तो कोई बात है
छोड़ के नफरत मेरी करीब आओ तो कोई बात है भूल कर ग़मों को मुस्कुराओ तो कोई बात है धूप में तो सब गुज़ारा कर ही लेते हैं मर खप कर तूफानी गलां में जी कर दिखाओ तो कोई बात है फिरदोस है जन्नत है इसमें किसको शक भला हाँ, दोज़ख में खुशियाँ बिछाओ तो कोई बात है दरिया में उतरते हैं तो पार लग ही जाते हैं डूब कर सागर करीं आ जाओ तो कोई बात है हर एक शख्स अपनी असीरी में सदियों से कैद है दुश्मनों की जंजीरें तोड़ आओ तो कोई बात है फूल हैं तो महकेंगे ही के उनकी ये ही फितरत है सहरा में गुलशन को बसाओ तो कोई बात है