस्त के लिए....

कभी अजनबी था अब दोस्तों से ज्यादा करीब है मेरी जान का हाफिज़ और मेरा हबीब है तुझसे मिलाने वाला महरबानी कर गया उसके रानाइयों के सदके तू मेरा नसीब है.... मेरे दर पे सिर्फ जोगी आते हैं आपके आने से हम पे रंग-ए-जमाल आ गया सर उठा के उसपे जब आँख भर देखा तो चेहरे पे मेरे, बेकरार दिल का हाल आ गया जो दर्द मिट गया उसकी शिद्दत भी मिट गयी जो ज़ख्म भर गया उसकी टीस घट गयी तू बारहा न खोल उन बंद खिड़कियों को जो वक़्त के थपेडो से खुद ही सिमट गयी तबस्सुम मेरे चहरे पे भी खिल खिल जाती है जब तेरा खिलता हुआ मुजस्मा नज़र आता है तेरी नज़र गुफ्तगू करती है मेरी निगाहों से तेरा मुस्काना उसपे तेरा जमाल-ए-रू बढाता है

आपकी नज़र

मेरे दिल का हर गोश कभी मोहब्बत से आबाद था यहाँ गुंजाइश नही थी किसी गम की होने की बस सोया सा, बेसुध सा, गुमसुम सा पड़ा था ये आपने चुप चाप से कैसी दस्तक दी..... बस कहीं एक खालीपन सा छा रहा था न रंजिश थी इसमें न नफरत इसमें थी जगाया कितने अरमानों को हौले से पुकार के कितनी मासूमियत से आपने ये प्यारी हरक़त की....

चेहरे में.....

मेरे चेहरे में कुछ गम्गीनियाँ थी, कुछ बे-बाक सी बे-तस्किनियाँ थी, कुछ कच्चे से ज़ख्मों के निशाँ थे, कुछ दफन हुए अरमानों के पैगाम थे, अश्कों के बे-हिसाब सैलाब भी थे, कहीं कुछ टूटे हुए खवाब भी थे, मगर परदे में से सिर्फ शोखियाँ दिखती हैं, हिजाब से तिजारत हो तो सिर मुस्कुराहटें बिकती हैं, इसलिए पर्दा नशीं होकर सामने आते हैं, हम अक्सर अंधेरों में दिन बिताते हैं......